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ज़िले में कोरोना जांच के नाम पर खानापूर्ति, ग्रामीण इलाकों के लिए नहीं है कोई कार्य योजना, ब्लैक फंगस साबित हो रहा है कोढ़ में खाज

राय अभिषेक/एस एच अख्तर

रायबरेली,नवसत्ता: जिले में सरकारी रिकॉर्ड स्थिति सुधरने का दावा कर रहे है, पिछले एक महीने में वैक्सीनेशन की प्रतिदिन की औसत दर 28-30 प्रतिशत के आसपास है, ब्लैक फंगस जिसका ख़तरा दक्षिण भारत में बहुत ज्यादा था अचनक से उत्तर भारत में भी लोगो को चपेट में ले रहा है और रायबरेली जिले में भी पैर पसारने की शुरुआत हो चुकी है, ग्रामीण क्षेत्रो से कोरोना की जांच और टीकाकरण में सहयोग नहीं मिल रहा, न ही कोई लोगो के लिए शैक्षिक इश्तेहार कही दिखते है, घरो में बैठे लोग इंतज़ार कर रहे की कब से पुनः खुल के जीवन जियेंगे, दुकानों में लगे ताले जंग खाने की अवस्था में आ चुके है, हर तरफ फैली इसी असमंजस्य की स्थिति को देखते हुए नवसत्ता ने आज जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वीरेन्द्र सिंह से बात की कि “अभी की स्थिति के मद्देनज़र आखिर क्या है अभी स्वास्थ्य व्यवस्था और क्या योजनाये है?”

ब्लैक फंगस से खूब बचिए, अगर हो गया तो लखनऊ से पहले इलाज नहीं है

ज़िले में ब्लैक फंगस से अब तक दो मौतें हो चुकी हैं।दो अन्य का इलाज लखनऊ में जारी है। ब्लैक फंगस से खूब बच कर रहें क्योंकि अगर हो गया तो इसका इलाज ज़िले में नहीं होगा| स्वाथ्य विभाग सीधे लखनऊ रेफर करेगा। ब्लैक फंगस को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने एडवाइजरी भी जारी की है। बेहतर यही है कि ब्लैक फंगस से बचाव को लेकर दी गई सलाह का  पालन करें क्योंकि इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं ज़िले में उपलब्ध नही है। मुख्य चिकित्साधिकारी के मुताबिक ब्लैक फंगस के लक्षण नज़र आने पर मरीज़ को केजीएमसी रेफर किया जाता है जहां जांच के बाद ही पता चलता है कि वास्तव में ब्लैक फंगस है या नहीं। हालांकि अच्छी बात यह है कि कोरोना की तरह ब्लैक फंगस संक्रामक रोग नही है। यानि ब्लैक फंगस एक से दूसरे में ट्रांसफर तो नहीं होता है लेकिन शरीर कमज़ोर हुआ तो इस रोग से बच पाना मुश्किल होगा। बेहतर यही है कि आंख में कोई समस्या हो तो सीधे सरकारी अस्पताल का ही रुख करें।

ज़िला स्तर पर कोरोना को लेकर कंधा झाड़ रहे हैं ज़िम्मेदार

पिछले दिनों पूरे देश समेत ज़िले में भी तबाही मचा चुके कोरोना संक्रमण को लेकर लापरवाही चरम पर है। ग्रामीण इलाकों में कोरोना नियंत्रण को लेकर सभी ज़िम्मेदार अपना कंधा झाड़ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के पास इसे लेकर कोई कार्य योजना नहीं है।ज़िले में स्वास्थ्य विभाग के मुखिया कहते हैं,हमने सीएचसी पर टेस्ट की व्यवस्था कर दी है। हमारे डॉक्टर वहां मौजूद हैं। लोगों की जांच कराने की ज़िम्मेदारी बीडीओ की है। जन प्रतिनिधियों से भी कहा गया है। प्रधान, विधायक और सांसद अपने इलाके के लोगों को जागरूक करें और जांच से लेकर इलाज तक के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करने की उनसे अपेक्षा की गई है।

