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आसान नहीं होगी अदिति के लिए भाजपाई राह

सदर विधानसभा सीट पर अभी तक नहीं खिला कमल

नीरज श्रीवास्तव

रायबरेली,नवसत्ताः रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह ने आज भाजपा का दामन थाम कर सभी तरह की अटकलों को विराम दे दिया है. अब उनके कंधों पर उस सीट पर भाजपा का परचम फहराने की जिम्मेदारी है जहां आज तक कमल खिला ही नहीं. जानकारों के मुताबिक यह उनके लिए आसान नहीं होगा.

अदिति सिंह के बीजेपी में शामिल होने के कारण अब उनके विधायक पति अंगद सिंह सैनी को बड़ा नुकसान हो सकता है. अंगद पंजाब की नवांशहर सीट से कांग्रेस से विधायक हैं. अदिति ने 21 नवंबर 2019 को पंजाब के कांग्रेस से विधायक अंगद सिंह सैनी से शादी की थी.

अदिति ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान अपने पिता अखिलेश सिंह की राजनीतिक विरासत संभाली थी. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली की सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर शानदार जीत दर्ज की थी. इस सीट से अदिति के पिता अखिलेश सिंह पांच बार विधायक रह चुके है. लेकिन 2019 अगस्त में अदिति के पिता का निधन हो गया. पिता के निधन के बाद अदिति सिंह की कांग्रेस से दूरियां बढ़ती दिखाई दी.

सीट का इतिहास

रायबरेली विधानसभा सीट पर 1967 से कांग्रेस का कब्जा रहा है. इस सीट पर आज तक 10 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. 1967 में पहली बार कांग्रेस के मदन मोहन मिश्रा विधायक बने. 1969 में मदन मोहन मिश्रा दोबारा विधायक बने. वहीं इसके बाद 1974 में सुनीता चैहान, 1977 में मोहन लाल त्रिपाठी, 1980 और 1985 में रमेश चंद्र कांग्रेस से विधायक बने. वहीं 1989 में कांग्रेस का विजय रथ थमा और 1991 तक लगातार दो बार अशोक सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक बने.

इसके बाद रायबरेली की राजनीति में अखिलेश सिंह की एंट्री हुई, जिसके बाद उनका नाम ही जीत की गारंटी बन गया. 1993 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर अखिलेश सिंह विधायक बने. वहीं 1996 और 2002 में भी विधायक बनकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई. इतना ही नहीं 2007 में निर्दलीय विधायक बनकर अखिलेश सिंह ने अपनी ताकत दिखाई. इसके बाद पीस पार्टी के टिकट पर वह लगातार पांचवी बार विधायक बने. वहीं 2017 में उन्होंने अपनी बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाया और विधायक बनाया. उनकी जीत की बड़ी वजह बाहुबल के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की उनकी छवि भी थी. आगामी विधानसभा चुनाव में अदिति सिंह की सबसे बड़ी कमजोरी यह होगी कि इस बार उनके पास पिता का साथ नहीं है और भाजपा में आने के बाद उन्हें उस मुस्लिम वोटबैंक से भी हाथ धोना पड़ेगा जो पिछले विधानसभा में उनके पक्ष में और उससे पहले उनके पिता को वोट करता आया है.

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