नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ताः अब जबकि प्रथम चरण के मतदान के लिए एक पखवारे का समय शेष है,सत्तारूढ़ भाजपा इस विधानसभा चुनाव को भी वर्ष 2017 जैसे ध्रुवीकरण करने की हर कोशिश कर रही है। कैराना के पलायन का मुद्दा भी इसीलिए जोर-शोर से उठाया जा रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन ने जाट-मुस्लिम विभाजन को पाट दिया है। मुजफ्फरनगर दंगों के मद्देनजर भाजपा नेतृत्व ने जिस धार्मिक विभाजन को हवा दी थी, उसके चलते 2014 के आम चुनाव में उसे बड़े पैमाने पर राजनीतिक लाभ हासिल हुआ था। सांप्रदायिक विभाजन के साथ-साथ जोरदार राष्ट्रवादी भावना के उभार ने 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में इसकी सफलता में योगदान दिया था। उन चुनावों में जाट किसानों ने भाजपा के पक्ष में एकमत होकर मतदान किया था, जिसे इस क्षेत्र के मुसलमानों के साथ अपनी एकता को तोड़ते हुए, भाजपा के लिए अभूतपूर्व चुनावी जीत की स्क्रिप्ट लिखने में मदद की जिसने इसके हिंदुत्व के एजेंडे को और भी मजबूत करने का काम किया।
प्रत्येक चुनावी सफलता के बाद भाजपा ने उस एजेंडा को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ाया जिसमें मुस्लिमों को बाहर रखने और उनकी आस्था, खानपान और यहां तक कि पहनावों की आदतों के आधार पर भी उन्हें शातिर और हिंसक तरीके से निशाना बनाया। कई लोगों पर तथाकथित लव-जिहाद के नाम पर हमला किया गया, एक ऐसा विषय जिस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तो विभाजनकारी और विवादास्पद कानून तक बना दिया है। हाल के दिनों मंें उनका 80 बनाम 20 का नारा भी काफी चर्चित रहा है।
गौरतलब है कि किसान आंदोलन ओर उसके बाद मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत ने इस क्षेत्र के किसान समुदायों के बीच में एक बार फिर से एकजुटता की बहाली की बेहतरीन मिसाल को पेश की। किसान नेता राकेश टिकैत के मुताबिक, “वे बांटने की बात करते हैं,हम एक होने की बात करते हैं। भाजपा की राजनीति की कसौटी ही नफरत है।” एकता के ऐसे प्रदर्शनों ने भाजपा की ध्रुवीकरण परियोजना को बुरी तरह से प्रभावित किया, आगामी चुनाव में उसकी जीत की संभावनाओं को धूमिल कर दिया है।
इसी को देखते हुए अब गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी अभियान की शुरूआत कैराना से की है। अमित शाह शनिवार को कैराना में पलायन कर लौटे परिवारों से भी मिले।
बता दें कि साल 2016 में कैराना से तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह ने वहां से कुछ हिंदुओं के पलायन का आरोप लगाया था। उन्होंने 346 हिंदू परिवारों की लिस्ट भी जारी की थी। उनका कहना था कि मुस्लिम दबंगों के चलते हिंदू परिवार कैराना से पलायन कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि दबंगों और माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। भाजपा ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था। इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिला और भाजपा सरकार बनने के बाद कैराना के कई गैंगस्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई और कई एनकाउंटर भी हुए।
भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में कैराना से दिवंगत भाजपा नेता हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है। जबकि सपा ने पहले नाहिद हसन को उम्मीदवार बनाया परन्तु उसके आपराधिक मामलों में जेल जाने के बाद अब उसकी बहन को टिकट दिया है। बसपा ने राजेंद्र सिंह उपाध्याय को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं कांग्रेस ने यहां से हाजी अखलाक को टिकट दिया है। कैराना में 10 फरवरी को वोटिंग होगी।
कैराना विधानसभा सीट मुस्लिम और जाट बाहुल्य सीट है। यहां पर करीब एक लाख मुस्लिम वोट है तो वहीं पर करीब 90 हजार जाट वोट भी है। गुर्जर मतदाता भी कैराना में निर्णायक है। वहीं पर अन्य समाज में ठाकुर और सैनी भी कैराना में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।