नवसत्ता / 22 मई 2025
🔴 हाई कोर्ट रिपोर्ट ने खोल दी पोल
संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ताः पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून के विरोध के नाम पर हुई हिंसा के पीछे की सच्चाई अब उजागर हो चुकी है। कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट से साफ़ हो गया है कि यह कोई स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित सांप्रदायिक हिंसा थी, जिसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के स्थानीय नेता सक्रिय रूप से शामिल थे।
🟠 जन-प्रतिनिधि ही बन गए ‘दंगाई’
रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वे भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक और शर्मनाक हैं। उदाहरण के तौर पर, शमशेरगंज के बेतबोना गांव में 11 अप्रैल को TMC पार्षद मेहबूब आलम और विधायक अमिरुल इस्लाम को दंगाइयों के साथ देखा गया। न केवल वे मौजूद थे, बल्कि दंगों का नेतृत्व भी कर रहे थे।
🟡 बंगाल पुलिस की चुप्पी: मौन समर्थन या मिलीभगत?
रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस न केवल नाकाम रही, बल्कि उसने दंगाइयों को पूरी तरह से खुली छूट दी। पीड़ितों ने बताया कि पुलिस ने SOS कॉल्स तक अनदेखी की। कई मामलों में पुलिस घटनास्थल से नदारद थी, और स्थानीय विधायक घटनाएं देखकर चुपचाप चले गए।
🟣 दंगों की क्रूरता: मानवता को शर्मसार करती तस्वीरें
बेतबोना गांव में:
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113 घर पूरी तरह जलकर राख
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लाखों की संपत्ति, आभूषण और मवेशी लूटे गए
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तीन लोगों की हत्या, सैकड़ों शरणार्थी बने
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पीड़ितों को गंगा पार कर सरकारी स्कूलों में शरण लेनी पड़ी
🔵 मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूमिका पर सवाल
5 मई को अपने मुर्शिदाबाद दौरे में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था:
“अगर BSF ने गोली नहीं चलाई होती तो दंगा और न भड़कता… BJP सांप्रदायिक तनाव फैला रही है…“
लेकिन अब जब हाई कोर्ट की रिपोर्ट सामने आ चुकी है, तो यह दावा खोखला लगता है। सवाल उठता है कि जब दो दिन तक हिंसा चल रही थी, तो मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी? या क्या वे जान-बूझकर चुप थीं?
🟤 निष्कर्ष: जवाबदेही तय होनी चाहिए
अब जब यह स्पष्ट हो चुका है कि:
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हिंसा पूर्व-नियोजित थी
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TMC के नेता प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे
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राज्य पुलिस मौन या मिलीभगत में थी
तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की यह नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता के सामने जवाब दें। मुर्शिदाबाद की त्रासदी को राजनीतिक नजरिए से देखना और बयानों के पर्दे में छिपाना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि लोकतंत्र के साथ विश्वासघात भी है।
📢 मुर्शिदाबाद के घाव अभी हरे हैं, और जवाबदारी की दरकार है। यह कोई ‘राजनीतिक घटना’ नहीं, बल्कि लोकतंत्र के स्तंभों पर सीधा हमला है।