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अखिलेश का नया आरोप: बागेश्वर धाम सरकार कथा के लिए लेते हैं गुप्त भुगतान

 

लखनऊ ,नवसत्ता:उत्तर प्रदेश के इटावा में दो कथावाचकों के साथ हुई बदसलूकी का मामला अब राजनीतिक रंग ले रहा है. इस विवाद के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बागेश्वर धाम के कथावाचक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर बड़ा आरोप लगाया है. अखिलेश ने दावा किया है कि धीरेंद्र शास्त्री कथा करने के लिए “अंडर टेबल” पैसे लेते हैं.

अखिलेश यादव का बयान

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने कहा, “कई कथावाचक 50 लाख रुपये तक लेते हैं. क्या किसी की हैसियत है कि धीरेंद्र शास्त्री को घर बुला ले कथा के लिए? उनकी कथा के लिए न जाने कितनी कीमत होगी. आप पता कर लीजिए, वो अंडर टेबल पैसे नहीं लेते क्या?”

इटावा घटना और अखिलेश का सम्मान

इटावा की घटना का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव ने दोनों कथावाचकों मुकुटमणि यादव और संत कुमार यादव को समाजवादी पार्टी के दफ्तर बुलाया और उन्हें सम्मानित किया. उन्हें सपा की ओर से ₹51,000 की राशि भी भेंट की गई. इसके बाद उन पर जातीय राजनीति करने का आरोप लगा, जिस पर अखिलेश ने सफाई दी कि वह “जातिवादी नहीं बल्कि पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की राजनीति” कर रहे हैं.

क्या है इटावा की घटना?

21 जून को इटावा के दांदरपुर गांव में कथा के दौरान कथावाचकों के साथ बुरा व्यवहार किया गया. ग्रामीणों ने कथावाचकों पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी जाति छिपाई है. इसके बाद कथावाचकों की चोटी काट दी गई, सिर मुंडवा दिया गया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ. पुलिस ने मामले में 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि कथावाचकों पर भी फर्जी आधार कार्ड और धोखाधड़ी के आरोप में केस दर्ज किया गया है.

राजनीतिक तकरार तेज

इस घटना के बाद से प्रदेश की राजनीति गरमा गई है. समाजवादी पार्टी खुलकर कथावाचकों के समर्थन में आ गई है, वहीं भाजपा नेताओं और समर्थकों का कहना है कि सपा इसे जातीय राजनीति का मुद्दा बना रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा ब्राह्मण बनाम यादव समीकरण को छूने लगा है, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में बेहद संवेदनशील विषय है.

धीरेंद्र शास्त्री पर आरोप क्यों?

अखिलेश यादव ने जिस तरह कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री को निशाने पर लिया है, वह इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि शास्त्री की कथाएं पूरे देश में लोकप्रिय हैं और उन्हें कई भाजपा नेताओं का समर्थन भी मिला है. ऐसे में अखिलेश के बयान को सीधे तौर पर सांस्कृतिक और राजनीतिक विचारधारा की टक्कर के रूप में देखा जा रहा है.

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