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डॉक्टर्स डे विशेष:जानिए अपने डॉक्टर के अनसुने किस्से,मिलिए वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉक्टर ब्रजेश श्रीवास्तव से

गरिमा

रायबरेली,नवसत्ता:डॉक्टर्स डे स्पेशल श्रृंखला में आज हम आपका परिचय वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉक्टर बृजेश श्रीवास्तव से कराने जा रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए डॉ. बृजेश का बचपन से ही समाज के हित में काम करने का सपना था। जिसके लिए प्रशासनिक अधिकारी या चिकित्सा के क्षेत्र के विकल्प में उन्होंने अपनी भाभी की इच्छा पूरी करते हुए डॉक्टर बनने का निश्चय किया। एमबीबीएस की पढ़ाई उन्होंने झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज से पूरी की तथा ऑप्थाल्मोलॉजी में पीजी की पढ़ाई उन्होंने केजीएमयू लखनऊ से की।
डॉक्टर्स डे की एक यादगार घटना स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि “जब मैं बाराबंकी के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में मेडिकल सुपरिटेंडेंट पद पर कार्यरत था तो मेरे एक सीनियर कंसलटेंट डॉ. पाठक को बिना कारण विवाद के चलते एक मरीज जो कि एक सिपाही था, ने अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए तमाचा मार दिया था। उस समय मैं हॉस्पिटल में ही मौजूद था और खबर मिलते ही हम सब सदमे में आ गए थे। यह वह दौर था जब एक डॉक्टर को भगवान माना जाता था। मेरे दिमाग में उस क्षण यह बात आई कि हम समाज के प्रबुद्ध वर्ग से आते हैं और समाज की सेवा पूरे तन मन से करते हैं फिर भी हमारे साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो रहा है। हम सब डॉक्टर्स ने एकमत होकर आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी चिकित्सीय सेवाएं तुरंत रोक दी तथा सांकेतिक हड़ताल पर चले गए। उस समय सरकारी अस्पताल में काम का बंद होना स्वयं में आपात स्थिति के समान हो गया था। आनन फानन में तत्कालीन सीडीओ विजय किरन आनंद जो कि कार्यवाहक डीएम भी थे, हमारे पास चिकित्सीय सेवाएं पुन: शुरू कराने के उद्देश्य से पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले मुझसे हाथ मिलाते हुए डॉक्टर्स डे की बधाई दी, जिस पर मैंने कहा था, कि कहे की बधाई साहब आज ही के दिन एक डॉक्टर के मुंह पर तमाचा पड़ा है। पूरी घटना का गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेते हुए उन्होंने तुरंत प्राथमिकी दर्ज किए जाने के निर्देश पुलिस को दिए और आरोपी सिपाही के विरुद्ध विधिक कार्यवाही करके हमारे साथ न्याय किया।
मेडिकल करियर की चुनौतियों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मैंने उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पोस्टमार्टम किए हैं जबकि ज्यादातर डॉक्टर्स पोस्टमार्टम करने से कतराते हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि जिंदा शरीर की सेवा से ज्यादा मुर्दा शरीर की सेवा से पुण्य मिलता है। मैंने अपने करियर में इतने पोस्टमार्टम किए हैं कि मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में आ सकता है।
अंत में डॉ ब्रजेश ने कहा कि डॉक्टर्स को जो शपथ दिलाई जाती है, उसको याद रखते हुए उन्हें हमेशा अपने पेशे से वफादारी करनी चाहिए। डॉक्टर का कर्तव्य मानवता की सेवा करना है, डॉक्टर्स का ना कोई धर्म होता है ना ही संप्रदाय। जीव सेवा ही एक डॉक्टर धर्म होता है। वहीं दूसरी ओर लोगों को कभी भी अपने मरीज के साथ हुई अनहोनी के लिए डॉक्टर्स को दोषी नहीं ठहराना चाहिए क्योंकि एक डॉक्टर अपना शत प्रतिशत अपने मरीज को बचाने के लिए लगता है। यदि दुर्भाग्यवश किसी मरीज के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो जितना दु:ख मरीज के तीमारदारों को होता है उतना ही दु:ख एक डॉक्टर को भी होता है क्योंकि है तो वह भी एक इंसान इसीलिए हमेशा डॉक्टर के साथ सबको एक विश्वास का रिश्ता बनाकर रखना चाहिए।

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