संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ता । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया है। विपक्ष ने इस अप्रत्याशित घटना पर सरकार के रवैये पर तीखे सवाल उठाते हुए इसे ‘लोकतंत्र के लिए काला दिन’ करार दिया है। राजधानी से लेकर राज्यों तक, राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है और हर कोई इस इस्तीफे के पीछे की असली वजह जानने को बेताब है। विपक्षी नेता और कई विशेषज्ञ इस इस्तीफे के पीछे एक गहरी साजिश या बड़े राजनीतिक मतभेद की आशंका जता रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि सोमवार शाम तक पूरी तरह सक्रिय दिखने वाले धनखड़ ने अगले कुछ ही घंटों में अपने पद से इस्तीफा दे दिया?
अचानक इस्तीफे ने चौंकाया, अटकलों का दौर शुरू
राष्ट्रपति भवन से जारी एक संक्षिप्त बयान में जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की घोषणा की गई। इस अचानक हुए इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक पंडितों को चौंकाया, बल्कि आम जनता के बीच भी गहरी चिंता पैदा कर दी है। धनखड़ का कार्यकाल अभी पूरा नहीं हुआ था, ऐसे में उनके इस निर्णय ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह व्यक्तिगत कारण है, या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक दबाव या मतभेद है?
विपक्ष हमलावर: “सरकार लोकतंत्र का गला घोंट रही है!”
विपक्षी दलों ने इस मामले पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह सिर्फ एक इस्तीफा नहीं, बल्कि सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति का प्रमाण है। धनखड़ जी का अचानक जाना कई रहस्यों को उजागर करता है। सरकार को तुरंत स्पष्टीकरण देना चाहिए कि आखिर उन्हें इस्तीफा देने पर क्यों मजबूर किया गया।”
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, “धनखड़ जी का इस्तीफा एक गंभीर संकेत है। क्या सरकार संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों पर दबाव डाल रही है? यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।” वहीं, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने इसे “सरकार द्वारा संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का एक और प्रयास” बताया।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने धनखड़ को किसी अज्ञात कारणवश पद छोड़ने पर मजबूर किया है, और यह कदम संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार को इस मामले पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए और जनता को सच्चाई बतानी चाहिए।
सरकार साधे है चुप्पी, बढ़ता जा रहा है दबाव
जहां एक ओर विपक्ष हमलावर है, वहीं दूसरी ओर सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। प्रधानमंत्री कार्यालय या किसी भी वरिष्ठ मंत्री की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। सरकार की यह चुप्पी विपक्ष के आरोपों को और बल दे रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार की इस चुप्पी से संकेत मिलता है कि इस इस्तीफे के पीछे कुछ ऐसा है, जिसे सरकार अभी सार्वजनिक नहीं करना चाहती।
आगे क्या? सदन में उठ सकता है बड़ा तूफान
संसद सत्र में यह मुद्दा गरमाया रह सकता है। विपक्ष ने पहले ही इस मामले पर सरकार को घेरने की रणनीति बना ली है। उम्मीद है कि संसद में इस मुद्दे पर जोरदार हंगामा होगा और सरकार पर जवाब देने का दबाव बनाया जाएगा। धनखड़ के इस्तीफे ने देश की राजनीति में एक नया अध्याय खोल दिया है, जिसके दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
सेहत का दावा, लेकिन हकीकत कुछ और?
धनखड़ ने अपने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन उनके हालिया क्रियाकलाप इस दावे से मेल नहीं खाते। इस्तीफे से कुछ ही घंटे पहले, उन्होंने विपक्षी सांसदों से मुलाकात की और संसद की कार्यवाही का बखूबी संचालन किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेहत को लेकर कोई शिकायत नहीं की।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर अपनी हैरानी जताते हुए कहा, “मैं शाम 5 बजे तक उनके साथ था और 7:30 बजे फोन पर भी बात हुई। उनका अचानक इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं लगता।” रमेश के इस बयान ने संदेह को और बढ़ा दिया है।
जयपुर दौरा रद्द नहीं, फिर अचानक कैसे बिगड़ गई तबियत?
इतना ही नहीं, धनखड़ का 23 जुलाई को जयपुर का प्रस्तावित दौरा भी रद्द नहीं किया गया था, जिसकी बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी। यह बात भी इस्तीफे के पीछे के ‘स्वास्थ्य कारणों’ पर सवाल उठाती है। अगर उनकी सेहत सचमुच इतनी खराब थी कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, तो एक दिन बाद का महत्वपूर्ण दौरा रद्द क्यों नहीं किया गया?
कुछ नेताओं ने तो यहां तक अटकलें लगाई हैं कि यह इस्तीफा शीर्ष नेतृत्व के साथ किसी बड़े टकराव का नतीजा हो सकता है। सवाल उठ रहे हैं कि सोमवार शाम 6-7 बजे तक जगदीप धनखड़ एकदम सक्रिय थे, मगर अचानक तीन घंटे में ऐसा क्या हुआ कि उन्हें इस्तीफा देने का निर्णय लेना पड़ा?
क्यों नहीं पच रहा इस्तीफा? कई अनसुलझे सवाल
जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे की बात न पचने के कई कारण हैं:
- संसद सत्र से पहले क्यों नहीं दिया इस्तीफा? अगर सेहत ही असली कारण था, तो उन्होंने संसद सत्र शुरू होने से पहले ही इस्तीफा क्यों नहीं दिया? वह उसी दिन संसद में सक्रिय थे और कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं जताई।
- मानसून सत्र के पहले दिन के बाद क्यों? उनका इस्तीफा मानसून सत्र के पहले दिन के बाद आया। अगर उनकी सेहत सच में अधिक खराब थी, तो वह पूरे दिन इतने सक्रिय कैसे दिखे?
- क्या पूर्वनियोजित था फैसला? अगर उनका फैसला पूर्वनियोजित था, तो उन्होंने संसद सत्र में इसका कोई इशारा क्यों नहीं दिया?
- क्या सरकार से टकराव था वजह? सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार के साथ किसी मसले पर टकराव इसकी वजह था? क्या किसानों के मुद्दे पर धनखड़ सरकार से नाराज थे?
कार्यकाल बाकी था, अब कौन संभालेगा कमान?
जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था। इस हिसाब से उनका अभी दो साल का कार्यकाल बाकी था। इससे पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे थे। उनके कार्यकाल में उनके बेबाक बयानों और विपक्ष के साथ तनाव ने कई बार सुर्खियां बटोरीं। विपक्ष ने उन पर राज्यसभा में पक्षपात का आरोप भी लगाया था।
अब नजरें इस बात पर हैं कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा। भारत के संविधान के अनुसार, 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना अनिवार्य है। तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभालेंगे।
धनखड़ के इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक चर्चाओं को हवा दी है, बल्कि आज संसद सत्र कैसा होगा, इस पर भी सबकी नजरें होंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इस मुद्दे को कितनी आक्रामकता से उठाता है और सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है। क्या यह इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक नए भूचाल की शुरुआत है?