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सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करना भारी पड़ा किरेन रिजिजू को: मंत्रालय बदला

नई दिल्ली, नवसत्ताः  कानून मंत्री किरेन रिजिजू को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ लगातार टिप्पणी करना इतना भारी पड़ा कि आज सुबह अचानक राष्ट्रपति भवन से मोदी सरकार ने बड़े फेरबदल का आदेश देकर किरेन रिजिजू को कानून मंत्रालय के पद से हटा दिया और राजस्थान के बड़े दलित नेता और कई मंत्रालय संभाल चुके अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंत्रिमंडल में बदलाव को मंजूरी दी है, और रिजिजू को कानून मंत्रालय के पद से हटाकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का प्रभार दिया गया है।

जिसके बाद से कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि अचानक से ये फेरबदल क्यों? तो आपको बता दे कि किरेन रिजिजू को कानून मंत्रालय के पद से हटाने के कई कारण हो सकते हैं।

जिसमें पहला कारण यह है कि जुलाई 2021 में जब कैबिनेट विस्तार के दौरान उन्हें कानून मंत्री बनाया गया तब से लेकर उन्होंने अभी तक कई बार सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणिया की। हाल ही में रिजिजू ने कहा था कि  जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं है। न्यायपालिका सरकार की बातें जब मीडिया में आतीं तो रिजिजू सफाई भी देते कि लोकतंत्र में मतभेद अपरिहार्य हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेदों को टकराव नहीं माना जा सकता है।  जिसके बाद रिजिजू ने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की खुलकर आलोचना करते हुए कहा कि  इसे संविधान से अलग कर देना चाहिए।

वहीं कॉलेजियम सिस्टम के विरोध में रिजिजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आर.एस. सोढ़ी के इंटरव्यू का अंश ट्वीट किया। न्यायमूर्ति सोढ़ी (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है। सोढ़ी ने कहा था कि क्या आप संविधान में संशोधन कर सकते हैं? केवल संसद ही संविधान में संशोधन करेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का अपहरण कर लिया। भारतीय न्यायपालिका में कोई आरक्षण नहीं है। मैंने सभी जजों और विशेष रूप से कॉलेजियम के सदस्यों को याद दिलाया है कि वे पिछड़े समुदायों, महिलाओं और अन्य श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने के लिए नामों की सिफारिश करते समय ध्यान में रखें क्योंकि उनका न्यायपालिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। इसे सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती के तौर पर देखा गया। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले 350 से ज्यादा वकीलों ने कानून मंत्री किरण रिजिजू के इस बयान की निंदा की, और कहा कि केंद्रीय मंत्री को इस तरह बयान देना शोभा नहीं देता है। मंत्री ने ऐसा कर संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है।

दूसरा कारण कि जब भी सरकार और सुप्रीम कोर्ट की बात होती है तो आम धारणा होती है कि सुप्रीम कोर्ट कुछ कहता है तो उसे सरकार सुनती है। पलटवार जवाब देने या कहें कि खुलकर कुछ भी बोलने से बचा जाता रहा है। लेकिन हाल के महीनों में मोदी सरकार के मंत्री रिजिजू जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी कर रहे थे, उसने शायद सरकार को असहज कर दिया। हालात ऐसे बन गए कि सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग की जाने लगी।

– तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि 2024 में लोकसभा चुनाव है इसलिए सरकार का पूरा ध्यान 2024 के लोकसभा चुनाव पर लगा हो सकता है, और वह अभी किसी अन्य मुद्दे पर बात नहीं करना चाहती।

-चौथा कारण यह भी हो सकता है कि राज्य में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं। राजस्थान में दलितों की आबादी 17 फीसदी है। अर्जुन राम मेघवाल दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं। बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद का कद बढ़ाकर राजस्थान को संदेश देने की भी कोशिश की गई है। अब तक मेघवाल संस्कृति और संसदीय कार्य राज्यमंत्री थे। राजनीति में आने से पहले मेघवाल राजस्थान प्रशासनिक सेवा में थे। प्रमोशन हुआ तो मेघवाल चुरू के जिलाधिकारी भी रहे। वीआरएस लेकर राजनीति में आए और तीन बार लोकसभा चुनाव जीता है।

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