उधर वास्तविक स्थिति यह है कि नवसत्ता की पड़ताल में एक-दो गाँवों को छोड़ दे तो किसी भी गांव में किसी जनप्रतिनिधि की सहभागिता सामने नहीं आई है। आंगनबाड़ी और एएनएम भी कागज़ी खानापूरी कर रही हैं। नतीजे के तौर पर गांव गांव में सर्दी जुकाम के मरीज़ हैं लेकिन वह मानने को तैयार नहीं कि उन्हें कोरोना भी हो सकता है। समझना मुश्किल नहीं कि लॉकडाउन में ढील होते ही यह कोरोना कैरियर एक बार फिर तबाही का कारण बनेंगे।

स्वास्थ्य शिक्षा विभाग सोया है कुम्भकर्णी नींद

स्वास्थ्य विभाग के अधीन होता है  स्वास्थ्य शिक्षा विभाग। इस विभाग का काम होता है स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना और लोगों को इसे लेकर शिक्षित करना। पेंडमिक जैसे हालात में लोगों के बीच फैली भ्रांतियां दूर करने का काम भी इसी विभाग का है। वाल राइटिंग, पम्पलेट और अखबारों जैसे माध्यम का इस्तेमाल कर यह विभाग पूर्व में अपनी उपयोगिता साबित करता रहा है। वर्तमान में ऐसा कोई क्रिया कलाप विभाग अंजाम नहीं दे रहा है। इसी का नतीजा है कि ग्रामीण इलाकों में कहीं कोरोना को दैवीय प्रकोप माना जा रहा है तो कहीं इसके अस्तित्व पर ही ग्रामीण सवाल कर रहे हैं। गांव गांव में वैक्सीन को लेकर भी भ्रांति है कि इसे लगवाने पर दो साल में मृत्यु हो जाएगी। एक तरफ सरकार जिलों में भरपूर वैक्सीन उपलब्ध करा रही हैं और दूसरी तरफ ज़िला स्तर पर कार्य योजना न होने से न केवल वैक्सीनेशन का लक्ष्य पिछड़ रहा है बल्कि वैक्सीन की बर्बादी भी हो रही हैं।

तीसरी लहर से कैसे निपटेगा स्वास्थ्य विभाग

कोरोना की तीसरी लहर को लेकर  भी स्वास्थ्य विभाग के पास कोई खुद की कोई कार्य योजना नहीं है। मुख्य चिकित्साधिकारी कहते हैं हम लोग गाइडलाइन पर चलते हैं। गाइडलाइन के मुताबिक सितंबर अक्टूबर तक कोरोना की तीसरी लहर संभावित है। उधर ज़िले में टेस्टिंग ट्रेसिंग और वैक्सिनेशन कक लक्ष्य पहले ही पिछड़ा हुआ है। एक जून से अट्ठारह प्लस के वैक्सिनेशकन की शुरुआत होनी है। पिछला लक्ष्य पूरा नहीं,अगला लक्ष्य एक जून से तैयार खड़ा है ऐसे में तीसरी लहर से स्वास्थ्य विभाग कैसे निपटेगा उसे खुद नही पता। बताया जा रहा है कि तीसरी लहर बच्चों को चपेट में ले सकती है। ज़मीनी स्तर पर देखें तो सब से पहले ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ विभाग के पास बच्चों के विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं। सीएचसी स्तर पर ऑक्सीजन उपलब्ध कराए जाने को लेकर विभाग के पास कोई जानकारी नही है।

अच्छी बात यह है कि ज़िले में अभी तक किसी बच्चे में कोरोना के लक्षण नही नज़र आये हैं। इसे शुभ संकेत तो मान सकते हैं लेकिन यदि तीसरी आती है तो भरपूर समय होने के बावजूद तैयारियां न के बराबर हैं।

 

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