नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ता : तपती गर्मी और उमस भरे माहौल में उत्तर प्रदेश का हर कोना गहरे बिजली संकट से जूझ रहा है। गांवों से लेकर छोटे शहरों तक, अघोषित कटौती ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। किसान परेशान हैं, व्यापार ठप्प है, और घरों में पंखे-कूलर बंद पड़े हैं। ऐसे में, राज्य के ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा के हालिया बयान औरएक्शनमहज एक बेतुके ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं लग रहे हैं, जो जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं।
मंत्री जी कभी आधी रात में बिजली विभाग के दफ्तरों का दौरा कर औचक निरीक्षण करते दिखते हैं, तो कभी अफसरों को सुधर जाओ की नसीहत देते हुए कैमरे के सामने कड़े निर्देश जारी करते हैं। कल रात उन्होंने अपने विभाग के एक एसई का आडियो जारी कर उसे निलम्बित कर दिया। इससे पहले उनका बिजली समस्या सुना रही जनता को जवाब के तौर पर भगवान के जयकारे का वीडियो भी खूब वायरल हुआ है।
सवाल यह उठता है कि इतने पावरपफुल मंत्री की कार्यशैली क्या मंत्री पद की गरिमा के अनुरूप है। वह भी ऐसा मंत्री जिसके पास ऊर्जा के साथ-साथ नगर विकास जैसे जनता से जुड़े विभाग हैं। मंत्राी को अपने विभाग की कमियों को अपने स्तर पर दूर करना चाहिये न कि विपक्ष के नेताओं की तरह अपने ही विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने चाहिये। ए के शर्मा पूर्व नौकरशाह रहे हैं। उनके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ काम करने का लम्बा अनुभव भी है।
ऐसे में उनकी ये कवायदें सोशल मीडिया पर तो वाहवाही बटोर सकती हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही बयां करती है। घंटों की कटौती, ट्रिपिंग और लो-वोल्टेज की समस्या ने उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की पोल खोल दी है, जबकि मंत्री जी के जुबानी जमा-खर्च का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
सवाल यह है कि जब बिजली संकट इतना विकराल रूप ले चुका है, तो मंत्री जी का ध्यान ठोस समाधानों पर कम और फोटो-ऑप पर ज्यादा क्यों है? उनकी कथनी और करनी के बीच की यह खाई जनता को स्पष्ट दिख रही है। किसान, जिसे सिंचाई के लिए बिजली चाहिए, वह सूखती फसलों को देख रहा है। छोटे दुकानदार, जिनके फ्रिज और एसी बंद पड़े हैं, उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बच्चे गर्मी में पढ़ाई नहीं कर पा रहे और अस्पताल, जहां लगातार बिजली की जरूरत होती है, वहां जनरेटरों के भरोसे काम चल रहा है।
यह विडंबना ही है कि एक तरफ सरकार उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर मूलभूत सुविधा बिजली के लिए जनता को दर-दर भटकना पड़ रहा है। ऊर्जा मंत्री के बयानों में संकट की गंभीरता से निपटने की बजाय, बयानबाजी का हल्कापन अधिक नजर आता है। उन्हें समझना होगा कि अब जनता को कोरे आश्वासनों और नाटकीय दौरों की नहीं, बल्कि निर्बाध बिजली आपूर्ति की जरूरत है। अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो यह संकट केवल बिजली का नहीं, बल्कि सरकार के सुशासन के दावों की विश्वसनीयता का भी बन जाएगा।