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क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट,और क्यों हो रहा है इसका विरोध

परियोजना पर अंतरिम रोक लगाने वाली मांग की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट कल करेगा सुनवाई

नई दिल्ली,नवसत्ताः कारोना महामारी के बीच 20 हजार करोड़ की लागत वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर मोदी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। नई संसद,प्रधानमंत्री आवास व अन्य निर्माणों को गैरजरूरी और इससे कोविड संक्रमण फैलने के खतरे को देखते हुए इस परियोजना पर अंतरिम रोक लगाने वाली मांग की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट कल सुनवाई करेगा।

सेंट्रल विस्टा क्या है?

सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं। राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाका इसके अंतर्गत आता है। सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर आता है। इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं।

सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के इस पूरे इलाके को रेनोवेट करने की योजना को कहा जाता है।
सेंट्रल विस्टा परियोजना ( ) की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। इसके तहत त्रिकोण के आकार वाले नए संसद भवन का निर्माण किया जाएगा जिसमें 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसका निर्माण अगस्त 2022 तक पूरा होना है। उसी वर्ष भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। इस परियोजना के तहत साझा केंद्रीय सचिवालय का निर्माण 2024 तक पूरा होने की उम्मीद है।

विरोध का कारण

देश इस समय कोरोना महामारी के दौर से जूझ रहा है। केन्द्र सरकार मांग के मुताबिक न तो आक्सीजन उपलब्ध करा पा रही है और न ही दवायें और टीके। ऐसे में 20 हजार करोड़ की लागत से बन रहे इस प्रोजेक्ट को इस समय जारी रखने को सरकार की संवेदनहीनता माना जा रहा है।

पर्यावरण का सवाल


इस परियोजना के तहत करीब 80 एकड़ जमीन ’प्रतिबंधित’ हो जाएगी और सिर्फ सरकारी अधिकारी उसे एक्सेस कर सकेंगे। अभी ये जमीन पब्लिक के लिए भी खुली है। आर्किटेक्ट्स का तर्क है कि जमीन के इस्तेमाल में बदलाव ’कानूनी रूप से मान्य’ नहीं है और जो जगहें पब्लिक के लिए खुली नहीं रहेंगी, उनकी भरपाई करने का कोई प्रावधान नहीं है।
इस प्रोजेक्ट का कोई पर्यावरण ऑडिट नहीं कराया गया। कम से कम 1000 पेड़ काटे जाएंगे। 80 एकड़ जमीन के ग्रीन कवर की भरपाई करने की कोई योजना नहीं है। जलवायु एक्टिविस्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि निर्माण शुरू होने के बाद दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में और बढ़ोतरी हो जाएगी।
इसी तरह प्रोजेक्ट का कोई ऐतिहासिक या हेरिटेज ऑडिट भी नहीं हुआ है। यहां तक कि नेशनल म्यूजियम जैसी ग्रेड 1 हेरिटेज इमारत को भी तोड़ा या उसमें बदलाव किया जाएगा। ये इमारतें आर्किटेक्चरल एक्सीलेंस और नेशनल इम्पोर्टेंस की हैं।

न्यायालय में रोक की याचिका

कोविड महामारी के बीच सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत जारी निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पहले से ही आलोचनाओं के घेरे में है। प्रोजेक्ट पर हजारों करोड़ खर्च करने को लेकर सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं। अब इस प्रोजेक्ट पर कोर्ट में भी सुनवाई होगी। दिल्ली हाई कोर्ट 11 मई को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर अंतरिम रोक मांगने वाली एक याचिका पर सुनवाई करेगा।

ये याचिका महामारी के दौरान चल रहे प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग करती है। कोर्ट ने पहले इस पर सुनवाई की तारीख 17 मई तय की थी।

कोर्ट ने सुनवाई को स्थगित कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सुनवाई स्थगित करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को सुनने से इनकार कर दिया था।

याचिका में क्या कहा गया?

याचिका एक ट्रांसलेटर आन्या मल्होत्रा और इतिहासकार सोहैल हाश्मी ने दायर की थी। याचिका में कहा गया कि वो प्रोजेक्ट में काम कर रहे मजदूरों के संक्रमित होने के खतरे से चिंतित हैं। पिछले हफ्ते लूथरा ने डिवीजन बेंच से कहा था कि वो सुप्रीम कोर्ट के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर फैसले को लेकर याचिका दायर नहीं कर रहे, बल्कि महामारी के इस पीक फेज में इस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हैं। याचिका में कहा गया, “ये प्रोजेक्ट कैसे और क्यों जरूरी सेवाओं में आता है। इस स्थिति में ये प्रोजेक्ट न ही जरूरी है और न ही जनता के भले के लिए।“

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