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आबादी से ज़्यादा निवास प्रमाण पत्र: सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की नीयत पर सवाल, याचिकाकर्ता ने खोला ‘कच्चा चिट्ठा’


संवाददाता 

नई दिल्ली, नवसत्ता : बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर उपजे विवाद ने आज चुनाव आयोग (EC) को सीधे सुप्रीम कोर्ट के कठघरे में ला खड़ा किया। ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) नामक याचिकाकर्ता एनजीओ ने शीर्ष अदालत में चुनाव आयोग के उस तर्क को “अत्यंत असंगत और हास्यास्पद” बताया, जिसमें आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को अकेले वैध पहचान दस्तावेज मानने से इनकार किया गया है। ADR ने दावा किया कि बिहार की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ है, जबकि चुनाव आयोग के हलफनामे के अनुसार, 2011 से 2025 के बीच 13.89 करोड़ निवास प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं – यानी आबादी से भी ज़्यादा!

यह मामला तब और गरमा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को चुनाव आयोग से पूछा था कि जब आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज अन्य प्रमाणपत्रों जैसे निवास प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आधारभूत माने जाते हैं, तो फिर उन्हें SIR में वैध क्यों नहीं माना जा सकता। चुनाव आयोग ने अपने जवाब में इन दस्तावेजों में “फर्जीवाड़े की संभावना” को इसका कारण बताया था।

हालांकि, ADR ने चुनाव आयोग की इस दलील को सिरे से नकार दिया। एनजीओ ने तर्क दिया कि सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों में से कोई भी फर्जी तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, और यह तर्क “आधारहीन और भेदभावपूर्ण” है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जब निवास प्रमाण पत्र की संख्या ही राज्य की आबादी से अधिक है, तो राशन कार्ड को केवल फर्जीवाड़े की आशंका के आधार पर खारिज करना कैसे तर्कसंगत हो सकता है।

आधार पर भी आयोग की घेराबंदी

ADR ने आधार कार्ड को लेकर भी चुनाव आयोग पर निशाना साधा। उन्होंने अदालत को बताया कि खुद आयोग की ओर से बताए गए 11 दस्तावेजों में से निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और पासपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज प्राप्त करने के लिए आधार को प्राथमिक प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। ऐसे में, यदि आधार के जरिए ही ये दस्तावेज बन रहे हैं, तो फिर आधार को ही SIR में खारिज करना “हास्यास्पद” और “असंगत” है।

राजनीतिक सहमति के दावे पर भी सवाल

चुनाव आयोग ने यह दावा किया था कि SIR को लेकर सभी राजनीतिक दल उसके साथ हैं। इस पर भी ADR ने आपत्ति जताई और कहा कि “SIR जैसे नए अभ्यास की मांग किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं की थी।” एनजीओ ने स्पष्ट किया कि विपक्षी दलों की मुख्य चिंताएं फर्जी मतदाताओं को जोड़ने और वास्तविक वोटरों के नाम हटाने को लेकर थीं, न कि नागरिकता की नए सिरे से जांच को लेकर।

NGO ने सुप्रीम कोर्ट को आगाह किया कि जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में नहीं मिलेंगे, उनके पास ना तो अपील दायर करने, ना ही अपनी नागरिकता साबित करने, और फिर से नाम जुड़वाने के लिए पर्याप्त समय होगा, जबकि बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में संभावित हैं।

कुल मिलाकर, SIR के तहत मतदाता सूची की सफाई के नाम पर चुनाव आयोग की नीयत और तर्कशक्ति दोनों ही सुप्रीम कोर्ट में सवालों के घेरे में आ गई हैं। ADR ने आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे मूलभूत दस्तावेजों को खारिज किए जाने को तर्कहीन बताते हुए आयोग का “कच्चा चिट्ठा” खोल कर रख दिया है। अब अदालत के फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जो इस पूरे विवाद का भविष्य तय करेगा और बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं के अधिकारों पर गहरा असर डालेगा।

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