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अधिकारियों की चिट्ठी से खुलता जल जीवन मिशन का काला चिट्ठा

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2 करोड़ के एस्टीमेट पर एक गांव समिति से वसूला जाएगा 20 लाख

जल निगम की स्वीकृत दरों से कई गुना ज्यादा हैं कंपनियों के रेट

कन्नौज के बाद अमरोहा के एक्सईएन की चिट्ठी

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ताः केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना हर घर नल हर घर जल विवादों का जंजाल बन गई है। आये दिन योजना में भ्रष्टाचार और घोटाले की खबरें आम हो गई हैं। अब तो विभागीय इंजीनियरों ने भी मोर्चा खोल दिया है। अपने पत्रों के माध्यम से इंजीनियर योजना के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। मिशन के अधिशाषी निदेशक को लिखे पत्रों में इंजीनियरों ने योजना में कई तरह के गंभीर मामलों को उजागर किया है। इंजीनियरों के पत्रों से पूरी तस्वीर साफ हो गई है कि जो योजना जमीन पर उतार दी गई उसका विलेज एक्शन प्लान तक नहीं बना। गांव समितियों और जिला समितियों की सहमति के बिना ही कंपनियों ठेकेदारों का चयन हो गया और अब इन्ही से काम कराने का दबाव बनाया जा रहा है।

ताजा मामला है अमरोहा के अधिशाषी अभियंता आकाश जैन का पत्र जिसे उन्होंने राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के अधिशाषी निदेशक को लिखा है। आकाश जैन ने अपने पत्र में 4 बिंदुओं पर बड़े ही गंभीर सवाल खड़े किए हैं। पहला ये कि जब गांवों में पानी पहुंचाने के लिए सब कुछ राज्य समिति ही तय कर दे रही है तो जिला समितियों का रोल क्या है, ठेकेदार या कंपनियों के साथ गांव समितियों या जिला समितियों के साथ होने वाले अनुबंध का तात्पर्य क्या है, जब गांव और जिला समितियों की सहमति के बगैर ही ठेकेदारों कंपनियों का चयन कर लिया गया और उन्हीं से काम कराने के निर्देश भी दिए गए तो अनुबंध गांव समितियों और जिला समितियों से कराने का क्या मतलब है। जल निगम से स्वीकृत दरों के उलट कंपनियों ने एस्टीमेट की दरों को 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जिससे औसतन हर काम की लागत 30 से 40 गुनी बढ़ गई है।

आकाश जैन की चिट्ठी के मुताबिक किसी गांव में हर घर नल देने के लिए जो काम होने हैं उसमें ट्यूबवेल निर्माण पानी की टंकी और पाइप लाइन के जरिए हर घर को नल का कनेक्शन देना है। इस काम पर हर गांव के लिए औसतन करीब 2 करोड़ से ज्यादा का एस्टीमेट बन रहा है और इसमें से लागत का 10 प्रतिशत पैसा गांव समितियों से लिया जाना है। मतलब 2 करोड़ की लागत पर 20 लाख रूपए गांव समिति से लिया जाना है जो एक असंभव सा लक्ष्य है जिसे पाना टेढ़ी खीर से कम नहीं। माना जाता है कि एक गांव समिति की आबादी औसतन 1 हजार से 2 हजार के बीच होती है जहां 300 से 400 घर होते हैं। अब अगर किसी गांव को 20 लाख रूपये किसी योजना के लिए देने पड़ें तो जाहिर है हर घर को करीब 7 हजार रूपए देने पड़ेंगे।

 

यहां ये बात भी बिलकुल साफ हो जाती है कि गांवों में स्वच्छ पानी के लिए हर घर को कनेक्शन फ्री में नहीं बल्कि करीब 7 हजार रूपए खर्च करके ही मिलेगा।

आकाश जैन के पत्र से पहले कन्नौज के भी अधिशाषी अभियंता निर्दोष जौहरी ने भी कई पत्र जल निगम के एमडी और राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के अधिशाषी निदेशक को लिखे हैं और इन पत्रों के माध्यम से मिशन के कार्यों में हो रही तमाम गंभीर अनियमितताओं पर सवाल खड़े किए हैं।

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