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प्रयागराज की प्रीति लिख रही किक बाक्सिंग में नई इबारत

टर्की वर्ल्ड कप में रनर अप रहीं है प्रीति

ओलंपिक की तैयारी में जुटी प्रीति की नजर गोल्ड पर

अफसोस देश में किक बाक्सिंग को बढ़ावा नहीं

खिलाड़ी खुद से ही उठाते हैं सारा खर्चा

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ता: जी हां, ये स्टोरी है प्रयागराज की प्रीति तिवारी की जिनके हौसले की उड़ान अब अपना मुकाम ले रही है. बचपन से ही कुछ नया और अलग करने का जुनून प्रीति को किक बाक्सिंग जैसे खतरनाक खेल की तरफ खींचता चला गया. पढ़ाई के साथ ही खेल को भी बराबर समय देकर प्रीति धीरे धीरे जिला और प्रदेश स्तर से ऊपर उठकर नेशनल चैंपियन बन गईं.

हाल ही टर्की में हुए किक बाक्सिंग वर्ल्ड कप में प्रीति मात्र 3 अंको से चूंक गईं नहीं तो दुनियां की बादशाहत पर कब्जा जमा लेतीं, फिलहाल दूसरे स्थान पर रजत पदक के साथ ही संतोष करने वाली प्रीति तिवारी को अब चैन कहां उनकी नजर अब अगले ओलंपिक गेम्स पर हैं जिसमें वो सोना जीतकर दुनिया में नाम रौशन कर सकें.

सुलतानपुर जनपद के सीएमो दफ्तर में बाबू विनोद तिवारी की बड़ी संतान प्रीति को बचपन से ही पढ़ाई के साथ खेलों में विशेष दिलचस्पी रही, विनोद तिवारी भी बेटी के खेल को प्रोत्साहित करने लगे और उसकी मेहनत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बेटी ने जिस खेल में कदम बढ़ाए वो अभी देश में परवान ही चढ़ रहा था. यहां ना तो किक बाक्सिंग का कोई स्पेशल कोच ही था और न ही कोई ऐसा सेंटर जो किक बाक्सिंग का बेहतर प्रशिक्षण दिला सके.

देश में साईं और तमाम स्टेडियमों में कई फेडरेशन और अन्य संगठनों के बहुत से खेलों के प्रशिक्षण दिए जाते हैं तमाम स्पोर्ट्स कालेजों में भी कई खेलों में खिलाड़ियों को तैयार किया जाता है, पर किक बाक्सिंग का तो देश में दुर्भाग्य ही है कि इसका न तो कोई फेडरेशन है और न ही कोई संघ, यहां तक की बढ़िया कोच तक जिस खेल के लिए देश में नहीं हैं, पिता विनोद तिवारी से मिले सहयोग की बदौलत प्रीति खुद से ही प्रैक्टिस करके स्टेट चैंपियन बनी और बाद में प्राइवेट कोच से प्रशिक्षण लेकर नेशनल तक का सफर तय किया.

अब जब प्रीति ने टर्की के इंस्तांबुल में किक बाक्सिंग का रजत जीता तो बहुत से लोगों का ध्यान इस खेल की तरफ भी गया है. गोवा में वाको के सेंटर में पसीना बहा रही प्रीति ने नवसत्ता से बात करते हुए बताया कि,

सरकार अगर थोड़ा सा भी ध्यान इस खेल और इसके खिलाड़ियों की तरफ दे दे तो इस खेल में दुनिया के सारे पदक भारत की झोली में ही गिरेंगे.

वो बताती हैं कि फ्री स्टाइल की इस बाक्सिंग प्रतियोगिता में हाथों के साथ ही पैर भी बराबर चलाने होते हैं और वो कहीं भी किसी भी जगह चोट पहुंचा सकते हैं. इसके प्रशिक्षण के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है वो भी बड़े खर्चीले हैं, ऐसे में अगर देश या प्रदेश की सरकार थोड़ा सा इस खेल की तरफ भी किक करे तो इसकी बाक्सिंग अपना रंग दिखाने लगे. सरकार की तरफ से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण की जगह कोच और रहने खाने पीने की व्यवस्था की दिशा में बेहतर प्रयास करने चाहिए.

प्रीति ने प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपेक्षा जताई है कि वो जल्दी ही उनसे मिलेंगे और किक बाक्सिंग खेल को बढ़ावा देने की दिशा में सार्थक पहल करेंगे. किक बाक्सिंग में अपना मुकाम हासिल कर रहीं प्रीति खेलों में रुचि रखने वाले होनहारों के लिए प्रेरणा हैं उनके जज्बे की उड़ान को नवसत्ता का सलाम. उनके हौसले के लिए इतना ही कहना काफी है कि,

कौन कहता है कि आसमां में छेद हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों….

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