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मैराथन के जरिए महिलाओं को जोड़ने की रणनीति

सुतीक्ष मिश्र

लखनऊ,नवसत्ता: आरोप और प्रत्यारोपों के बीच उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा चुनाव के प्रचार मे जहां सभी राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची है, वहीं महिला सशक्तिकरण जैसे संवेदनशील मुद्दे को आगे रख कर महिलाओं और लड़कियों को एकजुट करने की कांग्रेस की मुहिम तेजी पकड़ रही है. अब भले ही समाज की आधी आबादी को साधने में सभी राजनीतिक दल जुट गए हों, लेकिन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सबसे पहले महिलाओं का समर्थन पाने का निर्णय लिया था, जब उन्होंने इस चुनाव मे 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की घोषणा की थी.

आज कई राजनीतिक दल मुद्दों की बात करने से बच रहे हैं, वहीं काँग्रेस की इस महिला उत्थान और सशक्तिकरण पहल के साथ प्रदेश की महिलाएं जुड़ाव महसूस कर रही हैं.
पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कुछ समय पहले महिलाओं के लिए अलग से घोषणापत्र जारी किया था. ‘शक्ति विधान’ नाम से जारी इस घोषणा पत्र में सरकारी नौकरियों में 40 प्रतिशत आरक्षण के साथ-साथ महिलाओं के स्‍वाभिमान, स्‍वालम्‍बन, शिक्षा, सम्‍मान, सुरक्षा और सेहत के लिए कई महत्‍वपूर्ण ऐलान किए गए. इसके बाद ही पार्टी द्वारा “लड़की हूं लड़ सकती हूं” के आह्वान के साथ प्रदेश मे महिला मैराथान आयोजन करने की घोषणा की गई.

इस कड़ी की पहली दौड़ 19 दिसम्बर को मेरठ मे आयोजित हुई जिसमे हजारों लड़कियों ने हिस्सा लिया. इसके बाद यह दौड़ 26 दिसम्बर तो आयोजित की जानी थी लेकिन प्रदेश शासन ने इसकी अनुमति निरस्त कर दी थी. यह आयोजन फिर झांसी मे किया गया, जिसमे बहुत बड़ी संख्या में लड़कियों व महिलाओं ने हिस्सा लिया. बिना सरकारी बसें लगाए, बिना सरकारी तंत्र लगाए, झांसी में 10,000 से अधिक लड़कियों ने इस “लड़की हूं लड़ सकती हूं” मैराथन में हिस्सा लिया.

लखनऊ मे मंगलवार 28 दिसंबर को शहीद पथ स्थित इकाना स्टेडियम में कांग्रेस की यह मैराथन दौड़ आयोजित की गई. इस दौड़ में प्रतिभागी छात्राओं की बड़ी तादाद दिखी जो इसके प्रति अति उत्साहित थीं. इन आयोजनों मे अव्वल रही छात्राओं को एक स्कूटी और शीर्ष 25 लड़कियों को स्मार्टफोन और टॉप सौ लड़कियों को फिटनेस बैंड दिए गए.

इसके अलावा सभी प्रतिभागियों को टी शर्ट और मेडल दिए गए. आने वाले दिनों मे आजमगढ़ में पांच जनवरी को, और वाराणसी मे छह जनवरी को मैराथन का आयोजन प्रस्तावित है.

यह सर्वमान्य है कि जब तक महिलाओं की समस्याओं पर विचार नहीं होगा, उन्हें सशक्त नहीं बनाया जाएगा, तब तक विकास की राह में बाधाएं आती रहेंगी. प्रियंका गांधी वाड्रा का कहना है कि लड़कियां अपने हक के लिए लड़ेंगी भी और दौड़ेंगी भी. लड़कियों को कमजोर समझने की भूल कोई भी न करे.

हौसलों की उड़ान को भला कोई कैसे रोक सकता है? हक की आवाज को भला कोई कैसे दबा सकता है. काँग्रेस पार्टी के घोषणापत्र के अनुसार, नए सरकारी पदों में आरक्षण प्रावधानों के अनुसार 40% महिलाओं की नियुक्ति होगी. उनका कहना है कि राजनीति में हम 40% हिस्सेदारी से शुरू कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि ये एक दिन 50% बने. राजनीतिक दल महिलाओं की शक्ति को पहचानते हैं. वे भी जानते हैं कि महिलाएं यदि अपनी शक्ति को राजनीतिक शक्ति में बदल दें तो जातिवाद और सम्‍प्रदायवाद नहीं चलेगा. यदि विकास की राजनीति करनी है तो महिलाओं का सशक्तिकरण जरूरी है.

काँग्रेस की इस अनूठी पहल के बाद अब सभी दलों की प्राथमिकता में आधी आबादी आ गई है. इस कदम ने महिलाओं को राजनीति के केंद्र में ला दिया है.

भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने भी महिलाओं को जोड़ने के अभियान मे तेजी दिखाई है. आँकड़े दिखाते हैं कि पिछले विधान सभा चुनाव में लगभग चार करोड़ महिलाओं ने मतदान किया था, और यह संख्या पुरुषों की तुलना में 4% अधिक थी. महिला मतदाताओं के यह शक्ति दर्शाती है कि जाति की रणनीति के बजाय महिलाओं के सशक्तिकरण से बड़ा सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है.

(लेखक लखनऊ स्थित टिप्पणीकार हैं)

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