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मंहगाई की मार, मन्दिर-मस्जिद पर तकरार

आम आदमी की रसोई में भी झांकिए जनाब

राजकुमार सिंह

लखनऊ, नवसत्ता: ज्ञानवापी का मसला इस समय मीडिया पर छाया हुआ है. कोर्ट के आदेश पर सर्वे हुआ. मस्जिद परिसर में सनातन धर्म से जुड़े कई प्रमाण भी मिले है. वहां पर मिले खंडित अवशेष इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यहां कभी मन्दिर था. कुछ इतिहासकारों और बनारस में रहने वाले सन्तों का कहना है कि औरंगजेब ने ही मन्दिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था. औरंगजेब व अन्य कई मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों को तहस-नहस किया था. इसके भी तमाम प्रमाण मिले है.

अगर ऐसा हुआ है तो आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिये. सच सामने आना चाहिये. प्रमाण के साथ अगर कोई बात की जा रही है, उस पर देश में रहने वाले सभी धर्मों के मतावलम्बियों को शांतिपूर्ण तरीके से विचार करना चाहिए. यह भी गम्भीर विषय है.
लेकिन उससे भी कष्टदायक पेट की आग होती है. भीषण गर्मी की तरह मंहगाई की तपिश में मध्यम व निम्न आयवर्ग के लोग सुलग रहे हैं. रसोई का बजट इतना बढ़ गया है कि सन्तुलित आहार तो दूर दोनों वक्त का चूल्हा जलाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. आठ साल बाद महंगाई में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी हुई है. इससे पहले मई 2014 में महंगाई की दर 8.38 प्रतिशत थी. अप्रैल 2022 में यह दर 7.79 फीसदी हो गई।

अभी महंगाई कम होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं. यही हाल रहा तो 2014 का भी रिकार्ड टूट जाएगा. इस भीषण समस्या की तरफ न तो सरकार का ध्यान और न ही घर-घर में देखे जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक चैनलों का. अभी तो केवल चैनलों पर मन्दिर मस्जिद का खेल ही चल रहा है. इससे टीआरपी बढ़ रही है. अब मीडिया के लोग भी सीना ठोक कर कह रहे हैं कि आम जनता जो देखना चाहती है वही दिखा रहे हैं. कोई यह नहीं कह रहा है कि जो हम चाहेंगे जनता वही देखेगी. एक दो चैनल जन समस्याओं को उठा रहे हैं तो उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती जैसी है. इस देश का विपक्ष भी मृतपाय हो चुका है. जनता की आवाज को सरकार के कानों तक पहुंचाने के लिये तहसील स्तर से लेकर राज्य मुख्यालय तक होने वाले धरना प्रदर्शन की औपचारिकता भी नहीं पूरी की जा रही है। विपक्ष के नेता भी ट्वीटर ट्वीटर खेल रहे हैं। कोई मैदान में उतरना ही नहीं चाहता. इसलिए सरकार चला रहे लोग भी अपना गुणगान सुनकर मस्ती में जनता को हसीन ख्वाब दिखा रहे हैं। आम आदमी तो अपने परिवार का भरण पोषण करने लिये जद्दोजहद कर रहा है। इनमें तमाम लोग ऐसे भी हैं जो आस्था के समंदर में गोते लगाते हुए मन्दिर-मस्जिद का राग अलाप रहे हैं. चंद लोग यह भी मान रहे हैं कि महंगाई, बेरोजगारी व अन्य मसलों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए यह सब किया जा रहा है.

आइये फिर ज्ञानवापी पर चर्चा कर लेते है. इसे आप लोग अपने टीवी सेट पर देख ही रहे होंगे। वैसे तो ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान का कूप। इसलिये इस नाम की कोई मस्जिद हो भी नहीं सकती. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेरम्ब चुतर्वेदी कहते हैं कि ज्ञानवापी में मस्जिद निर्माण का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है. मस्जिद का नाम ज्ञानवापी हो भी नहीं सकता. ऐसा लगता है कि ज्ञानवापी कोई ज्ञान की पाठशाला रही होगी.

इतिहासकार एलपी शर्मा अपनी पुस्तक मध्यकालीन भारत के पेज संख्या 232 पर लिखते हैं कि 1669 में बनारस के विश्वनाथ मंदिर, मथुरा के केशवदेव मंदिर, पाटन के सोमनाथ मंदिर और प्राय: सभी बड़े मंदिर खासतौर से उत्तर भारत के मंदिर इसी समय तोड़े गए. बनारस के इतिहासकार प्रोफेसर राजीव द्विवेदी कहते हैं कि मन्दिर टूटने के बाद अगर मस्जिद बनी है तो इसमें आश्चर्य कैसा. उस दौर में कई बार ऐसा हुआ था.

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के संयुक्त सचिव सैय्यद मोहम्मद यास्मीन का कहना है कि अकबर ने 1585 के आसपास दिन-ए-इलाही के तहत इस मस्जिद का निर्माण कराया था। कई इतिहासकारों का कहना कि सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने 1585 में विश्वनाथ मंदिर का ही निर्माण कराया था. वहीं कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की शासकों ने मंदिर को गिराकर ज्ञानवापी मस्जिद को बनवाया था.

यह तो पता चल ही जायेगा कि हकीकत क्या है। अभी रसोई का बजट गड़बड़ा गया है. इस बात की सबसे अधिक चिंता महिलाओं को है. तेल, दाल, चीनी व मसालों की कीमतें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है. यही हाल रहा तो आम आदमी मंहगाई से बेहाल होकर सड़क पर भी उतर सकता है.

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