Navsatta
विदेश

ट्रंप के नोबेल सपनों पर पानी — वेनेजुएला की ‘आयरन लेडी’ मारिया कोरिना मचाडो को मिला शांति का नोबेल

एजेंसी

नई दिल्ली, नवसत्ता: 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की प्रमुख विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को प्रदान किया गया है। नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने यह सम्मान उन्हें वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों को सशक्त बनाने, नागरिक स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष करने और तानाशाही शासन से लोकतंत्र की ओर संक्रमण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए दिया है। इस घोषणा ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो इस बार के प्रमुख दावेदारों में गिने जा रहे थे, एक बार फिर इस प्रतिष्ठित सम्मान से वंचित रह गए।

 मचाडो की संघर्ष यात्रा

मारिया कोरिना मचाडो वेनेजुएला की राजनीति में साहस और दृढ़ता का पर्याय मानी जाती हैं। उन्हें ‘आयरन लेडी’ के नाम से जाना जाता है। मचाडो ने अपने देश में लोकतांत्रिक ढांचे की पुनर्स्थापना के लिए वर्षों से संघर्ष किया है। वे विपक्षी दल वेंते वेनेजुएला की नेता हैं और 2010 में पहली बार रिकॉर्ड मतों से राष्ट्रीय सभा के लिए चुनी गईं। लेकिन 2014 में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सरकार ने उन्हें सत्ता-विरोधी गतिविधियों के आरोप में पद से हटा दिया।

सत्ता से बेदखल होने के बावजूद मचाडो ने हार नहीं मानी। उन्होंने जनता के बीच जाकर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और मादुरो शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन की अगुवाई की। 2023 के प्राइमरी चुनावों में उन्होंने भारी जनसमर्थन प्राप्त किया, लेकिन सरकार ने उनके राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को अस्वीकार कर दिया। अगस्त 2024 से मचाडो छिपकर रह रही हैं, क्योंकि उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी।

उनकी प्रतिबद्धता और साहस ने उन्हें वैश्विक पहचान दिलाई। टाइम मैगज़ीन ने उन्हें 2025 की 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची में शामिल किया, और अब नोबेल शांति पुरस्कार ने उनके संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कर दिया है।

 

 समिति का निर्णय और औचित्य

नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने घोषणा करते हुए कहा कि मचाडो ने “बढ़ते अंधकार के बीच लोकतंत्र की लौ जलाए रखी।” समिति के अध्यक्ष  जोरगेन वाटने फ्राइडनेस ने कहा कि यह पुरस्कार मचाडो के उन अथक प्रयासों का सम्मान है, जिनके माध्यम से उन्होंने वेनेजुएला के लोगों के नागरिक अधिकारों की रक्षा की और बिना हिंसा के परिवर्तन की दिशा में रास्ता बनाया। समिति ने स्पष्ट किया कि यह सम्मान नोबेल की वसीयत के तीन प्रमुख सिद्धांतों — लोकतंत्र को सुदृढ़ करना, सैन्यीकरण का विरोध करना और नागरिक साहस का सम्मान — पर पूरी तरह खरा उतरता है।

समिति ने अपने बयान में कहा, “लोकतंत्र तब जीवित रहता है जब लोग चुप्पी तोड़ते हैं। मारिया कोरिना मचाडो उस लोकतांत्रिक साहस का प्रतीक हैं जो किसी भी समाज को बदल सकता है।” यह पुरस्कार मचाडो को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (लगभग 9 करोड़ रुपये) की राशि और नोबेल मेडल के साथ प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार समारोह पारंपरिक रूप से 10 दिसंबर को ओस्लो सिटी हॉल में आयोजित किया जाएगा।

ट्रंप की उम्मीदों पर ग्रहणDonald Trump election lawsuits unlikely to succeed.

इस बार के नोबेल शांति पुरस्कार की चर्चा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा था। ट्रंप ने खुद को “शांति का ब्रोकर” बताते हुए कई मौकों पर नोबेल पुरस्कार की दावेदारी जताई थी। उन्होंने इजरायल-हमास युद्धविराम और कुछ कूटनीतिक प्रयासों का हवाला देकर अपनी योग्यता साबित करने की कोशिश की थी। यहां तक कि पाकिस्तान सरकार ने भी औपचारिक रूप से उनका नामांकन किया था, जबकि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सार्वजनिक रूप से ट्रंप के समर्थन में बयान दिया था।

हालांकि, समिति ने किसी भी राजनीतिक दबाव को अनदेखा करते हुए कहा कि उनका निर्णय केवल अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत और सिद्धांतों पर आधारित है। अध्यक्ष फ्राइडनेस ने कहा, “हम किसी देश, व्यक्ति या संस्था के दबाव में नहीं आते। नोबेल पुरस्कार का मूल्य निष्पक्षता और नैतिकता में निहित है।” इस निर्णय के बाद ट्रंप के समर्थकों में निराशा देखी गई, लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने कहा कि यह चयन लोकतंत्र और नागरिक साहस के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

मचाडो की जीत पर वेनेजुएला की विपक्षी पार्टियों और समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। विपक्षी नेताओं ने कहा कि यह “लोगों की आवाज़ की जीत” है और यह पुरस्कार वेनेजुएला के हर उस नागरिक का है जिसने बिना हथियार उठाए परिवर्तन की राह चुनी। रॉयटर्स और द गार्जियन जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने इसे “लैटिन अमेरिका में नागरिक साहस का प्रतीक” करार दिया।

भारत में भी सोशल मीडिया पर #NobelPeacePrize और #MariaCorinaMachado ट्रेंड कर रहे हैं। कई यूजर्स ने इसे “तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की जीत” बताते हुए मचाडो के साहस को सलाम किया। कुछ पोस्ट्स में यह भी कहा गया कि “जहां सत्ता डर पैदा करती है, वहां मचाडो जैसी महिलाएं उम्मीद जगाती हैं।”

मारिया कोरिना मचाडो को मिला 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार न केवल वेनेजुएला बल्कि पूरे विश्व के लिए एक संदेश है कि असली शांति युद्धों से नहीं, बल्कि साहस और संवाद से आती है। यह सम्मान उस विचार का प्रतीक है कि लोकतंत्र केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि लोगों की इच्छाशक्ति की जीत है। नोबेल समिति के इस फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सच्चा नेतृत्व वही है जो संकट के समय भी उम्मीद की मशाल जलाए रखे।

संबंधित पोस्ट

आर्थिक संकट को लेकर श्रीलंका में कोहराम, देश छोड़कर भागे राष्ट्रपति गोटबाया!

navsatta

अफगानिस्तान: हिंसाग्रस्त कंधार में कवरेज के दौरान भारतीय पत्रकार की हत्या

navsatta

सिडनी: हॉक्सबरी नदी में नाव में लगी आग, आठ जख्मी, चार की हालत नाजुक

navsatta

Leave a Comment