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आखिर कौन रच रहा है योगी सरकार को बदनाम करने की साजिश ?

केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के बाद अब संजय निषाद ने भी आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरा

नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ताः पहले केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) प्रमुख अनुप्रिया पटेल और अब प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने जिस तरह ओबीसी मुद्दे पर योगी सरकार को घेरा है,उससे साफ है कि योगी सरकार को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी गई है और इस बार मुकाबले में विपक्ष नहीं सरकार के अपने ही हैं। केन्द्र व राज्य सरकार के मंत्रियों के जरिये योगी सरकार को घेरने की कोशिश एक बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं।

लगता है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद देश में बढ़ती उनकी लोकप्रियता अब भाजपा के अंदर और उनके सहयोगी दलों को भी रास नहीं आ रही है। चुनाव पूर्व भी इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि चुनाव के बाद उन्हें अपने पद से हटा दिया जाएगा। चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी हर जनसभा में इस बात को जोर-शोर से उठाते रहे हैं। चुनाव के बाद जिस तरह से कल केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने और आज राज्य के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरा है उससे साफ है कि योगी सरकार को बदनाम करने की साजिश अपनों के द्वारा ही की जा रही है।
शुक्रवार को केंद्र और यूपी सरकार में बीजेपी की सहयोगी और मोदी सरकार में मंत्री अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इंटरव्यू वाली नियुक्तियों को लेकर सवाल उठाए । अनुप्रिया ने पत्र में साक्षात्कार वाली नौकरियों में पिछड़े और दलितों की अनदेखी की बात कही है। इस पत्र के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सफाई जारी करते हुए अनदेखी की बात को नकारा है। आयोग की ओर से कहा गया है कि आरक्षित पद कैरी फॉरवार्ड की श्रेणी में आते हैं और उन्हें परिवर्तित करने का कोई प्रावधान नहीं।

इस बीच आज निषाद पार्टी के मुखिया और यूपी के मंत्री संजय निषाद ने भी पिछड़ों के आरक्षण के मुद्दे पर अपनी सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा, .कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी आरक्षण के कारण ही खत्म हुईं। आरक्षण से जुड़ी विसंगति को दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस मामले पर चर्चा होनी चाहिए।

संजय निषाद ने कहा किन परिस्थितयों में अनुप्रिया ने पत्र लिखा यह तो वही बता पाएंगी लेकिन इस आरक्षण के मुद्दे पर सपा, बसपा और कांग्रेस खत्म हो गई। आरक्षण संविधान का दिया हुआ हक है। आरक्षण में विसंगति को दूर करना चाहिए। मेरा मानना है कि कुछ कमियां हैं तो दूर हो जाएं। कई मुद्दे चर्चा से हल हो जाते हैं। सरकार में रहते हैं तो कई बार मुद्दों का चर्चा से समाधान हो जाता है। इस पर चर्चा होनी चाहिए कैसे ये सब हो रहा है। निषादों के आरक्षण के मुद्दे पर भी चर्चा होनी चाहिए।

इस बीच सरकार की ओर से भी अनुप्रिया पटेल को पत्र लिखा गया है। जिसमें कहा गया कि साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी का क्रमांक, नाम और आरक्षण और श्रेणी जैसी चीजें कवर्ड होती हैं। यहां सवाल ये उठता है कि क्या अनुप्रिया पटेल को बीते सात सालों में इस बात की जानकारी नहीं थी। वे पत्र को मीडिया में वायरल करने के बजाय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर भी अपनी बात रख सकती थी। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और अगले ही दिन राज्य के कैबिनेट मंत्री द्वारा इस मुद्दे को उठाया जाना एक साजिश का ही हिस्सा लगता है।

बहरहाल इस सवाल-जवाब के बीच सूबे की सियासत में उबाल आ गया । माना जा रहा है कि पत्र के जरिये आरक्षण का मुद्दा उठाकर सीएम योगी के खिलाफ साजिश रची जा रही है। प्रदेश में पिछड़ों और दलितों की राजनीतिक गोलबंदी का ही परिणाम था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। ऐसे में भाजपा के भीतर सीएम योगी आदित्यनाथ का विरोध कर रहे नेताओं को हमला करने का मौका मिल गया है।

अनुप्रिया पटेल हों या संजय निषाद उनके पत्र लिखने और सरकार को घेरने वाले बयानों के पीछे भी भाजपा की आंतरिक राजनीति को जिम्मेदार माना जा रहा है। अब देखना यह है कि सीएम योगी अपने खिलाफ चलाये जा रहे इस अभियान से कैसे निपटते हैं।

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