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हमने कोरोना को ऐसे दी मात

राय अभिषेक

लखनऊ, नवसत्ता : अगर परिवार और दोस्तों का साथ हो तो कोई भी जंग आसानी से जीती जा सकती है, और बात अगर जिंदगी की मौत से जंग की हो तो जीतना और भी आसान हो जाता है, जब परिवार और दोस्त सकारात्मकता और हौसले जैसे हथियारों के साथ उस जंग में आपका साथ दे रहे हों। कोरोना जैसे दुश्मन के साथ युद्ध में सकारात्मक विचार और अपनों का साथ ही जीतने में हमारी सहायता कर रहा है।

 

पति और बेटी के हर कदम पर साथ और दोस्त के हौसले और हिम्मत ने दी मुझे नई जिंदगी : मिताली पीयूष पांडेय

ग्रेटर नोएडा निवासी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत मिताली पीयूष पांडेय अपने कोरोना संक्रमित होने के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, कि उनके पति व सवा तीन साल की बेटी के सहयोग एवं उनकी एक मित्र के हौसले ने उन्हें मौत के मुंह से बाहर निकलने में मदद की।

उन्होंने बताया, कि मेरी तबियत 19 अप्रैल 2021 से खराब चल रही थी, लेकिन मैं नहीं समझ पा रही थी कि ये कोरोना है। मुझे गले में मामूली दर्द और खराश के अलावा और कोई भी लक्षण नहीं थे, फिर भी मैंने सामान्य सर्दी और बुखार की दवाईयां लेनी शुरू कर दी साथ ही कोविड टेस्ट कराने के लिए भी प्रयास करना शुरू कर दिया, पर कहीं भी टेस्ट न हो पाने की वजह से पूर्व की भांति दवाईयां चालू रखीं। 22 अप्रैल 2021 को मेरी सोसाइटी में कोविड टेस्ट हो रहा था तो मैंने वहां जाकर अपना टेस्ट करवाया। उस दिन मुझे बदन दर्द और बुखार की शिकायत थी। टेस्ट की रिपोर्ट 3 दिन बाद मिली, जो नेगेटिव थी। लेकिन मेरा बुखार बढ़ता ही जा रहा था और अगले दिन से मुझे महक आनी भी बंद हो गई। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था, कि मैं कोरोना संक्रमित हो चुकी हूं पर रिपोर्ट नेगेटिव थी, तो हमने उस रिपोर्ट को नजरंदाज करके अपने डॉक्टर से सलाह ली और उनकी बताई गई दवाईयां लेनी शुरू कर दी। 4 दिनों के बाद मेरे पति को भी बुखार आने लगा और उसके अगले दिन से मेरी सवा तीन साल की बेटी को भी बुखार हो गया, और इस तरह से हमारी पूरी फैमिली संक्रमित हो गई। मेरे पति ने बुखार से पीड़ित होने के बावजूद मेरी बहुत सहायता की और मुझे उनका पूरा सहयोग मिला।

मेरी तबियत बीच बीच में ठीक होती थी पर थोड़ा भी काम करने पर फ़िर बिगड़ जाती थी। इसी दौरान मैंने अपनी बेटी के पेडियाट्रेशियन से बात की तो उन्होंने मेरी खांसी को देखते हुए मुझे एचआरसीटी करवाने की सलाह दी तो 4 दिन के बाद मैने टेस्ट करवाया और उसमें मेरा स्कोर 8 आया, जो बहुत ज्यादा नहीं था, तो मैंने सोचा कि ये नॉर्मल है आजकल तो सबको ही थोड़ा बहुत इन्फेक्शन है। फिर मुझे पता चला कि मुझे निमोनिया हुआ है। मैं अपने डॉक्टर के कहे अनुसार ही सब दवाईयां और परहेज लेती रही। मेरा बुखार 101-102 से नीचे जा ही नहीं रहा था। मैं पूरा दिन प्रोनिंग पोजिशन में लेती रहती थी। ऑक्सीजन लेवल 92 तक पहुंच चुका था। मैंने स्टेराइड्स लेना शुरू कर दिया था। एक रात को अचानक मेरा ऑक्सीजन लेवल 86 पहुंच गया, तो फिर हमने ऑक्सीजन सिलेंडर की खोज शुरू कर दी, किसी तरह से मुझे अपनी सोसाइटी में किसी से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मिला, जिससे मुझे काफी आराम मिला और 3-4 घंटे में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर रही। अगले दिन मेरी एक दोस्त सना भगवान का रूप ले कर आई। वो पीपीई किट पहन कर मेरे घर के अंदर आई और मेरी हालत देखकर उसने मुझे फौरन हॉस्पिटलाइज्ड होने की सलाह दी। मुझे हिम्मत हारते हुए देख कर उसने मेरा हौसला बढ़ाया और बोला तुम्हें अपनी बेटी के लिए अपनी जिंदगी से संघर्ष करना होगा। फिर उसके साथ हम एक हॉस्पिटल गए और वहां जाकर हमने वार्ड बॉय के पैर पकड़ लिए कि मुझे एडमिट कर लिया जाए पर उसने हॉस्पिटल में बेड खाली न होने की बात करके अपनी असमर्थता जता दी। फिर अगले दो हॉस्पिटल्स में भी हमें निराशा ही हाथ लगी। तभी एक सोर्स से हमें दिल्ली में मुनिरका के नेस्टिवा हॉस्पिटल का पता लगा वहां तक पहुंचते पहुंचते मेरा ऑक्सीजन लेवल 76 पहुंच चुका था और मैं गिर पड़ी थी। गिरते वक्त मुझे आखरी आवाज मेरी बेटी की सुनाई दी। मैंने बोला अब मैं यहां से कही भी और गई तो मैं नहीं बचूंगी। अंतत: मुझे बेड और कंसंट्रेटर मिला और मैं वहां एडमिट हो गई मेरे पति का बुखार भी जस का तस था। वो भी हॉस्पिटल आने में असमर्थ हो गए थे तो मेरी दोस्त ही आती थी और मुझे खाना वगैरह खिलाती थी। मैं निराशा से भरती जा रही थी। मेरे मम्मी, पापा, भाई, भाभी सभी मुझे लेकर बहुत परेशान थे और आने की जिद कर रहे थे पर मैंने सबको मना कर दिया। एक दिन मेरी हालत बहुत खराब हो गई तो मैंने अपने पति को बोला कि वो मेरे पास आ जाएं तो उन्होंने मेरी बेटी को एक रिश्तेदार के घर रखा और हॉस्पिटल आ गए लेकिन उनकी हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि आते ही उनको भी एडमिट होना पड़ गया। हॉस्पिटल स्टाफ ने हम दोनो का बेड अगल बगल ही लगाया जिससे हम दोनों भावनात्मक रूप से एक दूसरे को संबल देते रहें। और ये बहुत ही कारगर साबित हुआ। पति के आने के बाद मुझे पॉजिटिव फील होने लगा, बहुत हिम्मत मिली और में रिकवर करने लगी। बीच में मुझे कफ के साथ खून आने लगा था तो मुझे जीने की उम्मीद टूटती सी लगी पर फिर अपनी बेटी के बारे में सोचा तो मुझमें लड़ने की हिम्मत मिली। हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ ने मेरी बहुत सहायता करी। हम अभी भी रिकवरी पीरियड में चल रहे है। और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने मेरी जान बचाई।

 

 

 

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