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ओबीसी आरक्षण: लोकसभा में सर्वसम्मति से पास हुआ संविधान संशोधन बिल

नई दिल्ली,नवसत्ता : लोकसभा में सोमवार को संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया गया। इसे केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ने सदन में प्रस्तुत किया। जिसके बाद सर्वसम्मति से बिल पास हो गया। विपक्षी पार्टियों ने भी इस विधेयक का समर्थन किया है।

संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर मुहर लगने के बाद राज्यों के पास ओबीसी वर्ग में अपनी जरूरतों के मुताबिक, जातियों को अधिसूचित करने की शक्ति मिलेगी। इससे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय हरियाणा में जाट समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का मौका मिल सकता है।

दरअसल राज्य सरकारें ओबीसी की सूची का निर्धारण खुद करती हैं। जबकि केंद्रीय सेवाओं के लिए केंद्र अलग से करता है। न्यायालय ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है।

ओबीसी आरक्षण पर नया विधेयक: आखिर कहां हैं इसके सियासी फायदे?

ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर आज लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पास हो गया। अब राज्यसभा में भी इसके आसानी से पारित होने के आसार है क्योंकि सभी विपक्षी दल इस विधेयक पर एक साथ हैं।

केंद्र सरकार भले ही जनगणना में ओबीसी को शामिल करने को लेकर आनाकानी कर रही हो, लेकिन इस संविधान संशोधन विधेयक के जरिए उसने ओबीसी को साधने की कोशिश है। यदि यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है कि ओबीसी को लेकर सरकार का यह दूसरा बड़ा कदम माना जाएगा। इसका फायदा भाजपा को महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा विधानसभा चुनाव समेत 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।

अभी गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा तीनों जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
इससे पहले विपक्षी दलों ने केंद्र पर अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की पहचान करने और उन्हें सूचीबद्ध करने की राज्यों की शक्ति को छीनकर संघीय ढांचे पर हमला करने का आरोप लगाया था। अब विपक्षी दल इस मुद्दे पर सरकार के साथ है। इसलिए सरकार आसानी से इस विधेयक को पारित करा सकती है क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण संबंधी विधेयक का विरोध करने का जोखिम नहीं उठाएगा।

साथ ही महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और कर्नाटक की राजनीति पर दूरगामी असर पडऩे की संभावना है। इससे लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल होने का मौका मिल सकता है। जैसे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय ओबीसी वर्ग में शामिल किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के ओबीसी सूची तैयार करने पर लगा दी थी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने पांच मई के अपने एक फैसले में राज्यों के ओबीसी सूची तैयार करने पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि केवल केंद्र सरकार को ही ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार होगा। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मराठा वर्ग को आरक्षण देने वाला कोटा सर्वसम्मति से रद्द कर दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा आरक्षण से 50 फीसदी सीमा का साफ तौर पर उल्लंघन हो रहा है।

दरअसल, मराठा समुदाय को महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने आरक्षण दिया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर राज्यों को दोबारा यह अधिकार देने के ही लिए ही 127वां संविधान संशोधन विधेयक लाया गया। खतरा यह था कि यदि राज्यों की सूची खत्म कर दी जाती तो तकरीबन 671 ओबीसी समुदायों के लोग शैक्षणिक संस्थानों और नियुक्तियों में आरक्षण से महरुम रह जाते।

विधेयक में की गई है यह व्यवस्था

राज्यों की ओर से बनाई गई ओबीसी श्रेणी की सूची उसी रूप में रहेगी जैसा यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले थी। राज्य सूची को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा। इस सूची को राज्य विधानसभा अधिसूचित कर सकेगी।

जबकि इससे पहले 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338बी और 342ए को जोड़ा गया। 338बी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है। वहीं, 342ए राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है। इन वर्गों को अधिसूचित करने के लिए वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है।

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