एसजीपीजीआई लखनऊ में अरटिकुलेटिंग रोबोटिक आर्म (एंडो रिस्ट) से हुई पहली सर्जरी, महिला मरीज को मिला नया जीवन
नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ता। रोबोटिक सर्जरी के नाम पर लाखों का बिल वसूलने वालों के दिन अब लदने वाले हैं। भारतीय कंपनी द्वारा लॉन्च आर्टिकुलेटिंग आर्म नाम की ऐसी तकनीक इजाद की है जिसकी मदद से सर्जन जटिल से जटिल आपरेशन बहुत आसानी से कर सकते हैं वो भी मात्र पांच से दस हजार के अतिरिक्त खर्च से।
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई) लखनऊ ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित किया है। संस्थान में पहली बार प्रोफेसर डॉक्टर अशोक कुमार और उनकी टीम के द्वारा रोबोटिक आर्म का उपयोग करके एक जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न की गई, जिससे मरीज को त्वरित रिकवरी और कम जटिलताओं का लाभ मिला। और दो दिन बाद मरीज को डिस्चार्ज किया जा सका।

यह ऐतिहासिक सर्जरी 40 वर्षीय पुष्पा सरोज की थी, जो लंबे समय से पेट में भारीपन (एपिगैस्ट्रिक फुलनेस), और बार-बार होने वाले सीने के संक्रमण से पीड़ित थीं। उन्हें ग्रेड 4 (गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग) की समस्या थी, जिसके कारण ये सभी लक्षण उत्पन्न हो रहे थे।
अब तक, अधिकांश फंडोप्लीकेशन सर्जरी लैप्रोस्कोपिक या सर्जिकल रोबोट विधियों का उपयोग करके की जाती रही हैं। ये दोनों ही न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी की श्रेणी में आती हैं, जिनके परिणामस्वरूप कम निशान, कम जटिलताएं और सर्जरी के बाद रोगी की शीघ्र रिकवरी होती है।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की तरह, रोबोटिक सर्जरी भी एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है जिसे सर्जन द्वारा किया जाता है। हालांकि, पारंपरिक रोबोटिक सर्जरी में सर्जन एक कंसोल पर बैठकर रोबोटिक उपकरणों को नियंत्रित करते हैं, जो मरीज की ऑपरेटिंग टेबल से दूर होता है। ये रोबोटिक उपकरण छोटे छेदों (पोर्ट) के माध्यम से पेट के अंदर डाले जाते हैं और सर्जन के हाथों की गति के साथ सिंक्रनाइज होते हैं। वहीं, लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान सर्जन मरीज के बगल में खड़े होकर सीधे लैप्रोस्कोपिक उपकरणों का उपयोग करते हैं। बाकी सर्जरी और उनके परिणाम लगभग समान होते हैं।
डॉ अशोक कुमार ने बताया कि पारंपरिक सर्जिकल रोबोट के फायदों में 4 K विजन शामिल है, जो आजकल अधिकांश ऑपरेटिंग टेलीस्कोप में उपलब्ध है। रोबोटिक उपकरणों की 360 डिग्री दिशाओं में स्वतंत्र रूप से घूमने की क्षमता एक बड़ा लाभ था, जिसकी लैप्रोस्कोपिक उपकरणों में कमी थी।
लेकिन इस नई और उन्नत अभिनव तकनीक रोबोटिक आर्म (जो कि 360 डिग्री ऑपरेट कर सकती है) के साथ, सर्जन अब पेट के सबसे कठिन स्थानों और तंग जगहों में भी उसी गति की स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकते हैं। इससे सर्जन सभी जटिल लैप्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं को अत्यधिक सटीकता और आसानी से कर सकते हैं। यही नहीं यह रोबोटिक आर्म के जरिए सर्जन बीमार अंगों के स्पर्श संवेदना ( टेक्टाइल सेंसेशन) को महसूस कर सकता है जो कि रोबोटिक सर्जरी में संभव नहीं है।

इस नई रोबोटिक आर्म की सबसे खास बात इसकी किफायती कीमत है। जहां पारंपरिक रोबोटिक सर्जरी में प्रत्येक सर्जरी के लिए न्यूनतम एक लाख से डेढ़ लाख रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगता है, वहीं इस रोबोटिक आर्म से सर्जरी करने पर उसी ऑपरेशन के लिए केवल पांच हज़ार से दस हज़ार रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा है। इसका मतलब है कि एक जैसी प्रक्रिया और एक जैसे परिणामों के साथ, यह तकनीक मरीजों के लिए अधिक सुलभ होगी।
प्रोफेसर डॉ अशोक कुमार का कहना है कि इस नई अभिनव सर्जिकल तकनीक के लिए अनुभव, कौशल और दृढ़ता के साथ-साथ कुछ प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। यह रोबोटिक आर्म भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखती है, जिससे उन्नत सर्जरी अधिक किफायती और सुलभ बन जाएगी।