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ओपन सर्जरी से होने वाले गाल ब्लैडर कैंसर को एसजीपीजीआई ने लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेट कर स्थापित किया कीर्तिमान,इस विधि से प्रदेश में पहली बार हुआ ऑपरेशन

लखनऊ,नवसत्ता:एसजीपीजीआई में सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार की टीम ने एक और कीर्तिमान स्थापित किया है।यहां आमतौर पर ओपन सर्जरी विधि से होने वाली गाल ब्लैडर कैंसर की सर्जरी लैप्रोस्कोपिक विधि से की गई है।
दरअसल उन्नाव की रहने वाली 42 वर्षीय रानी सिंह को पेट दर्द की शिकायत थी। वह पिछले एक महीने से पेट में दर्द से ग्रसित थी। इन्वेस्टिगेशन करने पर उनको गॉलब्लैडर का कैंसर डायग्नोज हुआ था।
आमतौर पर गॉलब्लैडर कैंसर ओपन सर्जरी से किया जाता है। इसमे 20 से 25 सेंटीमीटर चीरे की जरुर होती है। इस तरह की सर्जरी में कॉल ब्लड के साथ-साथ लीवर का कुछ भाग और ग्रंथियों को निकालना पड़ता है।इसे मेडिकल भाषा में extended cholecy -stectomy कहते हैं । यह एक जटिल आपरेशन है। इस मामले में मरीज के साथ morbid obesity  की समस्या के कारण ज़्यादा मुश्किल था। पेशेंट का वजन 92 किलो बीएमआई 37 था जिससे ऑपरेशन के दौरान और बाद में होने वाली कॉम्प्लिकेशन का सवाल पैदा हो गया था जिसको ध्यान में रखते हुए इसे लेप्रोस्कोपी से करने का फैसला लिया गया और एक टीम तैयार की गई।
इस टीम में मुख्य सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार सेकेंड, एडिशनल प्रोफेसर, गैस्ट्रोसर्जरी विभाग के साथ रेजिडेंट डॉक्टर डॉक्टर रोहित, डॉक्टर मुक्तेश्वर, डॉक्टर रविंदर के अलावा एनेस्थेसिया टीम के डॉक्टर प्रतीक, डॉक्टर रफत , डॉक्टर सुरुचि तथा अन्य कई टीम मेंबर शामिल रहे। इस केस में सामने आने वाली सबसे पहली सर्जिकल तकनीकी समस्या के साथ एनेस्थीसिया से संबंधित परेशानी जोकि इनट्यूबेशन और अन्य प्रोसिजर थे।
मूल रूप से मोरबिड ओबेसिटी के पेशेंट में ऑपरेशन के बाद आने आने वाले कॉम्प्लिकेशन जैसे फेफड़ों के इन्फेक्शन, DVT, पलमोनरी एंबॉलिज्म और बाद में इंसीजनल हर्निया होने का काफी चांस होता है जोकि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है
गॉलब्लैडर कैंसर सामान्यता एशियन देशों में जैसे इंडिया पाकिस्तान , बांग्लादेश और इंडिया में भी नॉर्थ इंडियन लोगों में मूल्य रूप से गंगा के किनारे बसे हुए क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है।
इसका कारण समानता हेरिडिटी , 2 सेंटीमीटर से बड़े गॉलब्लैडर स्टोंस, पोर्सलिन गॉलब्लैडर, १ सेंटीमीटर गॉलब्लैडर पॉलिप, morbid obesity तथा  अन्य कई कारण हैं। मोरबिड ओबेसिटी इस समय का सबसे नया और बड़ता हुआ रिस्क फैक्टर है जिसे सर्जिकल डिफिकल्टी के चलते मेनेज करना और भी मुश्किल है। इस तरह के मरीज़ में गॉलब्लैडर का कैंसर का ऑपरेशन करना नई चुनौती थी जोकि एडवांस लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के द्वारा सफल हो पाई।डॉक्टर अशोक कहते हैं जिसकी वजह से हम आपरेशन के पहले ही दिन चला पाए पाए और दूसरे दिन खाना पीना अलाउड कर सके। पांचवे दिन पेशंट की छुट्टी कर सके।
