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हमने कोरोना को ऐसे दी मात

राय अभिषेक

रायबरेली, नवसत्ता: हम हिन्दुस्तानी है और हिन्दुस्तानियों ने अपने हौसले की वजह से ही बड़ी से बड़ी लड़ियाँ लड़ी है, हमरे आत्मबल और आत्मविश्वास का कोई भी सानी नहीं है, और किसी भी जंग में यदि परिवार का सहयोग मिल जाये तो उसे जीतना चुटकियो का खेल है फिर कोरोना क्या चीज़ है, ये कहना है हमारे आज के कोरोना योद्धा का जिन्होंने संक्रमण के आगामी प्रकोप से जनता को बचाने की तैयारियों में दिन रात लगा दिया:

 

जिस चीज़ की दवा नहीं है उस चीज़ के लिए हौसला बना के रखिये: डॉ भावेश कुमार

रायबरेली, नवसत्ता: पिछले वर्ष कोविड की पहली लहर के समय सभी सरकारी अस्पतालों में ओपीडी बंद हो गई थे और सभी अधीक्षकों को कोविड से सम्बंधित काम बाटा गया था| उस समय रायबरेली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संजय कुमार शर्मा जी ने मुझे कुछ बड़ा काम देने के लिए बोला था और कुछ ही दिनों पश्चात जिले में एल2 अस्पताल बनाने का शाशानादेश आने पर तत्कालीन जिलाधिकारी शुभ्रा सक्सेना द्वारा रेल कोच का चयन किया गया| मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने मुझे उस प्रस्तावित एल२ अस्पताल का नोडल ऑफिसर बना दिया गया था जोकि वास्तव में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी और विभाग एवं जिला प्रशासन की मुझसे अपेक्षाए भी बढ़ गयी थी| उस समय मैं अपने सामुदायिक केंद्र में कोविड की गतिविधियों को भी देख रहा था और साथ साथ एल2 अस्पताल के सारे कार्य कर रहा था जिसे मैंने अपनी टीम के साथ 3 महीने के रिकार्ड् समय में सारी सुविधाओं के साथ 200 बेड से शुरू कर दिया| आप ये समझ ले कि उस समय मैंने मरीजो के बेड तक अपने हाथो से कसे है कि किसी भी प्रकार की आपदा के समय मैं अपनी जिम्मेदारियों में पीछे न रह जाऊ| मैं खीरों से अपने खाने का टिफिन लेकर रोज़ लालगंज जाता वहां की सारी तैयारियों को सुनिश्चित करता और रात 9-10 बजे तक वापस आ जाता था | 28 अगस्त 2020 को मुझे हल्का सा बुखार और खांसी की समस्या हुई तो मैंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से अपनी तबियत का हवाला देकर छुट्टी माँगी तो उन्होंने अगले दिन एल२ में जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव के निरिक्षण के बाद मुझे छुट्टी पर जाने के लिए बोल दिया| अगले दिन जिलाधिकारी अपने निरिक्षण में मुझसे पूरी तरह संतुष्ट हुए और उसके बाद मैं छुट्टी लेकर अपने घर लखनऊ चला गया| वहां मैंने अपने बुखार और खांसी का सामान्य इलाज करने लगा लेकिन मेरा बुखार बहुत तेज़ी से बढ़ रहा था| जब 5-6 दिन तक मेरा बुखार बढ़ता ही जा रहा था तो मुझे संक्रमण का एहसास हुआ तो मैं अपने घर की तीसरे मंजिल में आइसोलेट हो गया और अपने को सभी खाना पीना डिस्पोजेबल बर्तन में देने को बोल दिया था| जब मेरी काफी ज्यादा सांस फूलने लगी तो मैंने अपनी पत्नी के साथ कोविड की जाँच चौक में चरक में कराया जिसमे मैं, मेरी पत्नी पॉजिटिव आये उसके बाद अपने मम्मी पापा का भी टेस्ट कराया जिसमे मेरी माँ भी कोविड पॉजिटिव आई| अब हम सबके सामने ये समस्या थी की हमारे 2 छोटे बच्चे किसके पास रहेंगे? उसके बाद जब मेरी सांस लेने की समस्या और बढ़ी तो लखनऊ के सरदार पटेल डेंटल कॉलेज जोकि उस समय कोविड अस्पताल था, में अपने एक डॉक्टर मित्र के माध्यम से जाकर मैंने अपना एक्सरे कराया जिसमे मुझे नेमोनिया की शुरुआत का पता चला लेकिन चूँकि उस समय मेरी ऑक्सीजन 90 से नीचे जा चुकी थी तो मुझे तुरंत इमरजेंसी में भर्ती करा दिया गया| जिसके बाद सरे प्रोटोकॉल के साथ मेरा इलाज शुरू कर दिया गया और 4 लीटर के ऑक्सीजन का सपोर्ट दिया गया और रात भर मेरी मोनिटरिंग अन्य मरीजो के साथ हुई|| अगले दिन मुझे एक अलग कमरे में शिफ्ट कर दिया गया और मुझे व्हील चेयर पर बैठने को कहा गया जिसके लिए मैंने मना कर दिया था| मैं उनके साथ तीसरी मंजिल तक कठिनाई के बावजूद चढ़ के गया| वह दो दिन के इलाज के बाद मुझे बोला गया की प्लाज्मा थेरेपी करनी पड़ेगी जिसके लिए मैंने सहमती नहीं दी और ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल को ही जारी रखने को कहा, तब तक मेरा नेमोनिया दोनों फेफड़ो में फ़ैल चुका था| 2 दिन बार फिर प्लाज्मा थेरेपी के की सलाह को मैंने नकार दिया| वहां मुझे 4-8 लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जाता था जिसे किसी के न रहने पर मैं स्वयं ही हटा देता था और उसके बाद ब्रीथिंग एक्सरसाइज और एरोबिक्स करता था, सुबह 6 बजे चुपचाप नीचे आकर हॉस्पिटल कैंपस में 45-50 मिनट तक रोज़ टहलता था चाहे जितनी भी सांस फूले| एक बात जरूर बताना चाहूँगा की मैंने अपने पास से वो सारे माध्यम हटा दिए थे जिससे की मुझे कोई भी नकारात्मक सूचना मिले| अपनी इक्षाशक्ति, आत्मबल, नियमित इलाज और व्यायाम की वजह से सिर्फ 4 दिनों में सारे पैरामीटर्स नार्मल होने लगे| अपने 13 दिन के दौरान इसी दिनचर्या और नियमित जीवन शैली की वजह से मैं ठीक होकर वापस घर आ गया| इसके बाद मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी की समस्या हुई पर प्रोटीन युक्त खाना और दवाइयों के सेवन से अपने को ठीक किया और दसवे दिन ही अपने कार्यक्षेत्र खीरों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुच गया| ये सही है की संक्रमित होने पर सभी को डर लगता है पर मैं यही कहूँगा की जिस चीज़ की दवा नहीं है उसके लिए हौसला ही बना के रखे और चिकित्सीय परामर्श का पूरा अनुपालन करिए| हम तो हिन्दुस्तानी लोग है और हिन्दुस्तान में सारा काम हौसले से ही होता है| अपने को सकारात्मक रखिये, हौसले को बुलंद रखिये, नियमित व्यायाम करिए|

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