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यूपी में नौकरशाहों और राजनेताओं के खुलेंगे कालेधन के गहरे राज!

बीबीडी ग्रुप की ₹100 करोड़ की बेनामी संपत्ति जब्ती के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री के परिवार पर शिकंजा
आयकर विभाग की कार्रवाई से हड़कम्प,कई बड़ेे नाम भी आयेंगे जांच के दायरे में

नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ताः आयकर विभाग द्वारा बाबू बनारसी दास (बीबीडी) ग्रुप के खिलाफ ₹100 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्तियां जब्ती की सनसनीखेज कार्रवाई ने न सिर्फ लखनऊ के व्यावसायिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अखिलेश दास के परिवार, विशेषकर उनकी पत्नी अलका दास और बेटे विराज सागर दास को भी जांच के दायरे में ला दिया है। सूत्रों की मानें तो ये संपत्तियां कई राजनेताओं और नौकरशाहों के काले धन का ठिकाना थीं, और अब एक-एक कर इनके नाम भी सामने आने की संभावना है। आयकर विभाग अब प्रदेश के बड़े पदों पर तैनात रहे नौकरशाहों और प्रदेश के राजनेताओं की भी कुंडली खंगालने में लग गया है।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के परिवार के पास राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के कई स्थानों में जमीनें है। लखनऊ में उनके पुत्र स्व अखिलेश दास ने पहले मेयर और फिर कांग्रेस के शासनकाल में केन्द्रीय मंत्री रहते हुए काफी जमींने खरीदी। उन्होंने बाबू बनारसी दास के नाम पर यूनीवर्सिटीें इंजीनियरिंग कालेज और डेंटल कालेज के जरिये अकूत सम्पत्ति बनाई और फिर उस धन को खपाने के लिए रियल स्टेट के धंधे में उतर गये। अपने सम्पर्कों के जरिये अखिलेश दास ने प्रदेश के कई नौकरशाहों और राजनेताओं का धन भी इसमे लगवाया। उनके आसामायिक निधन के बाद उनकी पत्नी अलका दास और पुत्र विराज दास अब रियल स्टेट कारोबार की सारी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इस परिवार से नौकरशाही में बड़ा नाम रहे पूर्व आईएएस नवनीत सहगल की काफी नजदीकी है। नवनीत सहगल वर्तमान में प्रसार भारती के चैयरमैन हैं। राजनीतिक रूप से भी यह परिवार अभी भी काफी मजबूत है। रायबरेली के बाहुबली विधायक रहे स्व अखिलेश सिंह की पुत्री का विवाह विराज दास से हुआ है। इसके अलावा लगभग हर दल के बड़े नेताओं से इस परिवार के नजदीकी संबंध हैं। ऐसे में आयकर विभाग की कार्रवाई से प्रदेश में हड़कम्प मच गया है।

राजधानी लखनऊ के रियल एस्टेट में भूचाल लाने वाले बाबू बनारसी दास (बीबीडी) ग्रुप की 100 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्तियों की जब्ती ने एक बड़े घोटाले की परतें खोल दी हैं। आयकर विभाग की इस कार्रवाई से न सिर्फ पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अखिलेश दास के परिवार और उनके करीबी घेरे पर शिकंजा कसा है, बल्कि अब पूर्व आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल जैसे ब्यूरोक्रेट्स के नाम भी इस मामले से जुड़ते दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो इन संपत्तियों में कई रसूखदार राजनेताओं और नौकरशाहों के काले धन का निवेश था, और जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, सत्ता के गलियारों में बड़े नाम बेनकाब होने की आशंका बढ़ती जा रही है।

काले धन का मकड़जालः नौकरशाहों की मिलीभगत और दलित कर्मचारियों का इस्तेमाल

आयकर विभाग की गहन जांच में यह सामने आया है कि इन करोड़ों की संपत्तियों को बीबीडी ग्रुप के कर्मचारियों, जिनमें चपरासी प्रमोद कुमार जैसे आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी शामिल हैं, के नाम पर खरीदा गया था। इन कर्मचारियों की हैसियत इतनी नहीं थी कि वे इतनी बड़ी रकम की प्रॉपर्टी खरीद सकें। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कैसे प्रभावशाली लोगों ने अपने अवैध धन को छिपाने और अपनी पहचान गुप्त रखने के लिए कमजोर वर्ग का दुरुपयोग किया।

जांच के दौरान, चपरासी प्रमोद कुमार के तीन बैंक खातों में 2020-21 में ₹5.81 करोड़ और फिर ₹69.73 लाख नकद जमा होने का खुलासा हुआ। यह सीधे तौर पर बेहिसाबी नकदी का मामला है, जिसका उपयोग बेनामी संपत्ति खरीदने में किया गया। आयकर विभाग ने यह भी पाया कि कई संपत्तियों की खरीद पूरी तरह से नकद में की गई थी। जब विभाग का शिकंजा कसने लगा, तो बीबीडी ग्रुप ने इन बेनामी जमीनों को आनन-फानन में बेचना शुरू कर दिया, और बेची गई संपत्तियों के भुगतान की रकम को बैंक से अगले ही दिन नकद निकाल लिया गया ताकि कोई निशान न बचे। यह सब काले धन को ठिकाने लगाने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था।

पूर्व आईएएस नवनीत सहगल की भूमिका पर सवाल?

