सात नये चेहरों के साथ केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में यूपी का दबदबा, हुए 14 मंत्री
नई दिल्ली,नवसत्ताः उत्तर प्रदेश चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंत्रिमण्डल में सात नये मंत्री बनाकर साफ संकेत दे दिया है कि आगामी चुनाव उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। इस विस्तार में दलित-पिछड़ों पर विशेष तौर पर फोकस किया गया है। प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में राज्य के 14 लोकसभा एवं राज्यसभा मंत्री हो गये हैं। भाजपा जानती है कि पिछड़ों और दलितों को नज़रअंदाज करके न तो लोकसभा का चुनाव जीता जा सकता है और न ही विधानसभा का चुनाव। 2017 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव इसी सोशल इंजीनियरिंग के जरिये तो पार्टी ने फतह किया था। 2019 में मोदी सरकार दोबोरा सत्ता में आयी थी, तब यूपी के दो पिछड़े नेताओं को मंत्री बनाया गया था। बरेली से सांसद संतोष गंगवार और फतेहपुर से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति। गंगवार को अब मंत्रिमण्डल से हटा दिया गया है लेकिन, उनकी जगह की भरपाई तीन-तीन पिछड़े नेताओं को शामिल करके की गई है। मंत्री बने महाराजगंज से सांसद पंकज चौधरी, राज्यसभा से सांसद बीएल वर्मा और मिर्जापुर से अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल पिछड़े समुदाय से हैं। इस तरह यूपी से अब कुल 4 मंत्री मोदी कैबिनेट में हो जायेंगे जो पिछड़ी जाति से हैं। पटेल, कुर्मी और लोधी समाज का कॉकटेल बनाने की कोशिश साफ दिखायी दे रही है। मोदी-2 मंत्रिमण्डल में अभी तक यूपी के किसी भी दलित सांसद को मंत्री नहीं बनाया गया था। यूपी चुनाव से ऐन पहले इस समुदाय को बड़ी हिस्सेदारी दी गयी है। पिछड़े समुदाय की ही तरह इस बात दलित समुदाय से भी तीन-तीन मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया जा रहा है। आगरा से एसपी सिंह बघेल, जालौन से भानु प्रताप सिंह वर्मा और लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से कौशल किशोर तीनों दलित समुदाय से हैं। लखनऊ अब देश का पहला ऐसा जिला हो गया है जिसके दो सांसद केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में शामिल हैं। वहीं ब्राह्मणों की तथाकथित नाराजगी को पाटने के लिए भाजपा ने एक और ब्राह्मण चेहरे को मंत्री पद दिया है। चंदौली सांसद महेन्द्रनाथ पांडेय के साथ अब लखीमपुर खीरी सांसद अजय मिश्रा भी मंत्री होंगे। अब वोट बैंक का गणित समझिये कि भाजपा ने आखिरकार पिछड़ों और दलितों को इतने मंत्री पद क्यों दिये? यूपी में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ों का है। 39 फीसदी यहां हैं। इसके अलावा 25 फीसदी दलित वोट बैंक है। ये सही है कि इसका एक बड़ा हिस्सा अखिलेश यादव और मायावती के साथ रहता है लेकिन भाजपा को तो इसी में सेंधमारी करके वीनिंग फैक्टर बनाना है। उसे भरोसा है कि उसका पारम्परिक सवर्ण वोट कहीं नहीं जा रहा। ऐसे में पिछड़ों और दलितों का एक हिस्सा भी उसे मिल जाये तो सीटें आसानी से जीती जा सकेंगी। इसी सोच के साथ पार्टी ने 2017 के चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर पिछड़ों और दलित नेताओं को साधा था। या तो पार्टी के भीतर के नेताओं को भाजपा आलाकमान ने बड़ा ओहदा दिया था या फिर दूसरी पार्टी के पिछड़े और दलित नेताओं को तोड़कर उन्हें बड़ा किया था। उसी फार्मूले को आजमाते हुए इस विस्तार में दलित-पिछड़ों पर विशेष फोकस किया गया है। आज के विस्तार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में अब उत्तर प्रदेश के 14 लोकसभा एवं राज्यसभा सांसद मंत्री बन गए हैं। प्रदेश में भाजपा के 62 लोकसभा और 22 राज्यसभा सदस्य सहित 84 सांसद हैं, जबकि सहयोगी अपना दल (एस) के दो सांसद है। इनमें से प्रधानमंत्री मोदी सहित केंद्रीय मंत्रिमंडल में 15 मंत्री है। पहली बार ऐसा हुआ है जब केंद्र सरकार में इतनी बड़ी संख्या में यूपी को प्रतिनिधित्व मिला है। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है।
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