संवाददाता
प्रयागराज,नवसत्ताः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को केवल लाइक करना, उसे प्रकाशित या प्रसारित करने के समान नहीं माना जा सकता, और इसलिए इस आधार पर आईटी अधिनियम की धारा 67 लागू नहीं हो सकती। यह धारा अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से संबंधित है।
यह फैसला आगरा निवासी इमरान खान के मामले में सुनाया गया, जिनके खिलाफ सोशल मीडिया पर एक पोस्ट को लाइक करने के चलते मुकदमा दर्ज किया गया था। यह पोस्ट राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने के लिए भीड़ जुटाने से संबंधित थी, और कहा गया कि इसी के चलते करीब 600-700 लोग बिना अनुमति के इकट्ठा हो गए थे। पुलिस ने इमरान पर “भड़काऊ संदेश फैलाने” का आरोप लगाया था।
इमरान ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर मुकदमा रद्द करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल एक पोस्ट को श्लाइकश् करना उस पोस्ट की जिम्मेदारी लेना या उसे फैलाना नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो याचिकाकर्ता को सीधे आपत्तिजनक या भड़काऊ सामग्री से जोड़ती हो।
पुलिस ने दावा किया कि इमरान ने विवादित सामग्री को अपने सोशल मीडिया अकाउंट से हटा दिया था, लेकिन कोर्ट ने पाया कि इस आरोप को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।
यह निर्णय सोशल मीडिया पर बढ़ती गतिविधियों और उसके कानूनी पहलुओं के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कोर्ट का यह भी कहना था कि आईटी एक्ट की धारा 67 केवल अश्लील सामग्री पर लागू होती है, भड़काऊ पोस्ट पर नहीं। इससे यह स्पष्ट होता है कि कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए न्यायपालिका सजग है और हर केस को उसके तथ्यों के आधार पर परखा जाना चाहिए।
यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी एक मिसाल बन सकता है।