संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ताः वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक घंटे की अहम सुनवाई हुई। अदालत ने केंद्र सरकार से सात दिनों के भीतर जवाब मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 5 मई की तारीख तय की है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक मामला विचाराधीन है, तब तक वक्फ बोर्ड और परिषद में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
मुख्य निर्देश और आदेश:
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नियुक्तियों पर रोक: सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया कि अगली सुनवाई तक अधिनियम के तहत कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
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वक्फ की स्थिति में बदलाव नहीं: पहले से अधिसूचित वक्फ संपत्तियों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा, चाहे वे ‘वक्फ बाय यूजर’ हों या ‘वक्फ बाय डीड’।
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सीमित याचिकाओं पर सुनवाई: 100 से अधिक याचिकाओं में से केवल 5 प्रमुख याचिकाओं पर सुनवाई होगी। अन्य याचिकाएं संबंधित याचिकाओं में शामिल या आवेदन के रूप में मानी जाएंगी।
सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी:
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कोर्ट सैकड़ों फाइलें नहीं पढ़ सकती। अतः सभी याचिकाकर्ता आपसी सहमति से 5 मुख्य आपत्तियों की सूची बनाएं और एक नोडल अधिवक्ता नियुक्त करें जो उन्हें प्रस्तुत करे।
याचिकाओं में मुख्य आपत्तियाँ:
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संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन: याचिकाओं का कहना है कि नया कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26, 29 और 300A का उल्लंघन करता है।
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गैर-मुस्लिमों की भागीदारी पर आपत्ति: वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल करना और कलेक्टर को संपत्ति से संबंधित निर्णय लेने की शक्ति देना धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप माना गया है।
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भेदभाव के आरोप: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के ट्रस्टों पर तो कठोर नियंत्रण करता है, लेकिन अन्य धार्मिक ट्रस्टों पर ऐसा नहीं है।
अदालत की अन्य टिप्पणियाँ और केंद्र की दलीलें:
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SG तुषार मेहता ने कोर्ट से एक सप्ताह का समय माँगा और कहा कि इतने कम समय में सभी तथ्यों को स्पष्ट करना संभव नहीं है।
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CJI ने कहा कि अदालत कोई अंतिम निर्णय नहीं ले रही है, लेकिन मौजूदा स्थिति में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी राज्य में इस बीच नियुक्ति की जाती है, तो उसे अमान्य माना जाएगा।
5 मई को अगली सुनवाई:
अदालत ने स्पष्ट किया है कि 5 मई को होने वाली अगली सुनवाई में केवल अंतरिम निर्देशों और आदेशों पर चर्चा होगी। तब तक, केंद्र और सभी संबंधित पक्षों को अपने जवाब दाखिल करने होंगे।
वक्फ संशोधन कानून को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में गंभीर कानूनी और संवैधानिक सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी अंतरिम आदेश मौजूदा विवाद को संतुलित दृष्टिकोण से देखते हुए दिया गया है, जिससे सभी पक्षों को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर मिले। अब अगली सुनवाई पर देशभर की नजरें टिकी रहेंगी।
‘राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती अदालत’: उपराष्ट्रपति धनखड़
संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ताः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर नाराजगी जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समय सीमा तय की गई थी। उन्होंने इस फैसले को संविधान की भावना और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ बताया।
उपराष्ट्रपति की आपत्तियाँ:
धनखड़ ने कहा, “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। राष्ट्रपति भारत का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, जो संविधान की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन की शपथ लेते हैं। ऐसे पद को आदेश देना लोकतंत्र के मूल ढांचे के विपरीत है।”
उन्होंने आगे सवाल उठाया कि “हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा।”
अनुच्छेद 142 पर टिप्पणी:
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की उस विशेष शक्ति पर भी सवाल उठाए जो संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिलती है। उन्होंने कहा, “यह अनुच्छेद अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल की तरह बन गया है।”
तमिलनाडु मामले का उल्लेख:
धनखड़ ने विशेष रूप से तमिलनाडु विधेयक मंजूरी मामले का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के फैसलों की न्यायिक समीक्षा करना एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, जो संवैधानिक संतुलन को बिगाड़ सकती है।
न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार के आरोप:
उपराष्ट्रपति ने हाल ही में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने की घटना का जिक्र करते हुए न्यायपालिका की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए।
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“नई दिल्ली में एक जज के घर नकदी बरामद होती है और सात दिन तक कोई खबर नहीं आती। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे—क्या यह माफ़ी योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते?”
एफआईआर पर सवाल:
धनखड़ ने यह भी सवाल किया कि अब तक इस मामले में एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई। उन्होंने कहा, “देश के किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है, चाहे वह कोई भी हो। इसके लिए किसी विशेष अनुमति की जरूरत नहीं है।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संवैधानिक सीमाओं को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। उनका मानना है कि अदालतों को राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को निर्देश देने से बचना चाहिए और न्यायपालिका को स्वयं अपनी जवाबदेही पर भी ध्यान देना चाहिए।
यह बयान ऐसे समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता और संविधान की व्याख्या को लेकर देश में विवाद और चर्चा लगातार तेज हो रही है।
अब तलाक के लिए नहीं करना होगा 6 महीने इंतजार