ओपन सर्जरी की तुलना में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के बहुत ही सारे फायदे हैं जैसे कि ऑपरेशन के बाद बहुत ही कम दर्द का होना, न के बराबर इंसीजन साइज ही नहीं बल्कि ओवरऑल टिशु इंजरी भी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में कम होती है। ब्लड लॉस भी कम होता जिससे कि पेशेंट को ऑपरेशन के बाद कम दर्द झेलना पड़ता है।  उसे जल्दी से मोबिलाइज किया जा सकता है इसके साथ ही साथ लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के मरीजों में फेफड़े का इन्फेक्शन और घाव से रिलेटेड इंफेक्शन और कॉम्प्लिकेशन होने के चांस भी कम हो जाते हैं।
हालांकि सर्जरी में कुछ खर्च ज्यादा हो सकता है क्योंकि कुछ अलग तरह के इक्विपमेंट इस एडवांस लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए चाहिए होते हैं। फिर भी पेशेंट का ओवरऑल ट्रीटमेंट का खर्च कम होता है।क्योंकि पेशेंट जल्दी से जल्दी ठीक हो जाता है।अपने रोज के काम करने में सक्षम हो जाता है।यदि वह कहीं जॉब करता है तो जल्दी से जल्दी अपने जॉब पर जा सकता है जिससे कि उसके पोस्ट ऑफ कॉम्प्लिकेशन मैं खर्च होने वाले पैसों के बचत की भी संभावना होती है। अपने कार्य क्षेत्र में भी जल्द से जल्द योगदान दे सकता है।इसके अलावा मरीजों में पोस्ट ऑपरेटिव कीमोथेरपी भी जल्द से जल्द शुरू की जा सकती है।
हालांकि इस तरह की सर्जरी को लेप्रोस्कोपी से करना बहुत ही मुश्किल माना गया है। दुनियाभर में बहुत ही कम सेंटर पर इस विधि से सर्जरी की जाती है। इंडिया में भी दो से चार सेंटर में ही है जो रूटीन रूप से होती है। इस तरह की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी प्रदेश में पहली बार की गई है।
लेप्रोस्कोपिक एक्सटेंडेड कोलेसिस्टेकटॉमी एक ही बहुत ही जटिल और एडवांस लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है जिसके लिए बहुत ही स्किल, मोटिवेटेड टीम और धैर्य की आवश्यकता होती है इसी वजह से बहुत ही कम सेंटर की जा रही है। लेकिन आगे आने वाले भविष्य मे  कैंसर पेशेंट के सर्जिकल इलाज करने में बहुत ही कारगर साबित हो सकती है। जिसे शुरुआती दौर में सेलेटेड, अर्ली स्टेज कैंसर में रूटीन रूप से किया जा सकता है।
तथा भारत जैसे देश में जहां डॉक्टरों की कमी सर्व ज्ञात है तथा बड़े इंस्टिट्यूट में सर्जरी के पेशेंट की लंबी लिस्ट जिसको अथक परिश्रम के बाद भी पूरा कर पाना कई बार संभव नहीं हो पाता, तो इस तरह की पेशंस में यह सर्जरी ना केवल मरीज को फायदा पहुंचाती है बल्कि पेशेंट के जल्दी से ठीक हो करके डिस्चार्ज हो जाने की वजह से  दूसरे पेशेंट्स के लिए आवश्यकता अनुसार अवेलेबल हो सकते हैं
अतः एडवांस मिनिमल इनवेसिव सर्जरी को आगे बढ़ाने और कैंसर जैसे मुश्किल बीमारियों में भी अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है जोकि पेशेंट के लिए वरदान साबित हो सकता है।

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