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यूपी में सात साल से शिक्षक भर्ती नहीं, अभ्यर्थियों में आक्रोश; प्रयागराज में अनिश्चितकालीन धरना

संवाददाता

प्रयागराज,नवसत्ता: शिक्षक भर्ती के लिए अपनी उम्मीदों को सात वर्षों से ढो रहे अभ्यर्थियों का गुस्सा आखिरकार सड़कों पर फूट पड़ा। प्रयागराज में उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग कार्यालय के सामने हजारों की संख्या में डीएलएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी धरना देने पहुंचे हैं। सुबह से ही सैकड़ों युवक-युवतियों ने दफ्तर के सामने डेरा जमा लिया। हाथों में तख्तियां, पोस्टर और नारों से गूंजता यह इलाका मानो आज बेरोजगार युवाओं की आवाज़ में बदल गया हो।

धरना स्थल की तस्वीरें

धरना स्थल पर “योगी सरकार होश में आओ”, “हमें रोजगार चाहिए, सिर्फ आश्वासन नहीं”, “शिक्षक भर्ती का विज्ञापन जारी करो” जैसे नारों की गूंज सुनाई दी। अभ्यर्थी हाथों में ‘शिक्षा माफियाओं की तानाशाही नहीं चलेगी’ और ‘हम डिग्री लेकर दर-दर भटकने को मजबूर’ लिखी तख्तियां लेकर खड़े थे। कई अभ्यर्थी सरकार की नीति पर नाराजगी जताते हुए बोले, “हमें गुमराह किया गया है। भर्ती का विज्ञापन सोशल मीडिया पर डाल कर बाद में डिलीट कर देना हमारे सपनों के साथ खिलवाड़ है।”

बेरोजगारी का दंश और मन की बात

धरना स्थल पर मौजूद साक्षी त्रिपाठी (डीएलएड पासआउट, वर्ष 2021) ने कहा, “हर साल 2.35 लाख से ज्यादा डीएलएड प्रशिक्षित होते हैं, लेकिन भर्ती नहीं होने से हम सबका भविष्य अधर में है। हमारे घर वाले भी अब ताने देते हैं कि पढ़-लिखकर क्या मिला?”

वहीं अमन यादव (डीएलएड पासआउट, वर्ष 2020) ने कहा, “हम सरकार से मांग कर-करके थक चुके हैं। अब तो जब तक विज्ञापन जारी नहीं होगा, धरना जारी रहेगा।”

धरने में महिलाएं भी बड़ी संख्या में

धरने में पुरुषों के साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। कुछ महिलाएं अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर आईं। एक प्रदर्शनकारी महिला ने कहा, “हम घर और बच्चों को छोड़कर यहाँ आये हैं क्योंकि हमारी जिंदगी दांव पर लगी है।”

प्रशासन की चुप्पी

धरना स्थल पर पुलिस की हल्की मौजूदगी है लेकिन किसी अधिकारी ने अब तक आकर प्रदर्शनकारियों से बात नहीं की। प्रदर्शनकारी बार-बार सरकार से अपील कर रहे हैं कि “कोई भी जिम्मेदार अधिकारी आकर हमारी बात सुने और शिक्षक भर्ती का विज्ञापन तुरंत जारी किया जाए।”


यह धरना उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की विकराल समस्या और शिक्षकों की भारी कमी का प्रतीक बनकर उभरा है। सरकार की चुप्पी और अभ्यर्थियों की आक्रोशपूर्ण आवाज़ें दोनों इस आंदोलन की गंभीरता को और बढ़ा रही हैं।

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