Navsatta
क्षेत्रीयखास खबरमुख्य समाचारराज्यशिक्षा

प्रचार के दावे बेदम: बेहतर नहीं, बदतर है सरकारी स्कूलों की सूरत

  • होर्डिंग्स पर पैसा खर्च, पर स्कूलों पर नहीं ध्यान
  • गंदगी और लाचारी के शिकार हैं सरकारी स्कूल
  • स्कूलों में न चपरासी, न सफाईकर्मी
  • एक शिक्षक के भरोसे चल रहे उच्च प्राथमिक विद्यालय
  • एचसीएल भी बना है सरकार का सहयोगी
  • स्टडी हॉल एनजीओ दे रहा स्कूलों में शिक्षक
  • जर्जर इमारतें दे रहीं हादसों को दावत
  • लखनऊ में ही 22 स्कूलों की इमारतें जर्जर
  • बीएसए फोन तक नहीं उठाते
संजय श्रीवास्तव
लखनऊ, नवसत्ता: प्रदेश में बेहतर शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के दावे किए जा रहे हैं, बकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो लगी होर्डिंग्स के जरिए इन दावों का बखान भी किया जा रहा है, यही नहीं इसके लिए जो पैसा खर्च हो रहा है वो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का है मतलब सरकार का. नवसत्ता कोई झूठ नहीं बता रहा आप एनेक्सी (लाल बहादुर शास्त्री भवन) के ठीक सामने लगी इस होर्डिंग को खुद ही देख और पढ़ लीजिए-
तो ये तो थी सरकारी दावों का बखान करती पीएम-सीएम की फोटो लगी वो तस्वीर जिसे वाकई हकीकत में भी दिखना चाहिए, पर नहीं हाल ही सूबे के नये डिप्टी सीएम बृजेश पाठक खुद घूम घूमकर अस्पतालों और वहां उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की हालत का जायजा खुद ले रहे हैं हम भी सूबे की स्वास्थ्य सेवाओं की जीती जागती तस्वीरों को आपके सामने लाएंगे लेकिन अभी हम आपको सूबे के बेहतर शिक्षा वाली हकीकत से रूबरू करा रहे हैं. चलिए देखिए हमारे कैमरे में कैद इन तस्वीरों को——-
पहली और बाद की तस्वीरों को देखकर आपको भी समझ में आ गया होगा कि आखिर सरकार की कथनी और करनी में फर्क क्यों रहता है. दरअसल सरकार अपनी छवि चमकाने के चक्कर में अफसरों की करतूतों पर भी पर्दा डालती है और वो जिस तरह से कामों का ब्यौरा बढ़ चढ़ाकर पेश करते हैं सरकार बिना उनकी जांच परख के ही विज्ञापनों और होर्डिंग्स के जरिए उसका प्रचार प्रसार तक कर देती है. और इस पर जमकर पैसा भी बहाया जाता है.
खैर चलिए अब आपको इन तस्वीरों की असलियत से रूबरू कराते हैं- ये तस्वीरे कहीं और की नहीं बल्कि सूबे की राजधानी लखनऊ और वो भी लोकभवन मतलब मुख्यमंत्री कार्यालय से महज डेढ़ किलोमीटर के भीतर स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय की है. जी हां, शहर के छितवापुर इलाके का ये स्कूल जिस हाल में है वहां कोई गरीब भी अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेजने से पहले सौ बार सोचेगा. जिसकी दाल-रोटी रोजाना किसी तरह चल जा रही है उनके बच्चे भी यहां नहीं पढ़ने आते, यहां तो केकेसी नाले के किनारे बसी झुग्गियों में गुजर बसर करने वाले असमी और बांग्लादेशी कूड़ा बीनने वालों के बच्चे ही पढ़ने आते हैं और वो भी इस लालच में कि एक वक्त का खाना (मिड डे मील) फ्री शिक्षा, फ्री ड्रेस, जूते-मोजे और कॉपी किताबें मिल जाएंगे.
ये स्कूल कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक का है यानि उच्च प्राथमिक विद्यालय. यहां कुल 81 बच्चे हैं जिनमें से 51 मुस्लिम हैं.
