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AAP पार्षदों का MCD में हंगामा: 12,000 संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग पर अड़े

नई दिल्ली, नवसत्ता : दिल्ली नगर निगम (MCD) सदन की बैठक आज आम आदमी पार्टी (AAP) के पार्षदों के भारी हंगामे के कारण स्थगित कर दी गई। यह बवाल AAP के नेता प्रतिपक्ष अंकुश नारंग द्वारा 12 हजार संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग उठाए जाने के बाद शुरू हुआ।

सदन में हंगामा

बैठक में जल्द ही नारेबाजी और शोर-शराबा शुरू हो गया, जिससे महापौर राजा इकबाल सिंह को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। महापौर सिंह ने एक प्रस्ताव पढ़कर स्थगन की घोषणा की। बाद में, उन्होंने स्थायी समिति की अध्यक्ष सत्या शर्मा और सदन के नेता प्रवेश वाही के साथ एक प्रेस वार्ता की, जिसमें उन्होंने AAP पर सदन की गरिमा भंग करने का आरोप लगाया। महापौर सिंह ने कहा कि AAP मुद्दों पर वास्तविक बहस नहीं चाहती और केवल राजनीति करना चाहती है, साथ ही नियमितीकरण के नाम पर भ्रम फैला रही है, जबकि कोई उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।

AAP का रुख: पिछला प्रस्ताव और बजटीय आवंटन

अंकुश नारंग ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जब AAP MCD में सत्ता में थी, तब 12 हजार कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव पारित किया गया था, और इसके लिए 800 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान भी किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान भाजपा-नेतृत्व वाला प्रशासन जानबूझकर इस प्रस्ताव को लागू करने से इनकार कर रहा है। नारंग ने जोर देकर कहा कि AAP केवल पहले पारित प्रस्ताव को लागू करने की मांग कर रही है, जिसे वे कर्मचारियों का अधिकार मानते हैं। AAP पार्षदों ने सदन में नारे लगाए, और मेयर से निगम आयुक्त को इस प्रस्ताव को लागू करने का निर्देश देने की मांग की।

भाजपा का पलटवार: “प्राइवेट मेंबर बिल” और वित्तीय प्रावधान का अभाव

हालांकि, सदन के बाद, मुकेश गोयल ने AAP के विरोध को सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का एक तरीका बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस प्रस्ताव को लेकर हंगामा किया गया, वह केवल एक प्राइवेट मेंबर बिल था, जिसकी नगर निगम अधिनियम के तहत कोई कानूनी वैधता नहीं है। गोयल ने आगे कहा कि इन कर्मचारियों के नियमितीकरण या वेतन के लिए न तो कोई वित्तीय प्रावधान किया गया था और न ही इसके लिए एमसीडी के बजट में कोई मद तय की गई थी।

राजनीतिक खींचतान का जनहित पर असर

यह घटना दिल्ली नगर निगम के भीतर चल रही राजनीतिक खींचतान को स्पष्ट रूप से उजागर करती है, जो कर्मचारियों और जनता दोनों के हितों पर भारी पड़ती दिख रही है। राजनीतिक दलों को सस्ती राजनीति से ऊपर उठकर, लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखने और जनहित से जुड़े मुद्दों पर गंभीरता से काम करने की सख्त जरूरत है।

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