हटाए गए मतदाताओं की सूची 19 अगस्त तक सार्वजनिक करने का निर्देश
संवाददाता
नई दिल्ली, नवसत्ता : बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के तहत ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी किया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने लगातार तीसरे दिन सुनवाई के बाद चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह हटाए गए मतदाताओं की सूची, उनके नाम हटाने के कारणों सहित, 19 अगस्त की शाम 5 बजे तक जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर सार्वजनिक करे।
सूची बूथ-वार और ईपीआईसी नंबर के आधार पर सर्च योग्य होगी। पारदर्शिता और निष्पक्षता पर जोरसुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में मतदाता सूची से इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने को गंभीर मामला माना और पारदर्शिता पर बल दिया। कोर्ट ने कहा कि इससे मतदाताओं के मताधिकार पर असर पड़ सकता है। इसलिए, प्रभावित लोगों को समय पर जानकारी और दावा दर्ज करने का मौका मिलना चाहिए।
कोर्ट के प्रमुख निर्देश इस प्रकार हैं:
हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की बूथ-वार सूची, जिसमें नाम हटाने का कारण (जैसे मृत्यु, प्रवास, या दोहराव) उल्लेखित हो, जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर प्रकाशित होगी। यह सूची ईपीआईसी नंबर से सर्च करने योग्य होगी। सूची का व्यापक प्रचार स्थानीय भाषाओं और अंग्रेजी समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो, और जिला निर्वाचन अधिकारियों के सोशल मीडिया पेजों (यदि उपलब्ध हों) के माध्यम से किया जाएगा। सूची को बूथ स्तर के अधिकारियों द्वारा पंचायत भवनों और प्रखंड विकास कार्यालयों के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया जाएगा, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग इसे देख सकें।
आपत्ति दर्ज करने के लिए आधार कार्ड को वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा, और सार्वजनिक नोटिस में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख होगा। चुनाव आयोग को सभी बूथ और जिला स्तर के अधिकारियों से अनुपालन रिपोर्ट एकत्र कर 22 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई में पेश करनी होगी।
बिहार एसआईआर विवाद की पृष्ठभूमि
24 जून 2025 को शुरू हुई एसआईआर प्रक्रिया के तहत 1 अगस्त 2025 को जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाए गए। चुनाव आयोग के अनुसार, इनमें 22 लाख मृत, 36 लाख राज्य से बाहर चले गए या सत्यापन के दौरान अनुपलब्ध, और 7 लाख दोहरे पंजीकरण के कारण हटाए गए। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), तृणमूल कांग्रेस, राजद, और पीयूसीएल जैसे संगठनों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं। इनका दावा है कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाना संदिग्ध है और यह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को प्रभावित करने की साजिश हो सकती है। याचिकाकर्ताओं ने प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और बूथ स्तर के अधिकारियों की मनमानी का आरोप लगाया।
कोर्ट की टिप्पणियां और सवाल
सुनवाई के दौरान, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “यह प्रक्रिया नागरिकों के मताधिकार से वंचित करने जैसे गंभीर परिणाम ला सकती है। पारदर्शिता जरूरी है।”जस्टिस बागची ने पूछा कि जब नाम नोटिस बोर्ड पर चस्पा किए जा सकते हैं, तो वेबसाइट पर प्रकाशन क्यों मुश्किल है? कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि मृत घोषित किए गए मतदाताओं के परिवारों को इसकी जानकारी कैसे दी गई। चुनाव आयोग ने दलील दी कि राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की जानकारी दी गई थी और प्रभावित मतदाता 1 सितंबर तक फॉर्म 6 भरकर पुन: पंजीकरण करा सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस प्रक्रिया को अपर्याप्त माना।
विपक्ष का स्वागत, सरकार पर निशाना
विपक्षी दलों ने फैसले का स्वागत किया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे “संविधान की रक्षा” और “उम्मीद की किरण” बताया। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों की चालों से गणराज्य को बचाने का यह लंबा संघर्ष है।” राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे “वोटबंदी” करार देते हुए कहा कि बिना पर्याप्त दस्तावेजों के नाम हटाए जा रहे हैं, जिससे गरीब और कमजोर वर्ग प्रभावित हैं। वैशाली की सांसद वीणा देवी ने स्वीकार किया कि कुछ गलतियां हुई हैं, जिन्हें सुधारना जरूरी है।
अगली सुनवाई और अपेक्षाएं
सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 22 अगस्त 2025 को निर्धारित की है, जिसमें चुनाव आयोग को अनुपालन रिपोर्ट पेश करनी होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने की बात साबित हुई, तो वह तत्काल हस्तक्षेप करेगा। यह आदेश बिहार में मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता को लेकर चल रहे विवाद में महत्वपूर्ण कदम है। यह प्रभावित मतदाताओं को अपने अधिकारों की रक्षा का अवसर देगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को मजबूत करेगा।