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महंगाई की मार से राहत क्यों नहीं है राजनीतिक मुद्दा

लखनऊ,नवसत्ता: उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले प्रचार के काल में वास्तविक मुद्दों के बजाए ऐसे विषयों पर चर्चा की जाती है जिनसे आम जनों का कोई खास मतलब नहीं होता. जिस तरह से 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत की बात कह कर समाज में विभाजन की कोशिशें की जा रहीं हैं, उसके विपरीत महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना काल की आर्थिक मार आदि जैसे मुद्दों पर अधिकतर राजनीतिक दल ठोस आश्वासन देने से बचते हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुछ राजनीतिक दल ऐसे विभाजक विषयों को जान बूझ कर उठाते हैं जिससे ऐन चुनाव के पहले मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. ऐसा ध्रुवीकरण कुछ दलों को भले ही राजनीतिक लाभ दे, लेकिन अंततः इससे सामाजिक ताना-बाना ही कमजोर होता है. ऐसे में, प्रदेश व देश के भविष्य के लिए जमीन से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना राजनीतिक दलों के लिए दीर्घकालीन समर्थन जुटाने मे सहायक हो सकता है.

इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कोरोना महामारी की वजह से समाज के हर तबके को जोरदार झटका लगा है, और कई परिवारों के सामने आजीविका चलाने का संकट आ खड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश में अधिकतर राजनीतिक दलों ने इस विषय पर कोई राहत देने वाले कदम न उठाए हैं और न ही अपने चुनावी घोषणा पत्र में ऐसा कोई वादा किया है. इस परिदृश्य में काँग्रेस पार्टी द्वारा महंगाई की मार से बचने के लिए लोगों को अनेक प्रकार से राहत देने का वादा किया गया है. ये वादे पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पार्टी द्वारा की गई प्रतिज्ञा यात्रा मे किये. इनमे मुख्य हैं – परिवारों को सालाना तीन रसोई गैस के सिलिन्डर मुफ़्त देना, सभी उपभोक्ताओं का बिजली बिल आधा माफ करना, कोरोना काल के दौरान का बिजली बिल के बकाया को पूरा माफ करना, कोरोना काल की आर्थिक मार को काम करने हेतु कोरोना पीड़ित परिवारों को 25,000 रुपये की आर्थिक सहायता देना, और किसानों का पूरा कर्ज माफ करना.

ये वादे राजनीतिक न होकर समाज के हर वर्ग को प्रभावित करने वाले विषयों से जुड़े हैं. महिलाओं और महंगाई जैसे मुद्दों को सामने लाने में जो भी राजनीतिक दल पहल करते हैं उन्हे लोगों का समर्थन और साथ मिलने की अधिक उम्मीद रहती है.

अन्य दलों द्वारा जहां तमाम तरह के वादे और दावे किये जा रहे हैं, वहीं हर घर से जुड़े और आजीविका चलाने जैसे मुद्दे पर कोई महत्वपूर्ण आश्वासन नहीं दिया गया है. उत्तर प्रदेश में पिछले पाँच साल के दौरान न केवल महंगाई बेतहाशा बढ़ी है, बल्कि कोरोना की चपेट मे आए परिवारों की दश अत्यंत दुखदायी हुई है. ऐसे में आम लोग राजनीतिक दलों से अपेक्षा करते हैं कि महंगाई और कोरोना की आर्थिक मार से लोगों को राहत देने को भी एक सामाजिक मुद्दा बनाए जाना चाहिए. लेकिन क्या राजनीतिक दल अभी भी ऐसा करने का साहस जुटाएंगे?

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