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कहीं अनिल अम्बानी न बन जाएं गौतम अडानी!

नीरज श्रीवास्तव

नवसत्ता,लखनऊः  हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद जिस तेजी से अडानी समूह के शेयर गिर रहे हैं उससे यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं गौतम अडानी का हश्र कभी दुनिया के नम्बर छह अमीर व्यवसायी रहे और अब व्यवसायिक दृष्टि से बर्बाद हो चुके अनिल अम्बानी जैसा न हो जाए।

गौतम अडानी पहले ऐसे व्यवसायी नहीं है जिनके बारे में फर्श से अर्श और फिर फर्श पर आने की आशंका व्यक्त की जा रही हो। देश में ऐसे बर्बाद हो चुके व्यवसायियों के सैकड़ों उदाहरण है। ऐसा ही एक उदाहरण अनिल अम्बानी का भी है। अनिल अम्बानी और गौतम अडानी में कई समानताएं भी रहीं हैं। दोनो अपने सम्पर्कों और राजनेताओं से नजदीकी को लेकर चर्चा में रहे हैं। दोनो ने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बैंको व निवेशकों से काफी ज्यादा कर्ज ले रखा है। शेयर मार्केट में दोनों ही अपनी कम्पनियों के जरिये निवेशकों का तगड़ी चपत लगा चुके हैं।

वर्ष 2008 में अनिल अम्बानी दुनिया के छठें अमीर व्यवसायी थे जो कि मात्र 12 वर्षों के बाद फरवरी 2020 में ब्रिटेन की एक अदालत कह चुके हैं कि उनकी कुल सम्पत्ति शून्य है और वे लगभग दिवालिया हो चुके हैं। उनकी कम्पनी रिलायंस कैपिटल को शेयर बाजार से डीलिस्ट कर दिया गया है। यानी अब इस कंपनी को शेयर मार्केट में ट्रेडिंग की इजाजत नहीं है। वर्ष 2018 में ही उनकी कम्पनी रिलायंस पावर के शेयर ने 538 रूपये से शेयर बाजार में जोरदार आगाज किया था। आज उस शेयर की कीमत महज 11 रूपये के आसपास है।

अब बात करते हैं गौतम अडानी की। उनपर अमेरिकी रिसर्च कम्पनी हिंडनबर्ग ने जो आरोप लगाये हैं उनमें सबसे बड़ा आरोप यह है कि उन्होंने शेल कम्पनियों की मदद से अपनी कम्पनियों के शेयरों को ओवरव्ल्यू किया और उस आधार पर बैंको से कर्ज लिया। इसको आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे आप अपनी मोटरसाइकिल को किसी करीबी बेचने का सौदा 10 लाख में होने की पर्ची ले लें। और फिर उस दस लाख की पर्ची की मदद से मोटरसाइकिल पर बैंक से आठ लाख का कर्ज ले लें। अब यदि बैंक इस मोटर साइकिल को कर्ज न चुका पाने की स्थिति में बाजार में नीलाम भी करता है तो उसे मात्र 30 या चालीस हजार रूपये ही हाथ लगेंगे।

एसबीआई समेत आधा दर्जन बैंको और एलआईसी के अधिकारी अभी भले ही सबकुछ सामान्य होने का बयान दे रहे हों परन्तु आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि तमाम बयानों के बावजूद शेयर बाजार की प्रतिक्रिया बताती है कि दाल मे कुछ काला है। ऐसा ही अडानी की कम्पनियों की शेयरों को लेकर भी हो रहा है। यही कारण है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के मात्र दस दिनों के भीतर ही गौतम अडानी की सम्पत्ति आधी रह गई है। उन्हें दस लाख करोड़ की चपत लग चुकी है और वे दुनिया के अमीरों की सूची में दूसरे नम्बर से टाप 20 से भी बाहर हो चुके हैं।

गौतम अडानी की मुसीबत यहीं नहीं थमने वाली। एक साल बाद उन्होंने बाण्ड के जरिये जो पैसा मार्केट से उठाया था उसे लौटाना है। यानी उन्हें नकद पैसे की जरूरत होगी। आज के हालात में उन्हें नकद पैसा कैसे मिलेगा ये बड़ा सवाल है। सिटी बैंक पहले ही अडानी के बाण्ड की वैल्यू जीरो कर चुका है। आज उनके बाण्ड 30 फीसदी नीचे के भाव पर मिल रहे हैं। ऐसे में उन्हें कर्ज चुकाने के लिए अपनी अचल सम्पत्तियों को बेचना होगा जो कि बाजार में और विपरीत असर डालेगा।

दरअसल हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह जिस तरह से मामले को उलझा रहा है उससे कई सवाल पैदा हो रहे है। पहले उन्होंने राष्ट्रवाद का सहारा लिया फिर 20 हजार करोड़ के एफपीओ को अपने साथियों की मदद से खरीदवाया और जब शेयर के भाव गिरने से नहीं रूके तो एफपीओ ही वापस ले लिया। इस कठिन समय के बीच एक और रिपोर्ट ने अडानी एंटर प्राइजेज के एफपीओ को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। फोर्ब्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी एंटरप्राइजेज के एफपीओ को सब्सक्राइब करनेवाली 3 कंपनियों का सम्बन्ध अडानी ग्रुप से है।

रिपोर्ट के अनुसार तीन फंड कंपनियां – जिसमें मॉरिसिस की आयुष्मत लिमिटेड, एलम पार्क फंड और भारत की एविएटर ग्लोबल इंवेस्टमेंट फंड शामिल है। इन कंपनियों का लिंक अडानी समूह के साथ है। बता दें, अडानी एंटरएं प्राइजेज के एंकर निवेशकों में ये तीनों कंपनियां शामिल थी। ये तीनों मिलाकर एफपीओ का कुल 9.24 प्रतिशत हिस्सा सब्सक्राइब किया था। ऐसे में सेबी यदि सही ढंग से जांच करता है तो आने वाले समय में अडानी समूह की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं।

 

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