हालांकि आयकर विभाग ने अभी तक सीधे तौर पर किसी अधिकारी का नाम नहीं लिया है, लेकिन लखनऊ के सियासी और प्रशासनिक गलियारों में पूर्व आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल का नाम इस प्रकरण से जोड़ा जा रहा है। नवनीत सहगल, जो उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में अपनी लंबी और प्रभावशाली पारी के लिए जाने जाते हैं, कई सरकारों में प्रमुख पदों पर रहे हैं। उनके कार्यकाल के दौरान, कई बड़े रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को अनुमति मिली थी, और बीबीडी ग्रुप से उनके करीबी संबंध भी जगजाहिर रहे हैं। सहगल इस समय प्रसार भारती के चैयरमैन हैं।

सूत्रों का कहना है कि विभाग की जांच उन सभी प्रभावशाली व्यक्तियों पर केंद्रित है, जिनकी बीबीडी ग्रुप से वित्तीय या व्यावसायिक सांठगांठ रही है। बीबीडी ग्रुप के मालिकों से लंबी पूछताछ में ऐसे कई बड़े नामों का खुलासा हुआ है, जिनमें कुछ सेवानिवृत्त और कुछ मौजूदा नौकरशाह भी शामिल हैं। यह संभावना है कि सहगल जैसे प्रभावशाली नौकरशाहों का इस बेनामी लेनदेन के नेटवर्क में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हाथ रहा हो। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन विभाग की जांच की दिशा इस ओर इशारा कर रही है।

आयकर विभाग ने लखनऊ के सभी उप निबंधक कार्यालयों को नोटिस भेजकर इन 20 जमीनों की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगा दी है। जिन संपत्तियों को बीबीडी ग्रुप द्वारा पहले ही बेचा जा चुका है, उनकी भी पूरी जानकारी खंगाली जा रही है।

यह कार्रवाई सिर्फ बीबीडी ग्रुप तक सीमित नहीं रहने वाली है, बल्कि यह उन राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य रसूखदार लोगों के लिए भी एक बड़ी चेतावनी है, जिन्होंने अपने काले धन को छिपाने के लिए ऐसे बड़े समूहों का इस्तेमाल किया। आयकर विभाग की बेनामी संपत्ति निषेध इकाई इस मामले की गहन जांच कर रही है, और आने वाले दिनों में कई बड़े नामों का खुलासा हो सकता है, जिससे लखनऊ के राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र पर बड़ा भूचाल आना तय है।

₹100 करोड़ से अधिक का घोटालाः अयोध्या रोड पर प्रमुख संपत्तियां

आयकर विभाग द्वारा जब्त की गई ये संपत्तियां लगभग 8 हेक्टेयर में फैली हैं। सर्किल रेट के अनुसार इनकी कीमत ₹20 करोड़ के आसपास है, लेकिन लखनऊ-अयोध्या हाईवे जैसे प्रमुख लोकेशन (जैसे उत्तरधौना, जुग्गौर, 13 खास, सरायशेख और सेमरा गाँव) पर होने के कारण इनका वास्तविक बाजार मूल्य ₹100 करोड़ से कहीं अधिक है। इन जमीनों को 2005 से 2015 के बीच खरीदा गया था, और कई पर बीबीडी ग्रुप के अधूरे प्रोजेक्ट्स भी चल रहे हैं।

आयकर विभाग की सीधी कार्रवाईः राजनेताओं-नौकरशाहों पर गिरेगी गाज?

आयकर विभाग ने लखनऊ के सभी उप निबंधक कार्यालयों को नोटिस भेजकर इन 20 जमीनों की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। विभाग अब उन संपत्तियों की भी जानकारी खंगाल रहा है जो पहले ही बेची जा चुकी हैं, यह जांचने के लिए कि कहीं इन्हें जानबूझकर करीबी लोगों को तो नहीं बेचा गया।

यह कार्रवाई सिर्फ बीबीडी ग्रुप के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह उन राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए भी एक कड़ी चेतावनी है जो अपने अवैध धन को छिपाने के लिए ऐसे बड़े समूहों का इस्तेमाल करते हैं। आयकर विभाग की बेनामी संपत्ति निषेध इकाई इस मामले की गहन जांच कर रही है, और उम्मीद है कि जल्द ही कुछ बड़े नामों का खुलासा हो सकता है, जिनमें सक्रिय और सेवानिवृत्त नौकरशाहों तथा वर्तमान व पूर्व राजनेताओं के नाम शामिल हो सकते हैं। यह बताता है कि सरकार काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम में कोई समझौता नहीं करेगी।

इस घोटाले ने यह साफ कर दिया है कि कैसे प्रभावशाली लोग अपने आर्थिक लाभ के लिए समाज के कमजोर तबकों का शोषण करते हैं। आयकर विभाग की यह कार्रवाई ऐसे मामलों के लिए एक सख्त चेतावनी है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा या रसूखदार क्यों न हो, बेनामी संपत्ति रखने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। क्या यह कार्रवाई लखनऊ के पावर कॉरिडोर में बड़े पैमाने पर भूचाल लाएगी? क्या कुछ बड़े सफेदपोश चेहरों से नकाब उतरेगा? आने वाला समय ही बताएगा।

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