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डॉक्टर्स डे विशेष:जानिए अपने डॉक्टर के अनसुने किस्से,मिलिए बाल दंत रोग विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर मधुलिका श्रीवास्तव से

गरिमा

हल्की फुल्की रैगिंग के बीच एक दिन बुरे फंस गए।दरअसल हमारे सीनियर्स ने हमें रोका तो लगा कुछ गाना वाना गाने को कहा जायेगा।हम दिए जाने वाले हुक्म का इंतज़ार ही कर रहे थे कि सीनियर्स में से एक छात्र ने मेरी तरफ तीखी हरी मिर्च बढ़ा दी।कुछ समझ पाती उससे पहले ही एक सीनियर का हुक्म आ गया।पूरी मिर्च खा लो।मना कर नहीं सकते थे।टॉस्क बड़ा था।डरते हुए मिर्च हाथ में ली और एक ही सांस में उसे चबा डाला।खा तो लिया लेकिन मिर्च तीखी थी।नतीजे के तौर पर आंखों से आंसू और गले तक मुँह में राल भर गई…..

ग़ाज़ियाबाद,नवसत्ता:अपने डॉक्टर्स के अनसुने किस्सों की श्रृंखला में हमने बात की बाल दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव से।डॉक्टर मधुलिका फिलहाल यहां के आईटीएस डेंटल कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।डॉक्टर मधुलिका ने अपने अनसुने किस्सों को शेयर करते हुए बताया, उनके परिवार में कई पीढ़ियों में कोई भी डॉक्टर नहीं था।उनके बचपन का सपना था,बड़ी होकर डॉक्टर बनूँगी। मेरा सोंचना था,कभी भी परिवार में कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या हुई तो भटकना नहीं पड़ेगा।अपने इसी सपने को साकार करने के लिए तैयारी की और मेडिकल की परीक्षा दी। एमबीबीएस में चयन न होने पर डॉ. बीडीएस का विकल्प चुना। निश्चय किया कि अब इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना है। इसी कड़ी में बीडीएस और एमडीएस की शिक्षा बाबू बनारसी दास डीम्ड यूनिवर्सिटी लखनऊ से हासिल की। एमडीएस होने के बाद वहीं पर सहायक प्रोफेसर के पद से अपने कैरियर की शुरुआत किया।वर्तमान समय में गाजियाबाद के आईटीएस डेंटल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्य कर रही हूं।

बीडीएस की पढ़ाई के दौरान का दिलचस्प किस्सा शेयर करते हुए डॉक्टर मधुलिका श्रीवास्तव बताती हैं,रैगिंग के लिए हम कहीं भी कभी भी पकड़ लिए जाते थे।कभी गाने सुनाने की फरमाइश तो कभी किसी की मिमक्री करके बताने का हुक्म।हम मेडिकल स्टूडेंट्स दरअसल इससे परेशान होने की जगह रैगिंग को एंजॉय करते हैं।हल्की फुल्की रैगिंग के बीच एक दिन बुरे फंस गए।दरअसल हमारे सीनियर्स ने हमें रोका तो लगा कुछ गाना वाना गाने को कहा जायेगा।हम दिए जाने वाले हुक्म का इंतज़ार ही कर रहे थे कि सीनियर्स में से एक छात्र ने मेरी तरफ तीखी हरी मिर्च बढ़ा दी।कुछ समझ पाती उससे पहले ही एक सीनियर का हुक्म आ गया।पूरी मिर्च खा लो।मना कर नहीं सकते थे।टॉस्क बड़ा था।डरते हुए मिर्च हाथ में ली और एक ही सांस में उसे चबा डाला।खा तो लिया लेकिन मिर्च तीखी थी।नतीजे के तौर पर आंखों से आंसू और गले तक मुँह में राल भर गई।
डॉ. मधुलिका बताती हैं,बचपन से खेलकूद में दिलचस्पी थी।क्रिकेट, हॉकी,बैडमिंटन वगैरह खेलना बहुत पसंद था। क्रिकेट से विशेष लगाव था। यही वजह है मेडिकल की पढ़ाई के दौरान अपने कॉलेज क्रिकेट टीम की कैप्टन भी रही।बीडीएस के दौरान इंटर-कॉलेज चैंपियनशिप में 13 छक्कों और अकेले 119 रन बनाकर अपनी कॉलेज टीम को जिताया और खुद वुमन ऑफ सीरीज का पुरस्कार हासिल किया। वह बताती हैं,इसके अलावा पुलेला गोपीचंद जैसे खिलाड़ी के सामने बैडमिंटन भी खेला है।
डॉ. मधुलिका बताती हैं,वह बच्चों की दंत चिकित्सक हैं।इसलिए उनका काम ज्यादा ही चुनौतीपूर्ण है।कहती हैं यह तब और भी कठिन होता है जब उनके सामने कोई फिजिकली चैलेंज्ड बच्चे का केस हो,क्योंकि सामान्य बच्चे को ही दर्द के साथ धैर्यपूर्वक बिठाकर रखना मुश्किल होता है।जबकि यह बच्चे तो सामान्य बच्चों की बराबरी करने के लिए जीवन से संघर्ष कर रहे होते हैं।डॉ. मधुलिका कहती हैं,फिर भी ऐसे केस करके आत्मसंतुष्टि मिलती है।उसका अलग ही मजा होता है।
समाज के लिए क्या संदेश है,यह पूछे जाने पर कहती हैं, बच्चों में दांतों की समस्या को कभी भी कम नही समझना चाहिए।कहती हैं, जब नींव ही मजबूत नहीं होगी तो आगे भी समस्याएं आएंगी। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में महामारी को देखते हुए वह कहती हैं, हम सबको अपने मुख की सफाई एवं स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोज दो बार ब्रश करना चाहिए। सोते समय ब्रश अवश्य करना चाहिए।

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