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राजनीति

गठबंधन तंत्र पर भारी पड़ा मोदी मंत्र

यह मोदी की महाविजय है। देश की जनता के बीच मोदी मंत्र, विपक्ष के गठबंधन तंत्र पर भारी पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह विपक्ष के दर्जन भर से ज्यादा बड़े नेताओं और क्षत्रपों पर बहुत भारी पड़े। कुछ राज्यों के हेर फेर को छोड़ दें तो 2019 में भाजपा 2014 से आगे बढ़ी है। भाजपा ने पूरे चुनाव में दो नारों पर काम किया। ‘अबकी बार मोदी सरकार’ व ‘अबकी बार तीन सौ पार’। लोकसभा चुनाव में विपक्ष के गठबंधन तंत्र पर मोदी मंत्र भारी पड़ा। पूरे चुनाव अभियान में उम्मीदवार कौन है, यह पीछे रह गया। भाजपा ने माहौल बनाया कि हर सीट पर मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव नतीजों के केंद्र में दो ही बातें महत्वपूर्ण है। एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिनकी सरकार के कामकाज, कड़े व बड़े निर्णय जनता में गहरी पैठ बना गए। वहीं, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की बूथ स्तर तक की मजबूत सांगठनिक तैयारी, जिसके सामने विपक्ष की सारी तरकीबें असफल रहीं। भाजपा ने मिशन 2019 की तैयारी 2014 के आखिर से ही शुरू कर दी थी। जब अमित शाह ने भाजपा की कमान संभालते ही ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया और पूर्वोत्तर से लेकर कोरोमंडल राज्यों का अपना मिशन बनाया। इसके केंद्र में पश्चिम बंगाल और ओडिशा प्रमुख थे। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी इतनी बड़ी सफलता के लिए शाह ने भाजपा को सांगठनिक रूप से मजबूत किया और दो साल में ही भाजपा को 11 करोड़ सदस्यों वाली दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बना लिया। इतने बड़े संगठन के साथ मोदी के नेतृत्व में शाह ने पंचायत से लेकर संसद तक के मिशन को शुरू किया। छह राज्यों में राजग की सरकारों से शुरू हुआ सफर इन पांच सालों में 22 राज्यों की सरकारों तक पहुंचा दिया। जम्मू-कश्मीर और आंध्र प्रदेश में गठबंधन टूटने और मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, राजस्थान में हार के बाद लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के 12 मुख्यमंत्रियों के साथ राजग की 17 सरकारें हो गई थी। बड़े व कड़े निर्णय बने सहायक मोदी-शाह की जोड़ी ने सरकार व संगठन स्तर पर बड़े व कड़े निर्णय लिए और वे लोकसभा चुनावों तक जारी रहे। सरकार के स्तर पर नोटबंदी, जीएसटी, सीर्जकल स्ट्राइक, बालाकोट के जबाब में एयर स्ट्राइक, राफेल सौदा, तीन तलाक रोकने, एनआरसी जैसे फैसलों के साथ संगठन स्तर पर बूथ, विस्तारक व वॉलंटियर की अभेद्य रचना की गई जो विपक्ष की समझ से परे रही। बंगाल-ओडिशा में ताकत बढ़ाई पांच साल में मोदी-शाह ने त्रिपुरा में वाम गढ़ ढहाया तो बंगाल में ममता को घर में घुसकर चुनौती दी। ओडिशा में नई जगह बनाई। दक्षिण कुछ कमजोर पड़ा, लेकिन संगठन स्तर पर जो तैयारी है वह पांच सालों में रंग दिखाएगी। यूपी में महागठबंधन व बिहार के गठबंधनों को परास्त किया, वहीं छह महीने बने कांग्रेस के हाथ लगे तीन राज्यों में भी उसका लगभग सूपड़ा साफ कर दिया। पूरे पांच साल की तैयारी लोकसभा चुनावों की तैयारी भाजपा ने काफी समय पहले से शुरू कर दी थी। देश भर में पार्टी ने161 संवाद केंद्र (काल सेंटर) बनाए। इनमें 15682 वॉलंटियर के जरिए 24.18 करोड़ लाभार्थियों से संपर्क कर उनको बताया गया कि मोदी सरकार ने उनके लिए कई योजनाएं बनाई हैं। 9.38 करोड़ एसएमएस भेजे गए, 10.25 करोड़ ओबीडी के जरिए संपर्क किया गया। 2566 पूर्णकालिक विस्तारक एक साल से ज्यादा समय से विभिन्न विधानसभा सीटों पर काम कर रहे हैं। लोकसभा क्षेत्रों में 442 विस्तारक व सभी के साथ दस सह विस्तारक की टीम बनाई गई थी। जीत के प्रमुख नारे अबकी बार तीन सौ पार मोदी है तो मुमकिन है मैं भी चौकीदार एक बार फिर मोदी सरकार महाविजय के महानायक संघ के स्वयंसेवक से देश के प्रधान सेवक तक के सफर में नरेंद्र मोदी ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं जो अपनी दम पर देश का जनमत बनाने में सक्षम है। लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक कभी कोई चुनाव नहीं हारे हैं। कड़े फैसले लेने से नहीं डरते नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ। प्रधानमंत्री रहते हुए मोदी ने कई बड़े और कड़े फैसले लेते हुए साफ कर दिया कि वे अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटते हैं, भले ही उनके फैसलों पर कितने भी सवाल क्यों न उठें। 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 18 साल के राजनीतिक जीवन में (संगठन के अलावा) वे जब तक गुजरात में रहे तो मुख्यमंत्री रहे और जब राष्ट्रीय राजनीति में आए तो सीधे प्रधानमंत्री बने। चुनावी राजनीति के माहिर मोदी चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी को विधानसभा चुनावों का सामना करना पड़ा। इस बीच उनको फरवरी-मार्च 2002 में साबरमती एक्सप्रे

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