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ट्रंप का नया टैरिफ बम: ब्रांडेड दवाओं पर 100% शुल्क, फर्नीचर-ट्रकों पर भी बढ़ी ड्यूटी; भारतीय फार्मा शेयरों में भारी गिरावट

संवाददाता
नई दिल्ली, नवसत्ता :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को और सख्त करते हुए गुरुवार को एक नया टैरिफ बम फोड़ा। ट्रुथ सोशल पर पोस्ट में उन्होंने घोषणा की कि 1 अक्टूबर 2025 से ब्रांडेड य पेटेंटेड दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगेगा, जब तक कि कंपनी अमेरिका में फैक्ट्री निर्माण शुरू न कर दे। इसी तरह, हेवी-ड्यूटी ट्रकों पर 25 प्रतिशत, किचन कैबिनेट्स और बाथरूम वैनिटी पर 50 प्रतिशत, तथा गद्देदार फर्नीचर (सोफा-कुर्सी) पर 30 प्रतिशत शुल्क थोपा जाएगा।
ट्रंप का दावा है कि यह कदम अमेरिकी विनिर्माण को ‘अन्यायपूर्ण विदेशी प्रतिस्पर्धा’ से बचाएगा और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। लेकिन इस फैसले से वैश्विक व्यापार में हलचल मच गई है, खासकर भारत जैसे निर्यातक देशों के लिए, जहां फार्मा सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।ट्रंप का यह ऐलान उनके दूसरे कार्यकाल की व्यापार नीति का विस्तार है। अप्रैल 2025 में ‘लिबरेशन डे’ के तहत सभी देशों पर न्यूनतम 10 प्रतिशत टैरिफ लगाए गए थे, जो अब औसतन 27 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं। भारत पर विशेष रूप से 50 प्रतिशत तक शुल्क है, जिसमें रूसी तेल खरीद के ‘जुर्माने’ के रूप में 25 प्रतिशत अतिरिक्त शामिल।
दवाओं के मामले में ट्रंप ने साफ कहा, “1 अक्टूबर से किसी भी ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट पर 100% टैरिफ लगेगा, जब तक कंपनी अमेरिका में प्लांट न बना रही हो।” छूट का प्रावधान है—अगर निर्माण कार्य शुरू हो गया है (ग्राउंड ब्रेकिंग या कंस्ट्रक्शन), तो टैरिफ से मुक्ति। जेनेरिक दवाओं पर यह शुल्क नहीं लगेगा, जो अमेरिकी बाजार में 90 प्रतिशत प्रिस्क्रिप्शन भरती हैं। फिर भी, विशेषज्ञ चेताते हैं कि इससे दवा कीमतें 20-30 प्रतिशत बढ़ सकती हैं, और कमी का खतरा मंडरा रहा।
भारत के लिए यह झटका गहरा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा फार्मा बाजार है, जहां से 2024-25 में 10.5 अरब डॉलर का निर्यात हुआ—जिसमें 45 प्रतिशत जेनेरिक और 10-15 प्रतिशत बायोसिमिलर दवाएं शामिल। सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, लुपिन, अरबिंदो और बायोकॉन जैसी कंपनियां 30-50 प्रतिशत राजस्व अमेरिका से कमाती हैं। हालांकि जेनेरिक पर छूट है, लेकिन ब्रांडेड सेगमेंट (जैसे सन फार्मा का विशेष उत्पाद) प्रभावित होगा। ट्रंप ने पहले 200-250 प्रतिशत टैरिफ की धमकी दी थी, लेकिन 100 प्रतिशत पर अटका।
फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका (फार्मा) ने विरोध किया, कहा कि 2025 में 85.6 अरब डॉलर की दवाओं में 53 प्रतिशत सामग्री अमेरिका में बनी थी। एलोपैथिक दवाओं की कमी से अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम चरमरा सकता है, क्योंकि जेनेरिक के पतले मार्जिन टैरिफ का बोझ ग्राहकों पर डालेंगे।भारतीय शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। शुक्रवार को निफ्टी फार्मा इंडेक्स 1.5-2.6 प्रतिशत लुढ़का, सभी 20 स्टॉक लाल निशान में। नैटको फार्मा 3.75 प्रतिशत, बायोकॉन 2.89 प्रतिशत, लॉरस लैब 2.83 प्रतिशत, जायडस लाइफ 2.76 प्रतिशत, ग्लैंड 2.44 प्रतिशत, अजंता 2.40 प्रतिशत, डिवाइस लैब 2.09 प्रतिशत, एबॉट इंडिया 1.97 प्रतिशत, सन फार्मा 1.78 प्रतिशत, ग्लेनमार्क 1.73 प्रतिशत, मैनकाइंड 1.61 प्रतिशत, लुपिन 1.38 प्रतिशत, ग्रैन्यूल्स 1.26 प्रतिशत, अरबिंदो 0.92 प्रतिशत और अल्केम 0.91 प्रतिशत गिरे।
