नई दिल्ली,नवसत्ता: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की भागीदारी पर सवाल उठाकर एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने इसे संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ और कार्यपालिका के अधिकारों को कमजोर करने वाला बताया है।
CJI की भागीदारी पर उपराष्ट्रपति का आश्चर्य
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस बात पर हैरानी जताई कि CBI निदेशक जैसे कार्यकारी पद पर नियुक्ति में CJI भी शामिल होते हैं। उन्होंने प्रश्न किया, “क्या कार्यकारी नियुक्ति किसी और संस्था द्वारा होनी चाहिए? क्या यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है?” उन्होंने यह भी पूछा कि क्या दुनिया के किसी और देश में ऐसी व्यवस्था मौजूद है। उनके अनुसार, यह कार्यपालिका के दायरे में न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप है।
न्यायपालिका में जनविश्वास और संवैधानिक संतुलन
धनखड़ ने स्वीकार किया कि न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा सबसे अधिक है, और इस भरोसे का टूटना पूरे देश के लिए संकट पैदा कर सकता है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, यदि कोई एक संस्था दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल देती है, तो इससे पूरी संवैधानिक व्यवस्था गड़बड़ा सकती है।
CBI निदेशक की नियुक्ति का मौजूदा प्रावधान
उपराष्ट्रपति की टिप्पणी दिल्ली पुलिस स्पेशल स्टैब्लिशमेंट एक्ट (DSPE एक्ट) पर केंद्रित है, जिसके तहत CBI का गठन किया गया है। इस एक्ट की धारा 4 के अनुसार, CBI निदेशक की नियुक्ति के लिए एक उच्चस्तरीय चयन समिति का प्रावधान है। इस समिति में तीन सदस्य होते हैं:
- प्रधानमंत्री
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
- भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सुप्रीम कोर्ट के कोई अन्य न्यायाधीश
उपराष्ट्रपति धनखड़ इसी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, कि क्या न्यायपालिका की यह सीधी भागीदारी कार्यपालिका के दायरे में हस्तक्षेप नहीं है।