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मजदूरों का दर्द, कोरोना वायरस से नहीं, भूखमरी की आशंका से भाग रहे हैं

नई दिल्ली- 21 दिनों के लॉकडाउन के बाद से अपने गांव पलायन करने वाले मजदूरों और गरीबों की एक लंबी कतार बॉर्डर पर रोजाना देखने को मिलती है। इनसे जब हमारे रिपोर्टर ने बात की तो पलायन करने वाले लोगों का दर्द सामने आया है। उनका कहना है कि बाबू जी, दो साल से दिल्ली में नौकरी कर रहा हूं। आठ हजार वेतन है। पहले इसमें से थोड़ा बहुत बचाकर हर महीने घर भी भेज देता था, लेकिन दो महीने से कुछ नहीं बच रहा। अब पिछले महीने का वेतन मिला था, उससे अब तक का तो काम चल गया। लेकिन बचे हुए सात सौ 80 रुपये में पेट की भूख शांत करूं या कमरे का किराया दूं। बाबूजी कोई जुगाड़ कर दो, एक बार मैं अपने घर चला जाऊं, फिर दोबारा इस दिल्ली में नहीं आउंगा। यहां तो बीमारी से बच भी जाएंगे तो ये भूखमरी मार डालेगी। यूपी गेट पर शनिवार को कुछ इसी तरह से अपना दुखड़ा नवादा विहार के रहने वाले रामकेश सिंह ने पुलिस को सुनाया। उसने पैदल ही आगे जाने देने की गुहार की। रोते हुए पुलिस से गुहार लगा रहे रामकेश सिंह से हमने बातचीत की। उसने बताया कि 12वीं तक पढ़ाई की है। उसके गांव से कॉलेज दूर है, इसलिए पढ़ाई छोड़ कर वर्ष 2017 में दिल्ली आ गया। यहां महिपाल पुर में रह कर एक होटल में नौकरी करता है। आठ हजार रुपये महीना मिलता है। कुछ ओवरटाइम भी कर लेता है। लेकिन खाने पीने के बाद इतना पैसा नहीं बचता कि एक बढ़िया कपड़ा भी खरीद सके। बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत बचत कर दो महीने पहले तक पिता जी को भेज देता था, लेकिन पिछले महीने से कुछ नहीं बच रहा। इस समय जेब में कुल 780 रुपये हैं। इस पैसे तो एक महीने का राशन पानी नहीं चल सकता ना। होटल वाले ने पहले ही छुट्टी कर दी है। अब तो उसके सामने दो ही विकल्प है। या तो यहां रहकर भूखा मरे या फिर पैदल चलते हुए घर चला जाए। हप्ते दस दिन में तो पहुंच ही जाएगा। बीमारी से कम भूखमरी के डर से भाग रहे हैं लोग यूपी गेट पर शनिवार को पहुंचे ज्यादातर लोग कमजोर आयवर्ग के लोग थे। इन लोगों में कोरोना वायरस का जितना डर नहीं था, उससे कहीं ज्यादा डर था कि यहां रूक जाने पर खाएंगे क्या। लोगों को भूखमरी का डर सता रहा है। दूसरी आशंका यह है कि अभी तो पुलिस पैदल जाने दे रही है, बाद में यदि जान से भी रोक दिया या लॉकडाउन और बढ़ गया तो यह लोग भूख से ही मर जाएंगे। दोबारा नहीं आएंगे दिल्ली जीवन सवांरने और दो पैसे कमाने के लिए दिल्ली आए ज्यादातर लोगों का अब दिल्ली से मन भर गया है। यूपी गेट पर शनिवार को उमड़े दर्जनों युवाओं ने माना कि दिल्ली में भले ही दो पैसा कमा कर बचा लेते हैं, लेकिन गांव जैसा सुकून नहीं है। यहां बीमारी है, भूखमरी है और 24 घंटे की भागदौड़ में अपने लिए कोई समय नहीं है। पांच दिन के लॉकडाउन में ही जो कमाया, सब खत्म हो गया। दिल्ली से भाग रहे ज्यादातर लोगों ने कहा कि एक बार यहां से निकल गए तो दोबारा लौट कर नहीं आएंगे। रामकेश जैसे अन्य युवाओं ने बैरियर पर खड़े पुलिस कर्मियों से गुहार लगाते हुए कहा कि बस एक बार बैरियर हट जाए तो वह अपने गांव जाकर ही रुकेंगे। ठेले से बदायूं के लिए रवाना बदायूं के रहने वाले फूलचंद ने बताया कि वह दिल्ली में दिहाड़ का काम करता है। दिल्ली में उसका और उसके भाई का परिवार रहता हैं। उसके परिवार में छह बच्चे हैं। अब परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। उनकी मदद के लिए कोई संपर्क नहीं कर रहा है। उन्हें यह भी पता नहीं की मदद कैसे मिलेगी। घर से बाहर निकल मुश्किल हो रहा है। इसी वजह से शनिवार को वह अपने ठेले पर बच्चों को बैठाकर बदायूं के लिए रवाना हुआ। मदद मिलती तो नहीं जाते मैनपुरी के रहने वाले दीपक दिल्ली में घर पुताई का काम करता है । दीपक का कहना है परिवार में पत्नी व बच्ची है। करीब एक सप्ताह से वह घर पर बैठा है। जो कुछ रुपये थे वे खर्च हो चुके हैं। आगे कितने दिन तक लॉकडाउन रहेगा, इसके बारे में कुछ पता नहीं है। अगर कुछ दिन और यहां रुके तो भूखे मर जाएंगे। दीपक का यह भी कहना है अगर उन्हें मदद मिलती तो वह दिल्ली से नहीं जाते, लेकिन अभी तक मदद के लिए कोई संपर्क नहीं किया है। कुछ लोग झुग्गी मे रहने वाले की मदद कर रहे हैं, लेकिन किराए के मकान में रहने वालों के पास कोई संपर्क नहीं कर रहा है। काफी मुश्किल में बीता एक सप्ताह कासगंज के रहने वाले देवेंद्र ने बताया कि वह दिहाड़ी मजदूरी का काम करता है। उसका कहना है कि काम बंद हो चुका है। एक सप्ताह तक किसी तरह से काफी मुश्किल में परिवार का खर्च चल गया है, अब आगे चलाना कठिन है। वह अब किसी तरह अपने पत्नी और बच्ची के साथ घर पहुंचना चाहता है। उसे और उसके परिवार के लिए अब दिल्ली में रुक पाना संभव नहीं है। एक सप्ताह में किसी ने मदद के लिए संपर्क नहीं किया है। महामारी को फैला सकते हैं मजदूर सरक

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