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उत्तर प्रदेश में जातीय ताना बाना बुन सत्ता की सीढ़ी तैयार करनेे में जुटीं माया

नीरज श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ता: अपने सियासी दांव से लोगों को हैरत में डालने के लिए मशहूर बसपा सुप्रीमों मायावती प्रदेश विधानसभा चुनाव से पूर्व सियासत की नई इबारत लिखने की तैयारी कर रहीं हैं। इसके लिए वे अपने पार्टी संगठन के जातीय ढांचे को भी नये सिरे से गढ़ रहीं हैं। पार्टी के दो कद्दावर नेताओं का निष्कासन भी इसी दिशा में उठाया गया कदम है।


बसपा ने आज पार्टी विधानमण्डल दल नेता लालजी वर्मा व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को पार्टी से निष्कासित कर दिया। उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। पार्टी अध्यक्ष मायावती के इस कदम के बाद 403 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी के मात्र सात विधायक ही बचेंगे। पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बसपा के नौ विधायक पहले ही निलम्बित चल रहे हैं।


इनमें असलम राइनी ( भिनगा-श्रावस्ती),असलम अली (ढोलाना-हापुड़),मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद),हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज),हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर),सुषमा पटेल( मुंगरा बादशाहपुर) वंदना सिंह -( सगड़ी-आजमगढ़), अनिल सिंह (पुरवा-उन्नाव) और रामवीर उपाध्याय (सादाबाद-हाथरस) शामिल हैं।

विधायकों की घटती संख्या व लम्बे वक्त से सूबे की सियासत में हाशिये पर रहीं बसपा अध्यक्ष मायावती का पूरा ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव पर हैं। इसके लिए जांचा परखा जातीय राजनीति का फार्मूला उनके सामने है। आज दो नेताओं के निष्कासन के साथ ही आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर विधानसभा सीट से विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को बसपा विधानमंडल दल का नया नेता नामित किया है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर पहले ही भीम राज भर की नियुक्ति की जा चुकी है। अपनी जातीय राजनीति के जरिये बसपा ने पहली बार 2007 में बसपा ने प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था।

उत्तर प्रदेश का आगामी चुनाव मायावती के लिए बेेहद अहम है। यही कारण है विधायकों की परवाह न कर अपने अंदाज में सियासत कर रहीं हैं। दलित वोट बैंक के साथ मुस्लिम वोट बैंक पर भी उनकी नजर है। पिछली बार के विधानसभा चुनाव में मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिये थे। आज शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधानमंडल दल का नया नेता बनाकर उन्होंने साफ संकेत दे दिया है कि इस बार के चुनाव में भी वे बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारेंगी।
दलित,मुस्लिम के साथ उनकी निगाह भाजपा सरकार से नाराज चल रहे ब्राहमण मतदाताओं पर है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी में पिछड़ी जाति का बड़ा चेहरा न होने के कारण अपना दल के साथ गठबंधन पर गंभीरता से विचार चल रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में धर्म की आंधी ने जातीय ढांचे को छिन्न-भिन्न कर दिया था। दहाई से इकाई में सिमटी बसपा सुप्रीमों इस बार सत्ता तक पहुंचने के लिए उसी जातीय तानेबाने को बुन मजबूत सीढ़ी तैयार करती दिख रहीं हैं।

 

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