एशियाई फार्मा शेयरों में भी 2-4 प्रतिशत की गिरावट। निवेशक अनिश्चितता से डरे हुए हैं—क्या जटिल जेनेरिक या स्पेशल्टी मेडिसिन पर भी असर पड़ेगा? आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के पंकज पांडे ने कहा, “तात्कालिक प्रभाव सीमित, लेकिन लंबे समय में मार्जिन दबाव बढ़ेगा।” मोटिलाल ओसवाल ने जेनेरिक पर छूट को राहत बताया, लेकिन ब्रांडेड एक्सपोजर वाली कंपनियों पर सतर्क रहने की सलाह दी।फर्नीचर और ट्रक सेक्टर पर भी चोट। हेवी ट्रकों पर 25 प्रतिशत टैरिफ से पीटरबिल्ट, केनवर्थ और फ्रेटलाइनर जैसी अमेरिकी कंपनियों को फायदा, लेकिन आयातक देशों (मेक्सिको, कनाडा, जापान) को नुकसान।
अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने विरोध किया, कहा कि ये सहयोगी देश राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं। किचन-बाथरूम कैबिनेट्स पर 50 प्रतिशत और गद्देदार फर्नीचर पर 30 प्रतिशत शुल्क से भारत के 4-5 अरब डॉलर के निर्यात प्रभावित। वियतनाम, चीन, मैक्सिको और मलेशिया प्रमुख निर्यातक हैं, लेकिन भारत के एमएसएम को झटका लगेगा। ट्रंप ने कहा, “ये आयात ‘फ्लडिंग’ कर रहे हैं, स्थानीय उद्योग नष्ट हो रहे।” इससे अमेरिकी उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, मुद्रास्फीति को बल मिलेगा।ट्रंप के इस दांव से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सवाल।
फेडरल रिजर्व ने चेतावनी दी कि टैरिफ से 2025 में जीडीपी वृद्धि 0.8 प्रतिशत धीमी हो सकती है। भारत सरकार ने ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए डब्ल्यूटीओ में शिकायत की तैयारी की। पीयूष गोयल ने कहा, “हम नए बाजार तलाशेंगे, मेक इन इंडिया को मजबूत करेंगे।” लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जवाबी टैरिफ जरूरी। जेनेरिक पर छूट से राहत है, लेकिन ब्रांडेड सेगमेंट में निवेश बढ़ाने की होड़ मचेगी। एली लिली ने हाल ही में 6.5 अरब डॉलर का अमेरिकी प्लांट घोषित किया। भारत के लिए अवसर भी—घरेलू उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भरता। लेकिन ट्रंप का टैरिफ युद्ध वैश्विक सप्लाई चेन को तोड़ सकता है। निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए, जबकि सरकार कूटनीति से संतुलन बनाए।
अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाए सरकार
समय जवाबी टैरिफ लगाने का है। अमेरिका से आयात केवल 45 अरब डॉलर है, इसलिए चयनित उत्पादों—अमेरिकी कृषि (सोयाबीन, मकई), व्हिस्की, मोटरसाइकिल, आईटी हार्डवेयर—पर 25-50 प्रतिशत शुल्क लगाया जा सकता है। इससे अमेरिकी किसानों और कंपनियों पर दबाव बनेगा।
ट्रंप ने खुद कहा कि भारत ‘सख्त’ है, लेकिन बिना जवाब के यह दबाव कमजोर पड़ रहा। जवाबी टैरिफ से भारत की छवि मजबूत होगी—हम न तो झुकते हैं, न आक्रामक। यह आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा। पर्यटन पर असर दिख रहा है; 2025 में भारतीय पर्यटकों की संख्या घटी, अमेरिका को 340 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। जवाबी कदम से यह और बढ़ेगा। विपक्ष ने सही कहा—यह ‘आर्थिक ब्लैकमेल’ है। सरकार को किसानों, उद्योगपतियों के हित में सख्त होना चाहिए।ट्रंप का रुख लेन-देन वाला है। उन्होंने भारत-पाक सीजफायर का श्रेय लिया, एच1बी वीजा पर धमकी दी। लेकिन भारत की 1.4 अरब उपभोक्ता बाजार शक्ति है।
जवाबी टैरिफ से हम ब्रिक्स मुद्रा, ईरान-वेनेजुएला ऊर्जा व्यापार की ओर बढ़ सकते हैं। अमेरिका को संकेत मिलेगा कि भारत मजबूत साझेदार है, गुलाम नहीं। डब्ल्यूटीओ में मामला लंबा चलेगा, लेकिन तत्काल जवाब जरूरी। यदि न लगाया गया, तो ट्रंप और दबाव बनाएंगे। समय की मांग है—राष्ट्रीय हित सर्वोपरि। सरकार जवाबी टैरिफ लगाकर दिखाए कि भारत अब पुराना भारत नहीं। यह कूटनीति और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए जीत होगी।

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