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प्रवासी मजदूरों के साथ गांव गांव तक पहुंचा कोरोना का खतरा भी

भारत के अलग अलग हिस्सों में मेहनत मजदूरी कर रोजी रोटी कमाने वाले मजदूर कुछ दिनों से सड़कों पर थे. कुछ अस्थाई सेंटरों में हैं, लेकिन बीच रास्ते से भाग निकले प्रवासी मजदूर कम्यु्निटी स्प्रेड के बड़े वाहक बन सकते हैं. मजदूर अधिकार समूह आजीविका के अनुसार भारत में करीब 12 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं. 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की रात से ही हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर से इन लोगों का पलायन शुरू हो गया. इतने बड़े एलान के पहले इन लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी जो रोज काम कर अपना और अपने परिजनों का पेट पालते हैं. लेकिन पहले तो पैसों की कमी और दूसरे लॉकडाउन के कारण यातायात के बंद होने से इनकी परेशानी और बढ़ गई. दोधारी तलवार की काट झेल रहे ये गरीब मजदूर हैरान परेशान होकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े और रास्ते में भूख, प्यास, अकाल के अलावा पुलिस और प्रशासन के डंडे भी खाते रहे. असंभव से लग रहे इनके सफर की तस्वीरें आपने जरूर टीवी पर देखी होंगी. लेकिन बात कठिन सफर पर खत्म नहीं हुई. इसी सप्ताहांत जब दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े ठिकानों से प्रवासी मजदूरों को यूपी और बिहार जैसे राज्यों तक ले जाने के लिए थोड़े बहुत सरकारी इंतजाम किए गए तो भी उस दौरान इन मजदूरों के साथ काफी बेरुखा व्यवहार किया गया. यूपी के बरेली में पहुंचे प्रवासी मजदूरों के ऊपर संक्रमणरोधी एक घोल का ऐसे छिड़काव किया गया जैसे खेतों में कीटनाशक का किया जाता है. ऐसे अमानवीय बर्ताव को लेकर जिला प्रशासन की ओर से प्रतिक्रिया भी आ गई है.

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