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सूबे की पंचायतों में तजुर्बे के मुकाबले जोश को तरजीह

लखनऊ नवसत्ता : उत्तर प्रदेश में पंचायतों का परिदृश्य बदल रहा है। कुछ वर्ष पहले ग्रामीण क्षेत्रों में इलाके के सबसे बुजुर्ग को पंचायत की कमान सौंपना सबसे तसल्लीबख्श काम माना जाता था, लेकिन अब माहौल बदला है और अब अब ग्रामीण युवा और महिलाएं हर क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहें हैं।
ऐसे ही बदले माहौल के बीच गत 28 मार्च को आगरा में बडेगांव के ग्रामीणों ने पंचायत कर एक शिक्षित बेटी कल्पना सिंह गुर्जर को गांव का प्रधान बनाने का फैसला ले लिया। ग्रामीण लोकतंत्र और आपसी भाईचारे को मजबूत करने की यह एक शानदार पहल है।
अपर निर्वाचन आयुक्त वेदप्रकाश वर्मा मानते हैं कि अब इस तरह की पहल राज्य के अन्य गांवों में भी हो सकती है। इस तरह के प्रयासों से जहां चुनाव खर्च बचता है, वही गांवों में पढ़ा लिखा युवा ग्राम प्रधान बनता है। गुजरात में इस तरह से तमाम लोगों को ग्रामीणों ने ग्राम प्रधान चुना है। श्री वर्मा ने भरोसा जताया कि बीते पंचायत चुनावों के मुकाबले इस बार बड़ी संख्या में पढ़े लिखे युवा और महिलाएं गांव की राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने उतरेंगे। इसके चलते गांवों में विकास संबंधी कार्यों में तेजी आयेगी और ग्रामीण लोकतंत्र भी मजबूत होगा।
अपर निर्वाचन आयुक्त वेदप्रकाश वर्मा के यह कथन पंचायत चुनाव के आंकड़ों पर आधारित है। पंचायत चुनावों के पुराने नतीजे यह बताते हैं कि गांवों का परिदृश्य लगातार बदल रहा है। अब चुनाव दर चुनाव युवा प्रत्याशियों की जीत का ग्राफ बढ़ रहा है। वर्ष 2015 में पंचायत चुनाव जीतने वाले कुल उम्मीदवारों में 21 से 35 साल वालों की संख्या लगभग 35.18 प्रतिशत थी। इस चुनाव में 43.8 प्रतिशत महिला उम्मीदवार चुनाव जीती थी। चुनाव जीतने वालों में मात्र 9.6 प्रतिशत ही निरक्षर उम्मीदवार चुनाव जीते थे।
इस बदलाव को लेकर जय नारायण पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के एसोसियेट प्रोफेसर बृजेश मिश्र कहते हैं कि अब पंचायत चुनाव जिस तर्ज पर होने लगे हैं, उसमें बड़ी उम्र के लोग धीरे-धीरे अनफिट होते जा रहे हैं। दूसरे अब पंचायतों की भूमिका भी बदल गई है। पंचायतें पहले आपसी झगड़ा-झंझट निपटाने का केंद्र हुआ करती थी, लेकिन अब वह विकास की धुरी बन चुकी हैं। आम लोग विकास को लेकर बहुत जागरूक हुए हैं। वह अपने इलाके का ज्यादा से ज्यादा विकास चाहते हैं। उन्हें लगता है कि किसी बड़ी उम्र वाले व्यक्ति के मुकाबले एक युवा ज्यादा दौड़-धूप कर विकास के साधन की जुटान कर सकता है। इस लिए पंचायतों में अब ज्यादा नई उम्र के लोग जीत कर आ रहे हैं।
अब वजह चाहे जो भी हो, लेकिन कुछ पंचायत चुनावों के नतीजे समाज की सोच में आए परिवर्तन की कहानी बयां कर रहे हैं। मसलन,1995-96 में पंचायत चुनाव जीतने वाले कुल उम्मीदवारों में 21 से 35 साल वालों की संख्या लगभग 37 प्रतिशत थी ,लेकिन दस साल बाद वर्ष 2005 में जो चुनाव हुए, उसमें जीत दर्ज करने वाले 46.61 प्रतिशत 35 साल से कम उम्र के थे। वर्ष 2015 में पंचायत चुनाव जीतने वाले कुल उम्मीदवारों में 21 से 35 साल वालों की संख्या लगभग 35.18 प्रतिशत थी और 35 से 60 साल के जीतने वाले उम्मीदवार की संख्या 59.4 प्रतिशत थी। वर्ष 2015 के पंचायत चुनावों की नतीजे बताते हैं कि 58,868 ग्राम प्रधानों में 20,707 ग्राम प्रधान 35 साल से कम उम्र के हैं। 816 ब्लाक प्रमुखों में 323 ब्लाक प्रमुख 35 साल के अंदर हैं और 74 जिला पंचायत अध्यक्षों में 41 जिला पंचायत अध्यक्ष 21 से 35 साल के बीच के ही हैं। कुछ ऐसी ही तस्वीर ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, ज्येष्ठ उप प्रमुख, कनिष्ठ उप प्रमुख के पदों पर भी है।
पंचायत चुनावों के इन परिणामों के आधार पर ही सभी दल अब इन चुनावों में पार्टी के युवाओं को मैदान में उतारने की रणनीति तैयार कर रहें हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर इन चुनावों में हर पद के लिए सभी दल अपने कार्यकर्ताओं को मौका देंगे। इनमें युवाओं और महिलाओं की संख्या बुजुर्गो की अपेक्षा अधिक होगी। यह सभी दलों ने स्पष्ट कर दिया है। ऐसे में अब सूबे के यह पंचायत चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं और इसे ध्यान में रखते हुए ही राज्य के हर गांव में चुनाव प्रचार भी तेज हो गया है।
सूबे में यह चुनाव चार चरणों में 15, 19, 26 और 29 अप्रैल को होंगे। पूरे प्रदेश में आचार संहिता लागू हो गई है। और अब सूबे के हर गांव में पंचायत चुनावों को लेकर सरगर्मी हैं। अब देखना है कि यूपी की ग्रामीण जनता पंचायतों में तजुर्बे के मुकाबले जोश को कितना तरजीह देती है।

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