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जारी रहेगी धर्मग्रन्थों से विवादित चौपाइयों को हटाने की लड़ाईः स्वामी प्रसाद मौर्य

संजय श्रीवास्तव
नवसत्ता, लखनऊ :  राम चरित मानस को लेकर विवाद है कि थमने का नाम नहीं ले रहा। स्वामी प्रसाद मौर्य ने सुंदरकाण्ड की एक चौपाई को महिलाओं दलितों पिछड़ों और आदिवासियों को गाली देने वाला बताकर एक बार फिर मंडल और कमंडल की जिस राजनीति को हवा दी अब उसी लाइन को हटाने और बड़ा बनाने की कवायद में बीजेपी और बीएसपी भी जुट गई हैं। स्वामी को तो उनकी टिप्पणी पर न सिर्फ समाजवादी पार्टी से समर्थन मिला बल्कि उन्हें राष्ट्रीय महासचिव के पद से नवाज दिया गया।

बीजेपी बीएसपी को जवाब देते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने नवसत्ता से एक खास मुलाकात में कहा कि वो सभी धर्मों और धर्मग्रंथों का सम्मान करते हैं पर रामचरित मानस में लिखी कुछ विवादित चैपाइयों को हटाने की जो लड़ाई उन्होंने शुरू की है वो अब नहीं रुकेगी। धर्माचार्यों और तथाकथित धर्म के लंबरदारों से वो डरने वाले नहीं देश की कुल आबादी के 97 प्रतिशत महिलाओं आदिवासियों दलितों और पिछड़ों के अपमान के खिलाफ वो अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

हमारे विशेष संवाददाता संजय श्रीवास्तव से बात करते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि ये कोई पहली बार नहीं है वो पहले भी सामाजिक मंचों से तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस की कुछ चैपाइयों पर आपत्ति दर्ज कराते रहे हैं, बालकाण्ड अरण्य काण्ड सुन्दर काण्ड उत्तरकाण्ड में कई जगहों पर कई चैपाइयों में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वो महिलाओं आदिवासियों दलितों और पिछड़ों के न सिर्फ आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाले हैं बल्कि वो सीधे सीधे सामाजिक ताने बाने में जातीय भेदभाव करते हैं।
तुलसीदास की चैपाई में ढोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी की व्याख्या जो शुरू के राम चरित मानस में भी दी गई है का मतलब प्रताड़ना या प्रताड़ित करने से ही है ये तो बाद में गीता प्रेस द्वारा छपी राम चरित मानस में ताड़ना का अर्थ शिक्षा दे दिया गया है जो कहीं से उपयुक्त नहीं लगता।

स्वामी यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि धर्म और धर्म ग्रंथ का मतलब मानव कल्याण से होना चाहिए न कि मानवों के बीच जातीय खाईं खींचकर उनके बीच विद्वेष उत्पन्न करना। उन्होंने कहा कि वो तो धर्माचार्यों से हर तरह की बहस को तैयार हैं और कहते हैं कि राम चरित मानस तुलसीदास ने लिखी है और जिस समय काल में लिखी गई अगर उस समय जातीय भेदभाव और असमानता थी तो मौजूदा समय में उसे दूर करने के लिए मानस की उन सभी विवादित चैपाइयों को हटाने की दिशा में एकजुटता दिखानी चाहिए न कि मुझे धर्म विरोधी करार देकर मेरे सिर को कलम करने का फतवा जारी करना चाहिए।

स्वामी ने एक और चौपाई पूजहि विप्र सकल गुन हीना शूद्र न गुन ज्ञान प्रबीना का हवाला देकर कहा कि तुलसीदास ने लिखा है कि ब्राह्मण चाहे जैसा हो उसकी पूजा करनी चाहिए पर शूद्र कितना भी चरित्रवान ज्ञानी क्यों न हो उसका निरादर ही होना चाहिये। स्वामी की टिप्पणी पर मायावती ने भी ट्वीट के जरिए हमला बोला और पूरी समाजवादी पार्टी को कटघरे में खड़ा करते हुए गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई कि कैसे लोगों ने दलित की बेटी के साथ जघन्य अपराध को अंजाम दिया था, मायावती के बयान पर पलटवार करते हुए स्वामी ने कहा कि बहन जी का वो सम्मान करते हैं पर उनकी नादानी से आश्चर्यचकित हैं कि किस तरह बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ,बाबू जगजीवन राम को भी इस देश में जातीय अपमान का दंश झेलना पड़ा था।

संविधान लागू होने पर देश में जाति धर्म लिंग के आधार पर भेदभाव को पूरी तरह समाप्त किया गया था लेकिन 1956 में संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर ने ही नागपुर में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया। स्वामी ने हाल ही संघ के सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के उस कथन पर भी पलटवार किया जिसमें उन्होंने कहा है कि गाय का मांस खाने वालों को भी हिंदू धर्म में सम्मान की नजर से देखा जाएगा, स्वामी ने कहा कि होसबोले पहले हिंदू धर्म मानने वाले 97 प्रतिशत आदिवासियों महिलाओं पिछड़ों और दलितों के सम्मान की बात करें जिन्हें हिंदू होने के बावजूद छुआछूत और भेदभाव के आधार पर उनका उत्पीड़न और अपमान किया जाता है।

स्वामी प्रसाद ने राम चरित मानस की आड़ लेकर हिंदुओं में ही अगड़ों और पिछड़ों के बीच खाई बनाकर जो सामाजिक भेदभाव की जंग छेड़ दी है। देखना ये होगा कि इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक मैदान में कूदे स्वामी को किसका कितना साथ मिलता है और आने वाले 2024 के आम चुनाव में कितना फायदा।

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