आरटीई एक्ट के तहत जहां मुस्लिम बच्चे ज्यादा हैं वहां एक उर्दू शिक्षक भी होना चाहिए पर यहां उर्दू तो छोड़िए, पूरा विद्यालय ही एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है, सरकारी तौर पर 40 बच्चों पर एक टीचर होना चाहिए पर यदि 1 से 8 तक का स्कूल है तो 3 से 4 शिक्षक तो होने ही चाहिए जो बच्चों को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान पढ़ा सकें, पर इस उच्च प्राथमिक विद्यालय में एक शिक्षक के अलावा दो शिक्षामित्र हैं, जो प्राथमिक के बच्चों को तो पढ़ा सकती हैं पर जूनियर के बच्चों को सभी विषय पढ़ाना इनके बस की बात नहीं.
नाम न छापने की शर्त पर शिक्षिका बताती हैं कि लखनऊ नगर क्षेत्र में एचसीएल कंपनी ने करीब 100 स्कूलों को गोद ले रखा है और जो स्टडी हॉल एनजीओ की तरफ से शिक्षा में सहयोग कराते हैं उन्होंने कहा कि स्टडी हॉल से दो शिक्षिकाएं हमारा सहयोग तो करती हैं पर उन पर हमारा कोई अधिकार नहीं रहता. शिक्षिका का मानना है कि बेहतर शिक्षा के लिए जरूरी है कि पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध कराए जाएं. उनका मानना है कि एक ही साथ 1 से लेकर 8 तक की कक्षाओं के लिए 1-2 टीचर से काम नहीं चल सकता. और तो और विषय विशेषज्ञ के बिना शिक्षा की गुणवत्ता की कल्पना भी बेमानी है.
उधर एचसीएल फाउंडेशन के विनीत ने बताया कि लखनऊ में उनका संगठन स्टडी हॉल एनजीओ को शिक्षा में सहयोग देने के बदले पे करता है कितना ये उन्होंने नहीं बताया, लेकिन इतना बताया कि उनका संगठन 100 नहीं सिर्फ 21 स्कूलों में शिक्षा की बेहतरी पर काम कर रहा है. इन 21 में से 16 प्राइमरी और उच्च प्राइमरी हैं बाकी 05 इंटर कॉलेज हैं. विनीत ने ये भी बताया कि स्टडी हॉल एनजीओ की तरफ से इन सभी स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाती है छितवापुर के उच्च प्राथमिक विद्यालय में भी स्टडी हॉल से 2 शिक्षिकाएं सेवा देती हैं.
ये तो रही शिक्षण की बात अब जरा स्कूल की तस्वीर पर भी गौर कर लें, यहां न तो कोई चपरासी है और न ही सफाईकर्मी, शिक्षिका बताती हैं कि सरकार की तरफ से उन लोगों पर पेपर वर्क का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ा दिया गया है ऊपर से शिक्षकों का अभाव ऐसे में पेपर वर्क करें या शिक्षण का दोनों ही बेहतर नहीं हो पाते ऊपर से कोई सहायक न होने से तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्कूल में बेटियां भी पढ़ती हैं पर यहां के शौचालय देखकर आपको भी शर्म आ जाएगी कि क्या ये स्मार्ट सिटी के स्कूलों का हाल है.
गनीमत है कि बिजली कनेक्शन है और पंखे भी चल रहे है, पर पानी पड़ोस के जल संस्थान के पंप से लिया जाता है, जल संस्थान का पंप जब चलता है तो टुल्लू के सहारे स्कूल वाले भी अपनी टंकी भर लेते हैं, आखिर हर स्कूलों में पीने का साफ पानी मुहैया कराने वाली सरकार की तमाम योजनाएं लखनऊ में ही धराशायी क्यों हैं? आरओ योजना जल जीवन मिशन योजना के तहत भी सबमर्सिबल और लोहे के ओवरहेड टैंक से पाइप सप्लाई से पीने के पानी की उपलब्धता इस स्कूल में क्यों नहीं?
इन सब बातों के लिए जब हमने लखनऊ के बीएसए विजय प्रताप सिंह से बात करनी चाही तो उनके सीयूजी मोबाइल नंबर पर घंटी तो बजी पर उन्होंने फोन नहीं उठाया.

संबंधित पोस्ट

विवेक मुशरान ने बेहतरीन कलाकारों और दमदार सहयोगी किरदारों के महत्‍व पर की बात

navsatta

यूपी में बड़ा फेरबदल! 21 आईपीएस अफसरों के तबादले, कई जिलों के एसपी भी बदले

navsatta

भारत की वैक्सीन पर ब्राजील के राष्ट्रपति को देनी पड़ी सफाई

navsatta

Leave a Comment