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चार राज्यों के करीब 85 फीसदी उज्ज्वला लाभार्थी मिट्टी के चूल्हे पर भोजन पकाने को मजबूर

मोदी सरकार जहां उज्ज्वला योजना को अपनी बड़ी सफलता बता रही है और इसे चुनावों में उपलब्धि के रूप में गिना रही है वहीं देशभर में अभी भी अधिकतर ग्रामीण इलाकों में चूल्हे का इस्तेमाल हो रहा है. रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैसिनेट इकोनॉमिक्स (r.i.c.e) के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 85% उज्ज्वला लाभार्थी अभी भी खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग करते हैं, और इसा सबसे बड़ा कारण वित्तीय असमानता है. निष्कर्ष बताते हैं कि इनडोर वायु प्रदूषण से शिशु की मृत्यु हो सकती है और बाल विकास को नुकसान पहुंच सकता है, साथ ही वयस्कों, विशेष रूप से महिलाओं के बीच, इन चूल्हों पर खाना पकाने से दिल और फेफड़ों की बीमारी का खतरा बना रहता है.सर्वेक्षण 2018 के अंत में, चार राज्यों के 11 जिलों में 1,550 घरों का एक यादृच्छिक नमूना शामिल किया गया, जिसमें सामूहिक रूप से देश की ग्रामीण आबादी का दो-पांचवां हिस्सा है. उज्ज्वला योजना 2016 में शुरू की गई थी.मुफ्त गैस सिलेंडर, नियामक और पाइप प्रदान करके ग्रामीण परिवारों के लिए रसोई गैस कनेक्शनों को सब्सिडी देती है. केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि छह करोड़ से अधिक परिवारों को योजना के माध्यम से कनेक्शन प्राप्त हुआ है. R.i.c.e अध्ययन से पता चलता है कि सर्वेक्षण किए गए चार राज्यों में, योजना के कारण एलपीजी कनेक्शनों में पर्याप्त वृद्धि हुई है, 76% परिवारों के पास अब एलपीजी कनेक्शन का मालिक है. हालांकि, इनमें से 98% से अधिक घरों में एक चूल्हा भी है. सर्वेक्षणकर्ताओं ने पूछा कि आप रोटी, चावल, सब्जी, दाल, चाय और दूध के लिए क्या इस्तेमाल करते हैं. इसके जवाब में उन्होंने पाया कि केवल 27% घरों में विशेष रूप से गैस स्टोव का उपयोग किया जाता है. 37% ने चूल्हा और गैस स्टोव दोनों का उपयोग करने की सूचना दी, जबकि 36% ने का है वह इसके लिए चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं.

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